Sunday, November 2, 2025
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समय

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

हजार जन्मों के चक्र से गुजरता हुआ मैं भी 'समय' के कालखंड पर मनुष्य के शरीर में मौजूद हूँ।

तैयारी खुशियों की

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

वैसे तो माँ रोज पूरे घर को खूब साफ करती थी, लेकिन दिवाली के मौके पर वो एक-एक चीज को उठा कर साफ करती। घर के सारे पँखें साफ करती, पूरे घर को धोती।

प्यार का बंधन

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

जब मैं छोटा बच्चा था, कभी-कभी मैं माँ को परेशान करने के लिए पलंग के नीचे छिप जाता। माँ मुझे ढूँढती, आवाज देती और फिर इधर-उधर पूछना शुरू कर देती। 

जिन्दगी को फुल मस्ती में जीते हैं सरदार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक ट्रेन में दो दोस्त यात्रा कर रहे थे। दोनों दोस्त एक दूसरे को चुटकुले सुना रहे थे, और हँसते हुए चले जा रहे थे। उनके सामने वाली सीट पर क्योंकि एक सरदार जी यात्रा कर रहे थे, इसलिए दोनों दोस्त संता सिंह और बंता सिंह वाले चुटकुलों में से सरदार शब्द हटा देते और खुशी से चुटकुले सुनाते, हँसते, खिलखिलाते।

मन का भाव

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे एकदम ठीक से याद है कि इस विषय पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ। पर क्या करूँ, हर साल जब मैं ऐसी स्थिति में फंसता हूँ, तो मुझे एक-एक कर सारी घटनाएँ फिर से याद आने लगती हैं और मैं चाह कर भी अपने अफसोस को छुपा नहीं पाता। 

हर महिला में माँ छुपी होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

छोटा था तो मेरे स्कूल जाने से पहले माँ जाग जाती थी। चाहे रात को सोने में उसे कितनी भी देर हुई हो, पर वो मुझसे पहले उठ कर मेरे लिए नाश्ता तैयार करती, लंच बॉक्स सजाती, मेरी यूनिफॉर्म प्रेस करती और फिर मुझे प्यार से ऐसे जगाती कि कहीं अगर मैं कोई सपना देख रहा होऊँ तो उसमें भी खलल न पड़ जाए। मैं जागता, रजाई मुँह के ऊपर नीचे करता, फिर सोचता कि रोज सुबह क्यों होती है, रोज स्कूल क्यों जाना पड़ता है, रोज भरत मास्टर को वही-वही पाठ पढ़ कर क्यों सुनाना पड़ता है। मुझे लगता था कि स्कूल को मंदिर की तरह होना चाहिए, जिसकी जब श्रद्धा हो चला जाए। 

मन की खुशी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मुझे ठीक से याद है कि गुलबवा की कहानी किसने सुनायी थी। इस सच्ची कहानी सुनाते हुए उसने बताया था कि हर आदमी में दो आदमी रहते हैं। एक बाहर का आदमी और दूसरा भीतर का आदमी। भीतर का आदमी मन है, बाहर का आदमी तन है। 

परंपराओं की जंजीरों में जकड़ी लड़कियाँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आइए आज आपको एक लड़की से मिलवाता हूँ। 

प्यार सबसे बड़ी प्रेरणा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

एक बार मैंने अमिताभ बच्चन से पूछा था कि वो कौन सी चीज है जो आपको लगातार सिनेमा के संसार से जुड़े रहने को प्रेरित करती है? हर आदमी एक ही काम करते-करते एक दिन उस काम से ऊब जाता है। मैंने तमाम बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों को देखा है, जो एक दिन खुद को रिटायर होते देखना चाहते हैं।

‘फेरिहा’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

'फेरिहा' एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है। 

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