नरेंद्र तनेजा, राष्ट्रीय संयोजक (ऊर्जा प्रकोष्ठ), भाजपा :
रेलवे के किराये-भाड़े आज से कुछ साल पहले बढ़ाये जाने चाहिए थे, लेकिन चुनाव और लोकप्रिय बजट आदि के मद्देनजर इसे लागू नहीं किया गया।
रेलवे की अर्थव्यवस्था चीख-चीख कर बोल रही थी कि किराया बढ़ाओ, लेकिन नहीं बढ़ाये गये। इसका नतीजा यह हुआ कि रेलवे बीमार हो गया। रेलवे की समितियाँ कह रही थीं कि किराये बढ़ाओ, लेकिन चुनाव आदि की वजह से निर्णय नहीं लिया गया। लेकिन अब फैसला लेना जरूरी था, वरना स्थिति ज्यादा खराब हो जाती। रेल के कागज पड़े हैं ना। यह तो तथ्यों पर आधारित है। पिछली सरकार को किराये बढ़ाने थे, लेकिन इन लोगों ने लोक-लुभावन नीतियों के चलते दाम नहीं बढ़ाये। लेकिन अब ये फैसले हमारे मुँह से निकल रहे हैं।
किराया बढ़ाने का फैसला यूपीए सरकार ने ही लिया था, जिसे उन्होंने पूरा नहीं किया था और हमें आ करके भारी दिल से करना पड़ा। लेकिन रेलवे बोर्ड दो साल से इसकी माँग कर रहा था, तो हमने वह कर दिया। किराया और माल भाड़ा रेल बजट से पहले बढ़ाने की जहाँ तक बात है, ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप बजट से पहले इन्हें नहीं बढ़ा सकते। अभी जो किराया बढ़ाया गया है, यह तो एक लटका हुआ काम था जिसे अभी पूरा किया गया है, जो फैसला कांग्रेस को करना चाहिए था। उन्हें यह दो साल पहले करना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया और हम उसे पूरा कर रहे हैं।
लेकिन भाजपा की जो दृष्टि है, जो दिशा है, वह बजट में दिखेगी और उस पर पूरी तरह भाजपा के हस्ताक्षर होंगे। भाजपा का रेल बजट रेलवे के बारे में हमारा दृष्टिकोण देश को बतायेगा। रेल बजट देश को दिखायेगा कि रेलवे को लेकर हमारा सपना क्या है? इसमें दर्शाया जायेगा कि आने वाले पाँच साल में रेलवे को लेकर सरकार क्या-क्या करने वाली है और भारतीय रेल किस दिशा में जाने वाली है।
लोगों की प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक हैं। एक उपभोक्ता जब कहता है कि आपके रेस्टोरेंट में समोसा ठंडा क्यों मिल रहा है, तो वह बिल्कुल सही है। अगर मुझे बर्गर ठंडा दिया गया है और मैं शिकायत कर रहा हूँ तो यह मेरा हक है। लोग कह रहे हैं कि आपने किराये बढ़ाये हैं तो आप व्यवस्था को ठीक करिये। डिब्बा साफ होना चाहिए, टॉयलेट साफ होना चाहिए, खाना खाने लायक होना चाहिए। वे बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। हम इसको इस तरह से देख रहे हैं कि कांग्रेस ने स्थिति कितनी खराब कर रखी थी।
कांग्रेस वाले इसे बिल्कुल आईसीयू में छोड़ कर गये हैं। अगर लोक-लुभावन चीजें ही करते रहें तो रेलवे डूब जायेगा। अब आप यह अंदाजा लगायें कि जब अंग्रेज यहाँ से गये थे 1947 में, तब से मात्र 10% अतिरिक्त क्षेत्र में विस्तार किया गया है। नयी जगह जहाँ रेल पहुँची है, वह केवल 10% है। जहाँ एक ही पटरी थी, वहाँ साथ में दूसरी पटरी जरूर डल गयी है, लेकिन नये क्षेत्रों तक ज्यादा विस्तार नहीं हुआ है।
रेलवे की सुरक्षा के साथ समझौता किया गया है। रेलवे में जो नयी तकनीक आनी थी, वह नहीं आयी। रेलवे के डिब्बों की हालत खराब है। पटरियों की हालत खराब है। कुल मिल कर रेलवे को चुस्त-दुरुस्त करना है। लोगों को रेलवे में सुरक्षा देनी है। लोगों को एक आधुनिक रेलवे प्रणाली देनी है, जिसके लिए लोक-लुभावन घोषणाओं से काम नहीं चलेगा। हमारा यह प्रयास है कि रेलवे की अर्थव्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाया जाये, रेलवे को आधुनिक बनाया जाये और जनता को इसी से फायदा होगा।
दूसरी बात, इससे महँगाई भी नहीं बढ़ेगी, क्योंकि महँगाई बढ़ने का केवल यही कारण नहीं है। आवश्यक चीजों की कीमत बढ़ने के लिए भ्रष्टाचार और जमाखोरी जिम्मेदार है। आपूर्ति श्रृंखला के अंदर गुंडागर्दी और तमाम तरह की चीजों से भी हम निपट रहे हैं। यह सोती हुई सरकार नहीं है। सरकार हर तरह के कारणों को लेकर सचेत हैं। रूकी हुई परियोजनाओं को चालू नहीं करने, निवेश को देश में नहीं आने देने, अर्थव्यवस्था के विस्तार की तरफ कदम न बढ़ाने से भी असर पड़ता है। सरकार पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों पर कोई कार्रवाई न करे तो ये चीजें भी महँगाई पर असर करती हैं। लेकिन हम तेजी से अर्थव्यवस्था का विस्तार कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के विस्तार से लोगों की आय बढ़ेगी। आर्थिक सिद्धांतों में अगर किसी कमी की वजह से महँगाई बढ़ती है तो हम उसे दूर करने की कोशिश करेंगे। प्रशासन और कानून-व्यवस्था में कमी है तो उसे देखेंगे।
इसके अलावा तमाम चीजें ऐसी हैं, जो सड़क के माध्यम से जाती हैं और उसी के तहत हम समाधान ढूँढ़ रहे हैं। गुजरात से बंगाल कोई सामान जाना है तो उसे रेल से न भेज कर समुद्र के रास्ते से भी जा भेजा जा सकता है। इलाहाबद से लेकर कलकत्ता तक हम जलमार्ग को दुरुस्त कर रहे हैं, यानी नाव से भी ले जाया जा सकता है। इसे लोग भूल गये हैं।
माल ढुलाई के लिए भी कांग्रेस ने इतने सालों में रेलवे में कोई व्यवस्था ही नहीं बनायी है। इस्पात और अंगूर दोनों को भेजना हो तो पहले इस्पात भेज दिया जायेगा, जबकि पता है कि अंगूर सड़ जायेगा। हम पहले रेलवे की बुनियादी व्यवस्था ठीक करेंगे। उसके बाद रेलवे की प्रतिस्पर्धा होगी सड़क मार्ग के परिवहन से और समुद्रतटीय परिवहन से भी। उस प्रतिस्पर्धा में दरें क्या रहती हैं, इसे देखा जायेगा। हम रेलवे की व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन की ओर बढ़ रहे हैं। शुरू में लोगों को भ्रम होगा। लेकिन जब सही चीजें होने लगेंगी, लोगों को छह महीने में समझ में आने लगेगा।
हम वेटिंग टिकट की बात करने के बदले ऐसी स्थिति बनाने की क्यों न सोचें कि आप बुलेट ट्रेन में बैठें और आपको ट्रेन में ही टिकट मिल जाये? या आप उसका टिकट इंटरनेट से अपने मोबाइल से ही तुरंत ले सकें। यूरोप में तो कई जगह ऐसी व्यवस्था है कि आप उतरने के बाद टीटी को पैसे देते हैं। हम भारतीय रेल को भी विश्वस्तरीय बनाना चाहते हैं। हमारा सपना तो यही है और देश साथ देगा तो यह बिल्कुल हकीकत में बदलेगा। देश जब देखेगा कि यह सरकार ईमानदारी से काम कर रही है तो वह साथ जरूर देगा।
जहाँ तक बुलेट ट्रेन की बात है, जब शताब्दी एक्सप्रेस आयी तो उसकी भी बुराई की गयी थी। कहा गया था कि इनकी क्या जरूरत है? जब 1982 में रंगीन टेलीविजन आया तो दिल्ली के बुद्धिजीवियों ने उसका बहुत विरोध किया था। वे कह रहे थे कि रंगीन टेलीविजन की क्या जरूरत है, ब्लैंक ऐंड व्हाइट ही ठीक है। हम यह चाहते हैं कि ट्रेन से कहीं जाना हो तो लोग जल्दी पहुँचें। रेलवे की पहली प्राथमिकता है सुरक्षा, दूसरी प्राथमिकता है समय पर ट्रेन का खुलना और समय पर पहुँचना, और तीसरी प्राथमिकता है अच्छा अर्थशास्त्र।
(देश मंथन, 23 जून 2014)