श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :
उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू हवाई अड्डे पर सामान्य यात्री की तरह कतार में खड़े होकर सुरक्षा-जाँच की प्रक्रिया से गुजरते हैं। आम यात्रियों की तरह बस में बैठ कर विमान तक जाते हैं। अशोक गजपति राजू राजघराने से आते हैं और देश के उड्डयन मंत्री भी हैं।
फिर भी उनका आम आदमी की तरह पेश आना एक नयी परम्परा की शुरुआत है। इसके पहले भी इस तरह की परम्परा की शुरुआत हो चुकी है लेकिन वह आजतक परंपरा नहीं बन पायी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के मंत्रियों ने लालबत्ती की गाड़ी लेने से इनकार कर सभी राजनेताओं को सोंचने के लिए विवश कर दिया था। तत्कालीन पेट्रोलियम मिनिस्टर ने मेट्रो से यात्रा कर तेल बचाने की मुहीम की शुरुआत की। इसके पहले भी देश के कई राज्यों में मंत्री और नेता साइकिल की सवारी कर तेल बचाने के अभियान की शुरुआत कर चुके हैं।
लेकिन दुःख की बात ये है कि नेताओं और नौकरशाहों द्वारा शुरू की गयी ये नयी कवायदें कभी हकीकत नहीं बन पायीं और केवल एक प्रतीकात्मक कदम बनकर रह गयीं। आजतक मंत्रियों का लाल बती गाड़ियों से मोह भंग नहीं हुआ। सरकारी पेट्रोल डीजल का खर्च कम नहीं हुआ क्योंकि जिस नेक मुहीम की शुरुआत नेताओं द्वारा की जाती है उसके पीछे नेक नियति कम दिखावे की मंशा ज्यादा होती है। नेता मानकर चलते हैं कि उनका काम केवल एक दिन प्रतीकात्मक कदम उठाने की है, उसका जीवन भर पालन करना आम आदमी का काम है। यहीं वजह है कि उनके फिजूलखर्ची, आडंबरपूर्ण जीवन-शैली, लालबत्ती गाड़ियों के इस्तेमाल और आम नागरिकों से खुद को अलग दिखाने की प्रवृत्ति पर अंगुलियाँ उठती रही हैं, मगर हमारे राजनीतिक इस आलोचना से बेपरवाह नजर आते हैं।
ये दिखावा और फिजूलखर्ची पश्चिम बंगाल में नहीं है। वाम दलों के मुख्यमंत्री रहे हों या फिर वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनकी सादगी देखते बनती है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बड़े बड़े बंगलों में नहीं बल्कि डेढ़ कमरे के फ़्लैट में रहते हैं। सुरक्षा के नाम पर उनके साथ सरकारी गाड़ियों के काफिले नहीं होते। उनके आवास पर सुरक्षाकर्मियों की लम्बी चौड़ी फौज नहीं होती और ना ही उनके मेहमानों के नीबू का खर्च लाखों करोड़ों में होता है। ममता बनर्जी आज भी एक झोपड़ी में रहती हैं। उनसे बड़ा घर बिहार के एक विधान पार्षद का होता है। ममता बनर्जी सैंट्रो कर में घूमती हैं लेकिन बिहार और दूसरे प्रदेशों के विधान पार्षद भी 24 लाख से कम के एसयूवी पर नहीं घूमते।
आज नियम के मुताबिक मंत्री भारत के किसी भी हवाई अड्डे पर विमान तक अपनी गाड़ी ले जा सकते हैं। यहाँ तक कि सांसदों के लिए भी हवाई अड्डे पर विशेष सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं। विमान में चढ़ने से पहले हवाई अड्डे का विशेष अधिकारी उनकी देखभाल के लिए तैनात रहता है और उन्हें चाय-नाश्ता मुफ्त दिया जाता है। जब तक वे सवार नहीं हो जाते, विमान उड़ान नहीं भरता।
यूपीए सरकार के समय पिछली जनवरी में इन सुविधाओं को निजी विमानों में भी लागू करने का गुपचुप निर्देश जारी हो गया था। कई सांसद लगातार शिकायत करते आ रहे थे कि निजी विमान कंपनियाँ उनका समुचित खयाल नहीं रखती हैं। यहाँ तक कि उड़ान में देरी होने पर भी उनके साथ सामान्य यात्रियों की तरह व्यवहार किया जाता है। सरकार ने उनकी शिकायतों को तो तरजीह दी, मगर आम मुसाफिरों की सुविधाओं पर गौर नहीं किया गया।
सांसदों और मंत्रियों को हवाई अड्डों पर विशेष सुविधाएँ क्यों मिलनी चाहिए? हवाई अड्डों पर यों ही सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम होता है, वहाँ प्रवेश के बाद मंत्रियों और सांसदों को वैसा खतरा नहीं रह जाता, जैसा बाहर माना जा सकता है। फिर अलग से आवभगत और विशेष वाहन में उन्हें हवाई जहाज तक ले जाने का नियम क्यों होना चाहिए? उड्डयन मंत्री गजपति राजू ने आम लोगों के साथ कतार में खड़े होकर जाँच करायी और फिर बस में हवाई जहाज तक गये, तो इससे भी यही जाहिर हुआ कि हवाई अड्डे पर सुरक्षा कोई बड़ा मसला नहीं।
दरअसल हमारे नेता खुद को खास समझने और दिखावे की प्रवृति से बाहर नहीं आ पाते। सुरक्षा के नाम पर वो सारी सुख सुविधा और तामझाम की व्यवस्था अपने लिए कर लेते हैं। बिहार में तो एक बार जो मुख्यमंत्री बन गया उसे जीवन भर चिंता करने की जरुरत नहीं। उसके जीवन भर के खाने, रहने और रईशी का खर्च जनता उठाती रहेगी। एक तरफ विकास कार्यों के लिए फण्ड का टोटा है वहीँ जन-प्रतिनिधियों के सुख सुविधाओं में हर साल बढ़ोतरी की जा रही है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अपनी सरकार बनने पर लाल बती वाली कार लेने से मना कर दिया तो कुछ राज्यों में उसकी नकल भी हुई लेकिन यह केवल प्रतीकात्मक ही रह पाया। क्या अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि जिस परम्परा की शुरुआत देश के उड्डयन मंत्री ने की है वह आगे के लिए परम्परा बन जायेगी?
(देश मंथन, 06 अगस्त 2014)