डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
पाकिस्तान आवामी तहरीक के नेता डा ताहिरूल कादिरी को स्वदेश आगमन सोमवार को एक बहुत बड़ा नाटक बनकर पूरा हो गया। वे रविवार की रात लंदन से दुबई होते हुए सोमवार की सुबह इस्लामाबाद पहुँचे थे।
उनके जहाज को रावलपिंडी तक उतारने नहीं दिया गया। जहाज पहले इस्लामाबाद पर घूमता रहा और फिर उसे लाहौर भेज दिया गया। लाहौर हवाई अड्डे पर कादिरी जहाज में ही धरने पर बैठ गये। नीचे नहीं उतरे। बोलते रहे कि जब तक पाकिस्तानी फौज का कोई प्रतिनिधि आकर उनसे नहीं मिलेगा, वे नीचे नहीं उतरेंगे। दो-तीन घंटे की कशमकश के बाद कादिरी मान गये। फौज नहीं आयी, बल्कि पंजाब के राज्यपाल आये। राज्यपाल को अपना निजी मित्र बताते हुए वे कार में बैठकर लाहौर रवाना हो गये। नाटक का यों अंत हो गया।
इसे मैं नाटक इसलिए कहता हूँ कि स्वयं कादिरी का व्यक्तित्व ही बड़ा नाटकीय है। वे जबरदस्त वक्ता हैं। जब वे बोलते हैं तो उनका मुँह तो बोलता ही है, उनकी आँख, कान, नाक, टोपी गर्दन, हाथ, हाथ की उंगलियाँ भी बोलती हैं। वे लगातार बोलते चले जाते हैं। वे हमारे अन्ना हजारे की तरह नहीं हैं। पढ़े लिखे हैं, उनमें उग्र राजनीतिक चेतना है। उन्होंने नवाज शरीफ की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। संसद में उनकी पार्टी का एक भी सदस्य नहीं है लेकिन पाकिस्तान के संपूर्ण प्रतिपक्ष के दूसरे सबसे बड़े नेता बन गये हैं। वे आज जितनी भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं, पाकिस्तान का कोई दूसरा नेता नहीं कर सकता।
वे यह जादू क्यों कर पाते हैं? इसका मूल कारण मुझे ये दिखायी पड़ता है कि सिर्फ एक साल में ही पाकिस्तान की जनता का नवाज सरकार से मोहभंग हो गया है। मियां नवाज को स्पष्ट बहुमत मिला था और वे देश के सबसे अनुभवी नेता हैं। लोगों को उनसे बहुत ज्यादा आशाएँ थीं। लेकिन किसी भी नेता के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती। मियां नवाज और उनके छोटे भाई शहबाज ने जनता के कुछ वर्गों को छोटी-मोटी राहतें जरूर पहुँचाई है। लेकिन महँगाई, बेरोजगारी, आंतकवाद जैसी समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी हुई है। डा. कादिरी ने इस जन असंतोष को मुखर किया है। वे क्रांति का नारा बुलंद कर रहे हैं। लेकिन उनकी क्रांति कैसी होगी। यह वे कभी भी खुल कर नहीं बता पाये। वे चाहते क्या हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है। वे क्या सरकार बनाना चाहते हैं और सरकार बनाकर कौन सा कार्यक्रम लागू करवाना चाहते हैं, यह भी किसी को पता नहीं। बस वे भीड़ इकट्ठी करना जानते हैं और भाषण कला के महान पंडित हैं। इसलिए मुझे लगता है कि डा. कादिरी जैसा मजहबी नेता पाकिस्तान में भी कहीं अन्ना हजारे जैसा निराशा न पैदा कर दें। कादिरी चाहे खुद कुछ न कर पायें लेकिन वे अपनी भाषण कला से मियां नवाज की सरकार की जड़ें तो खोखली कर ही सकते हैं। इसलिए इमरान खान, चौधरी शुजात, परवेज इलाही और अल्ताफ हुसैन जैसे खुरार्ट नेता भी उनका साथ दे रहे हैं।
सोमवार को अच्छी बात यह हुई कि सरकार ने सारे मामले को बड़ी परिपक्वता से संभाला। पुलिस मारती, इसकी बजाये वह खुद पिटी। कादिरी के चेलों ने मॉडल टाउन के हमले का बदला निकाला। कादिरी का आगमन सोमवार को टीवी चैनल पर छाया रहा लेकिन शाम के वक्त वजीरिस्तान के फौजी अभियान की भी खबरें आने लगीं और मुशरर्फ को मिली विदेश जाने की छूट के खात्मे की भी खबर बनी। अब देखते हैं कि कादिरी के इस बड़े नाटक का अगला अंक कौन सा होता है। इस अंक का तो सुखांत हो गया है।
(देश मंथन, 24 जून 2014)