श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार
जनता परिवार का विलय का अधर में पड़ जाना और आरजेडी-जेडीयू के बीच गठबन्धन की संभावना का कमजोर होना, केवल लालू, नीतीश के लिए ही नहीं बल्कि बीजेपी के लिए और खासतौर पर बिहार की जनता के लिए भी एक बुरी खबर है।
आरजेडी-जेडीयू के बीच तालमेल का नहीं होना बीजेपी के लिए भी चिंता का सबब इसलिए बन सकता है, क्योंकि इससे बिहार में त्रिकोणात्मक संघर्ष और त्रिशंकु विधान सभा की संभावना बहुत बढ़ जायेगी। अगर आरजेडी-जेडीयू के बीच चुनावी गठजोड़ होता है तो लड़ाई “बीजेपी बनाम जनता परिवार” होगी। इसमें किसी एक की अप्रत्याशित जीत तो दूसरे की करारी हार होगी। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो सत्ता के प्रबल दो दावेदार बीजेपी और जेडीयू गठबन्धन दोनों को ही लालू-माँझी गठबन्धन से लड़ना होगा। माँझी भले खुद जीरो पर आउट हो जाएँ, लेकिन वो जेडीयू-कांग्रेस गठबन्धन के साथ बीजेपी गठबन्धन का काम बिगाड़ जरूर देगें। चूकी माँझी केवल खेल बिगाड़ सकते हैं, इसलिए उनके साथ आने से किसी को सत्ता नहीं मिलनेवाली। वैसे भी हर चुनाव के दौरान एक कहानी होती है जो चुनाव के साथ ही खत्म हो जाती है। माँझी भी वैसी ही एक चुनावी कहानी हैं। उनको लेकर खूब खबरें बन रही हैं, आगे भी चुनाव तक बनती रहेगीं और चुनाव बाद एक कहानी की तरह माँझी की कहानी भी खत्म हो जायेगी। दरअसल इस चुनाव में लालू-नीतीश और मोदी को कुछ सीटों का ही नुकशान होगा, लेकिन बिहार को बहुत बड़ा नुकसान होगा और वह होगा ‘राजनीतिक स्थिरता’ का, जो विकास की पहली जरूरी शर्त है ।
अगर आरजेडी-जेडीयू गठबन्धन बनाम बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती तो नुकसान भले कुछ नेताओं का होता, लेकिन फायदे में बिहार रहता, क्योंकि दोनों ही गठबन्धन के पास सुशासन का भरोसा देने का एक मजबूत आधार था। जनता परिवार के पास सुशासन का भरोसा दिलाने के लिए नीतीश कुमार का चेहरा था तो बीजेपी गठबन्धन के पास मोदी का। दोनों के पास ऐसे चेहरे थे, जिसके बूते बिहार के सुशासन की राह पर आगे बढ़ते रहने की उम्मीद की जा सकती थी। लेकिन एक साथ कई मोर्चे के खुल जाने से बिहार के फिर से बे-पटरी हो जाने का खतरा पैदा हो गया है।
पिछले लोक सभा चुनाव में मोदी के पक्ष में पूरे देश में लहर थी और अब तक राज्य में नीतीश कुमार का साथ देते आये लोगों ने भी मोदी के पक्ष में वोट किया था। लेकिन उस समय उनका ये कहना था कि लोक सभा देश का चुनाव है इसलिए मोदी को वोट दे रहे हैं, लेकिन जब बिहार विधान सभा का चुनाव होगा यानी राज्य का चुनाव होगा तो वो नीतीश कुमार को ही चुनेगें। लोक सभा चुनाव के बाद राज्य की जनता ने ‘सॉरी नीतीश’ कहकर उन्हें यह सन्देश दे दिया था कि लोक सभा चुनाव के नतीजों से हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है। लेकिन जनता के इस ‘सॉरी’ बोलने से नीतीश कुमार लोक सभा चुनाव के सदमे से नहीं उबार पाए। नीतीश कुमार को अगर अपने उस सुशासन पर, जिसके ऊपर बिहार की जनता नाज कर रही थी, अगर उसके ऊपर नीतीश कुमार का खुद का भरोसा होता तो वो माँझी को कुर्सी सौंप कर बिहार को अनिश्चितता के अन्धकार में छोड़ देने की गलती नहीं करते। जीवन में गलत और सही दोनों तरह के फैसले होते हैं, लेकिन आगे चलकर अपने गलत फैसले में सुधार कर लेने में ही समझदारी है। यह सोचकर अपने गलत फैसले पर टिके रहना कि लोग क्या कहेंगे, सबसे बड़ा गलत फैसला है। लालू यादव गठबन्धन में भले आनाकानी कर रहे हों, कांग्रेस ने इस संकट की घड़ी में नीतीश कुमार का साथ देने का फैसला लेकर अपनी पुरानी राजनीतिक भूलों को सुधारने की कोशिश की है। इससे कांग्रेस को भी फायदा होगा और नीतीश कुमार को भी कठिन फैसले लेने में सहूलियत होगी।
केजरीवाल ने नीतीश कुमार से तो सुशासन का सबक ले लिया, लेकिन नीतीश कुमार केजरीवाल की गलती और सफलता से राजनीतिक सबक लेने से कहीं न कहीं थोड़ा चूक गये हैं। अभी भी वक्त है, नीतीश कुमार, केजरीवाल की भूल से और आत्म-विश्वास की बदौलत हासिल राजनीतिक सफलता से सबक ले सकते हैं। नीतीश कुमार की तरह केजरीवाल को भी मीडिया कमजोर आँक रहा था, लेकिन अन्तिम फैसला जनता ने केजरीवाल के पक्ष में ही लिया। जनता ने उन्हें माफ भी किया और फिर दोबारा प्रचन्ड बहुमत के साथ सत्ता भी सौंपी ताकि उन्हें बहुमत नहीं होने के कारण, काम नहीं कर पाने का बहाना न मिल सके। जब जनता उस केजरीवाल को माफ कर सकती है, उसके ऊपर भरोसा कर सकती है, जिसे अभी ये साबित करना है कि वह एक परफॉर्मर है या नहीं तो फिर उस नीतीश कुमार पर जनता क्यों भरोसा नहीं करेगी जो अपने आपको एक बड़ा परफॉर्मर साबित कर चुका है ? बिहार की जनता के विश्वास और समझ पर नीतीश को भरोसा करना चाहिए और तत्काल कांग्रेस-वाम दलों के साथ गठबन्धन फाइनल कर लालू प्रसाद को ये बता देना चाहिए कि उनके गठबन्धन में उनके लिए कितनी जगह उपलब्ध है। अभी गेंद लालू प्रसाद नीतीश कुमार के पाले में फेंक चुके हैं। अब नीतीश कुमार को गठबन्धन का फाइनल खाका खींचकर बॉल लालू प्रासाद के हाथ में जी भर खेलने के लिए छोड़ देनी चाहिए। लालू प्रसाद क्या फैसला लेंगे पता नहीं, लेकिन जनता जो फैसला लेगी, वह बिहार के हक में होगा। अब तक नेताओं का भाग्य तय करती आ रही बिहार की जनता इस बार खुद तय करेगी कि उसका भाग्य-विधाता कौन होगा ?
(देश मंथन, 04 जून 2015)




श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार












