राहत देने के बदले महँगाई बढ़ाने वाला फैसला

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राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक, निवेश मंथन :

रेलवे के किराये अभी बढ़ाने का कोई अर्थ नहीं था। पूत के पाँव पालने में दिख रहे हैं। जनता ने इन्हें महँगाई के खिलाफ वोट दिया है। पर यह सरकार कांग्रेस की उन नीतियों से, जिनकी नींव मनमोहन सिंह ने 1991 में रखी थी, मुक्त नहीं हो पा रही है।

ये भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका नतीजा हम बार-बार देख चुके हैं। देश की सारी समस्याओं का एकमात्र समाधान यह है कि आय बढ़े, और इन्होंने अब तक इस बारे में एक समाधान नहीं किया है। आय बढ़ाने के लिए उन्हें आय कर की दिशा में प्रयास करना चाहिए। लेकिन उस पर इनका ध्यान नहीं है।

हालत यह है कि इनके अपने सांसदों तक को कोई खबर नहीं रहती कि उनकी सरकार किस तरह के फैसले करने जा रही है। अभी इनके एक सांसद मिले थे। बात चली तो कहने लगे कि बजट तक तो इंतजार कीजिए, अखबारों की खबरों पर मत जाइये। लेकिन इन्होंने बजट से पहले ही यह फैसला कर दिया। बजट से पहले ही किराये बढ़ाने का रिवाज इंदिरा गांधी ने शुरू किया था। लेकिन पिछली यूपीए सरकार ने जब रेल बजट से पहले किराये बढ़ाये थे तो खुद मोदी ने 2012 में इसके विरोध में ट्वीट किया था। बजट आने में अब दो हफ्ते ही बाकी रह गये थे। वे बजट में किराये बढ़ा सकते थे। आप संकेत दे चुके हैं कि सख्त बजट आयेगा, कड़वी दवा देनी है। 

इनका यह कदम समझ से परे लग रहा है। जब थोक में खाद्य महँगाई 9.5% पर है, और इसका मतलब यह है कि खुदरा स्तर पर 16% खाद्य महँगाई है। इतनी ऊँची महँगाई दर से मोदी सरकार को डर ही नहीं लग रहा है! आपकी केंद्र में और इतने सारे राज्यों में सरकारें हैं, छापेमारी करके जमाखोरी खत्म करें। जब बाजार में यह धारणा बन जाती है कि सूखा पड़ रहा है और दाम बढ़ेंगे, तो छोटे से छोटा दुकानदार जमाखोरी में लग जाता है। अगर छापे की खबर तेजी से फैलेगी तो जमाखोरों की हिम्मत टूटेगी। 

रेल किराये बढ़ाने पर रेल मंत्री का कहना है कि इसका फैसला तो कांग्रेस ही करके गयी थी, हमारा फैसला नहीं है। ऐसा कहने का भला क्या मतलब है! रेलवे को पैसों की जरूरत है, लेकिन देश को रियायतों की जरूरत है। उल्टे आप आम आदमी के लिए दाम बढ़ा रहे हैं। आप आय कर बढ़ा दें, जमाखोरों पर छापेमारियाँ कर लें, काला धन पकड़ लें, कार पर उत्पाद (एक्साइज) शुल्क बढ़ा दें, इन सब चीजों के लिए कौन मना कर रहा है। उद्योग जगत उत्पाद शुल्क घटाने की माँग कर रहा हो, लेकिन वह खपत को बढ़ाने पर आधारित मॉडल है। आप अर्थव्यवस्था में खपत बढ़ायेंगे, लेकिन आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा नहीं और उससे महँगाई बढ़ती जायेगी। 

महँगाई की वजह से ही जनता में आक्रोश था और उसी कारण जनता ने आपको वोट दिया है। जनता आपको लायी है महँगाई से राहत दिलाने के लिए। इसलिए आपको महँगाई के बारे में कुछ नये ढंग से सोचना पड़ेगा। आप एक तरफ तो यह दलील देते हैं कि हम अभी-अभी आये हैं। दूसरी तरफ गवर्नर हटाने हों या रेल किराये बढ़ाने हों तो यह तुरंत करना चाहते हैं। अगर आप समय लेना चाहते हैं तो सबके लिए लें। रेलवे में अगर सरकार को किराये बढ़ाने ही थे तो केवल फर्स्ट एसी और सेकेंड एसी के किराये बढ़ाते। 

मुंबई में लोकल के किराये जिस तरह से बढ़ाये गये हैं, उसका खामियाजा भाजपा को महाराष्ट्र के विधान सभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा। मुंबई में इन्हें जो नतीजा मिलेगा, उससे ये होश में आ जायेंगे। मुंबई में इनका जीतना मुश्किल होगा। वहाँ गरीब से लेकर लाख दो लाख रुपये महीने तक की आमदनी वाला हर व्यक्ति लोकल ट्रेन से चलता है। 

मोदी सरकार को अगर किराये बढ़ाने ही थे तो कुछ सब्र करना चाहिए था। किराया आप छह महीने बाद भी बढ़ा सकते थे। ऐसी बहुत जगहें हैं, जहाँ काफी नुकसान हो रहा है। मोदी सरकार के इस फैसले से साल भर में रेलवे की आमदनी ज्यादा-से-ज्यादा 8000 करोड़ रुपये बढ़ेगी। यदि मोदी सरकार रेलवे में फैले भ्रष्टाचार, परियोजनाओं में विलंब और रेलवे की अक्षमता में सुधार के लिए कदम उठाती तो मौजूदा खर्चों में ही 20,000 करोड़ रुपये बच सकते हैं। 

दूसरी तरफ नौकरशाही के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया है, जो सारी समस्याओं की जड़ है। जो आम आदमी है, जो ट्रेन पर लटक कर चलता है, आप उसी पर क्यों कुल्हाड़ी चला रहे हैं? मुझे लगता है कि जितनी बढ़ोतरी की गयी है, उसमें से कुछ वापस करनी पड़ेगी। लेकिन बात यह है कि सरकार के लक्षण अच्छे नहीं लग रहे हैं। 

(देश मंथन, 22 जून 2014)

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