मोदी और अनुप्रिया पटेल

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रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

पूरे वाराणसी में भाजपा की दो ही प्रकार की होर्डिंग लगी है। एक में भाजपा बनारस और गंगा को लेकर नारे लिखे हैं और दूसरे में इन्हीं बातों को लेकर नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हैं। सिर्फ मोदी की तस्वीरें। लेकिन पटेलों के इलाक़े में बीजेपी का प्रचार कवर मुझे ये पर्चा दिखा।

मोदी और अपना दल वाले पटेल समाज की नेता अनुप्रिया पटेल की तस्वीर एक साथ। पिक्चर में इन दोनों से बड़ी तस्वीर सरदार पटेल की और सभी तीनों से सबसे छोटी तस्वीर वाजपेयी की।

इस पर्चे पर लिखे साँझी विरासत और संस्कृति का मतलब क्या है आप समझ सकते हैं। किसी होर्डिंग में तो मोदी के साथ वाजपेयी के अलावा कोई नहीं दिखा, लेकिन यहाँ अनुप्रिया पटेल हैं। यहाँ तक कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी नहीं। वाराणसी के ही दूसरे इलाक़े में ऐसे पर्चे नहीं दिखे। तो किया ये सिर्फ पटेल इलाक़े के लिए तैयार किया गया है। यही नहीं पटेलों की बस्ती में प्रचार के लिए बीजेपी ने गुजरात के पुरुषोत्तम रूपाला को बुलाया है। वहाँ मौजूद एक कार्यकर्ता ने बताया कि ये पटेलों के बड़े नेता हैं। इन मोहल्लों में सरदार पटेल को चतुराई से पटेल नेता के रूप में भी पेश किया जा रहा है। वैसे सरदार पटेल के बारे में कोई कितना भी कहे पटेल और भगत सिंह की तस्वीरें पटेल और जाट समाज की रैलियों में लगायी जाती है। अब बीजेपी को मोदी के साथ अनुप्रिया पटेल की तस्वीर क्यों लगाना पड़ी और जब ये दोनों आ भी गये तो सरदार पटेल की क्यों। आप इसके कई मतलब निकाल सकते हैं मगर यह भी ध्यान रखिये कि इसी पर्चे के पीछे जात पात तोड़ने की भी बात लिखी है ताकि इल्ज़ाम न लगे। मैंने तो अनुप्रिया पटेल और मोदी के साझा पोस्टर ‘ग़ैर वाराणसी’ इलाक़ों में भी नहीं देखे जहाँ पटेल बड़ी संख्या में हैं। क्या पता हो और मेरी नज़र न पड़ी हो!

बनारस में मोदी का यह नया बैनर है। इसमें मोदी के अलावा भी मोदी ही हैं। गंगा और वाराणसी से पुराने रिश्ते को ज़ाहिर करने के लिए गंगा को नमन करते हुए मोदी की बहुत पुरानी तस्वीर है। जिससे साबित हो सके कि मोदी का वाराणसी से पुराना रिश्ता है। इस तस्वीर में मोदी युवा लग रहे हैं। जिस वाराणसी में अपनी जीत को लेकर भाजपा इतनी सुनिश्चित है कि अब सिर्फ जीत के अंतर की बात करती है वहाँ कभी अनुप्रिया पटेल तो कभी मोदी के युवावस्था की निजी तस्वीरों को होर्डिंग पोस्टर पर चिपका रही है। क्या तीन लाख के अंतर से होने वाली जीत को छह लाख करने के लिए!

(देश मंथन, 09 मई 2014)

 

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