आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 : अर्थव्यवस्था सँभलने की उम्मीद और नसीहतें

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राजीव रंजन झा :

केंद्रीय बजट से एक दिन पहले संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 ने देश की वित्तीय हालत का प्रतिबिंब सामने रखा है। इसमें एक तरफ जहाँ यह उम्मीद जतायी गयी है कि 5% से कम विकास दर के दौर से अर्थव्यवस्था उबरने वाली है, वहीं सरकार को अपने घाटे पर नियंत्रण पाने, महँगाई पर काबू रखने और निवेश के माहौल को सुधारने की सलाह दी गयी है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि साल 2014-15 में विकास दर 5.4-5.9% के बीच रहेगी। इस तरह लगातार दो वर्षों से 5% के नीचे चल रही विकास दर कुछ सँभलेगी। इस साल फरवरी में पेश किये गये अंतरिम बजट में अनुमान जताया गया था कि 2013-14 की विकास दर 4.9% रहेगी, हालाँकि बाद में संशोधित आँकड़ा 4.7% का रहा। पिछले महीने जून में आरबीआई ने अनुमान जताया था कि 2014-15 में विकास दर 5.5% रहेगी।

आर्थिक सर्वेक्षण में ध्यान दिलाया गया है कि महँगाई दर पहले से तो घटी है, लेकिन अब भी यह सहज स्तर से ऊपर है। इसका मुख्य कारण खाने-पीने की चीजों की महँगाई है। साल 2013-14 में थोक महँगाई दर (डब्लूपीआई) 5.98% रही, जो तीन सालों का निचला स्तर है। इससे पहले के दो वर्षों में थोक महँगाई दर 7% और 9% थी।

महँगाई पर नियंत्रण से न केवल लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि यह इसलिए भी जरूरी है कि आरबीआई इसके बाद ही अपनी ब्याज दरें घटा सकता है। आरबीआई की मौद्रिक नीति ढीली होने से निवेशकों का उत्साह बढ़ेगा। सर्वेक्षण में महँगाई पर नियंत्रण के लिए कड़े उपायों की वकालत की गयी है और सुझाव दिया गया है कि खाने-पीने की चीजों का प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय बाजार हो। सर्वेक्षण में उम्मीद जतायी गयी है कि साल 2014 के अंत तक थोक महँगाई नरम पड़ जायेगी। लेकिन कमजोर मानसून और इराक संकट के चलते कच्चे तेल के दाम बढ़ने की वजह से महँगाई ऊँची रहने का जोखिम भी है।

पिछले कारोबारी साल की पहली तिमाही में भारत का व्यापार घाटा काफी बढ़ गया था, जिसके बाद केंद्र सरकार और आरबीआई की ओर से इस पर नियंत्रण पाने के लिए कई कदम उठाये गये। लिहाजा पूरे वित्त वर्ष 2013-14 में भारत के व्यापार घाटा कम हो कर 137.5 अरब डॉलर पर आ गया, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में यह घाटा 190.3 अरब डॉलर का था। व्यापार घाटे में इस कमी के बीच भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2013 के 292 अरब डॉलर से बढ़ कर मार्च 2014 के अंत में 304.2 अरब डॉलर का हो गया।

भारत का व्यापार घाटा कम होने, इसके चलते चालू खाते का घाटा (करंट एकाउंट डेफिसिट) कम होने और इसके साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने से डॉलर की तुलना में रुपये में मजबूती आयी है। इन सारी बातों का सकारात्मक असर इस साल की विकास दर पर भी होगा।

आर्थिक सर्वेक्षण में सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर नियंत्रण रखने के उपायों की चर्चा की गयी है। अंतरिम बजट में सरकारी घाटा 2013-14 में जीडीपी का 4.6% रहने और अगले साल इसे घटा कर 4.1% पर लाने की बात कही गयी थी। सरकारी घाटा मोटे तौर पर सरकार की कुल आमदनी की तुलना में हुआ ज्यादा खर्च है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि खाद्य और खाद पर सब्सिडी के खर्च को घटाने और कर-वसूली के आधार को बढ़ाने की जरूरत है। ताजा सर्वेक्षण के अनुसार 2013-14 में सरकारी घाटा 4.5% रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण में सब्सिडी के बदले गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की पहचान करके उन्हें सीधे नकद मदद पहुँचाने की बात कही गयी है।

कृषि क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, लेकिन इस साल मानसून कमजोर रहने के मद्देनजर आर्थिक सर्वेक्षण में चिंता जतायी गयी है। अल नीनो के प्रभाव से मानसून कमजोर रहने और उसके चलते कीमतें बढ़ने की आशंका है। सर्वेक्षण में यह सुझाव भी दिया गया है कि किसानों को अपनी उपज देश के किसी भी हिस्से में खरीदने-बेचने या उसका भंडारण करने पर कोई रोक-टोक नहीं होनी चाहिए। सर्वेक्षण में एपीएमसी ऐक्ट, ईसी ऐक्ट, लैंड टीनेंसी ऐक्ट वगैरह के प्रावधानों को कृषि उपज के मुक्त व्यापार में बाधक बताया गया है।

रोजगार बढ़ाने के लिए इसमें श्रम सुधारों की जरूरत पर जोर दिया गया है। गौरतलब है कि साल 2004-05 से 2011-12 के दौरान रोजगार में वृद्धि की दर केवल 0.5% रही है, जबकि इससे पहले 1999-2000 से 2004-05 के बीच रोजगार वृद्धि दर 2.8% रही थी। श्रम सुधार राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि इसमें मुख्य रूप से कर्मचारियों को जब चाहे रखने और जब चाहे निकालने की छूट दिये जाने की बात कही जाती है। हालाँकि सर्वेक्षण में कहा गया है कि अच्छे रोजगार तब पैदा होते हैं, जब कंपनियों की उत्पादकता अच्छी हो। इसलिए ध्यान इस बात पर दिया जाना चाहिए कि कैसे ज्यादा कंपनियाँ बनें, आगे बढ़ें और ज्यादा उत्पादकता हासिल करें।

सर्वेक्षण में भारत की आबादी में युवाओं की अधिक संख्या को एक बड़ा फायदा बताया गया है। देश की सवा अरब की आबादी की औसत उम्र साल 2020 में 29 वर्ष रहने का अनुमान है। साल 2001 में भारत की आबादी का 58% हिस्सा कामकाजी उम्र का था, जबकि 2021 में यह हिस्सा 64% होने का अनुमान है।

बीते दो वर्षों में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति कतई अच्छी नहीं रही है। साल 2013-14 में औद्योगिक उत्पादन लगभग सपाट रहा। इसमें 0.1% की मामूली गिरावट ही आयी। इससे पहले 2012-13 में औद्योगिक उत्पादन केवल 1.1% की हल्की दर से बढ़ पाया था।

अर्थव्यवस्था में मौजूदा धीमेपन का एक बड़ा कारण उद्योगों में आया धीमापन है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में औद्योगिक विकास को तेज करने के लिए निजी कंपनियों की ओर से निवेश में तेजी लाने की जरूरत है। इसके साथ ही महत्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने और बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) विकसित करने की राह में मौजूद अड़चनों को दूर करने की जरूरत है। सर्वेक्षण में मैन्युफैक्चरिंग और खास कर छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है, खास कर श्रम-प्रधान क्षेत्रों में।

थोक और खुदरा व्यापार (ट्रेड सेक्टर) के बारे में सर्वेक्षण में कहा गया है कि बहुतेरे नियंत्रणों और आदेशों के कारण इसका विकास अटक रहा है। साल 2012-13 में ट्रेड सेक्टर में 4.8% की वृद्धि हुई और यह 14.79 लाख करोड़ रुपये का रहा। तमाम बंदिशों की वजह से देश का बाजार छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया है। सर्वेक्षण के अनुसार इन बंदिशों से अर्थव्यवस्था में सामानों की मुक्त आवाजाही नहीं हो पाती, परिवहन की लागत बढ़ती है और मोटे तौर पर उत्पादकता घट जाती है।

देश की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। साल 2013-14 में इसने जीडीपी में 57% योगदान किया, जो 2000-01 में 51% था। सेवा क्षेत्र की विकास दर भी धीमी हो कर 6.8% पर आ गयी है, हालाँकि जीडीपी विकास दर 4.7% की तुलना में यह क्षेत्र तेज ही चल रहा है।

इस बीच मानव विकास क्रम (ह्यूमन डेवलपमेंट रैंक) में भारत की स्थिति फिसली है। भारत एचडीआर 2013 के अनुसार विश्व के 186 देशों की सूची में 136वें स्थान पर आ गया, जबकि साल 2012 में यह 134वें स्थान पर था।

(देश मंथन, 10 जुलाई 2014)

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