दूसरे करें तो रासलीला, ‘आप’ करे तो कैरेक्टर ढीला

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संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना कर उनके लाभ की कथित व्यवस्था करने के आरोपी अरविन्द केजरीवाल से उम्मीद की जा रही है कि वे अपने विधायकों का इस्तीफा करवा दें और चुनाव हो जाने दें।

यह अपेक्षा गलत नहीं है। आदर्श स्थितियों में यही होना चाहिए था। पर 67 साल के भ्रष्टाचार और अलग चाल, चरित्र तथा चेहरे की राजनीति ने आदर्श स्थितियाँ छोड़ी कहाँ है? फिर भी मैं ऐसी माँग करने वालों के खिलाफ नहीं हूँ। पर इसके पीछे जो राजनीति और मनोरंजन है उसे छोड़ने के पक्ष में भी नहीं हूँ। क्योंकि इससे आदर्श स्थितियों का पता तो चल रहा है। उसके नफा-नुकसान भी समझ में आ रहे हैं। राजा हरिश्चंद्र होने और उसका ढोंग करने का अंतर मालूम हो रहा है। सबकी राजनीति दिख रही है।
मामला यह है कि दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने जो किया वह तकनीकी तौर पर गलत है लेकिन अन्य राज्यों में भी ऐसा ही है। उसे सुधारने की व्यवस्था भी होती रही है। अरविन्द केजरीवाल बता रहे हैं कि मैंने कुछ गलत नहीं किया। दूसरे राज्यों में भी ऐसा है और वर्षों से होता आया है तो उनके विरोधी कह रहे हैं कि आप तो ईमानदारी की बात करते थे। फिर आपने ऐसा क्यों किया या आप बचाव में तर्क क्यों दे रहे हैं। जहाँ तक स्थितियों को समझने या देखने की बात है, कई चीजें स्पष्ट होती हैं। इस मामले में दिल्ली विधानसभा के विधेयक को राष्ट्रपति ने सहमति नहीं दी। कायदा कहता है कि राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करता है। इस हिसाब से सब कुछ स्पष्ट है। पर यह मामला इतना स्पष्ट नहीं है।
फिर भी, यह सही है। अरविन्द केजरीवाल को ऐसा नहीं करना चाहिए था। पर तर्क दे रहे हैं ताकि अपने विरोधियों को बता सके कि उन्होंने जो गलत किया है वह नया नहीं है। और पहले से होता रहा है। कुछ काम कायदे कानून से किए जाते हैं कुछ रिवाज और परंपरा के अनुसार किये जाते हैं। मैं नहीं कह रहा कि अरविन्द केजरीवाल ने सही किया पर पोल खोलने का काम सही कर रहे हैं। रिवाज और परंपरा के नाम पर क्या-क्या होता रहा है जनता को पता चल रहा है तो क्या बुरा है? विरोधी जिसे चोरी, बेईमानी, गलत या अनैतिक कह रहे हैं वह पहले से होता आया है और कौन-कौन करता रहा है। यह इसलिए भी जरूरी है कि 21 विधायकों के चुनाव फिर से हों तो यह स्पष्ट रहे कि अरविन्द केजरीवाल की ईमानदारी के कारण हो रहा है। केंद्र सरकार से समझौता नहीं करने के कारण हो रहा है। यह सही ना भी तो हो अरविन्द केजरीवाल ऐसा माहौल क्यों ना बनाएं? कैराना और दादरी की तुलना में तो यह कम नुकसानदेह है।
अरविन्द केजरीवाल केंद्र सरकार से तालमेल करके आराम से सरकार चले सकते थे। हालाँकि, अभी भी उनका यही कहना है कि टकराव का रास्ता केंद्र सरकार ने चुना है। फिर भी मान लिया जाए कि वे केंद्र से समझौता करने के मूड में नहीं हैं। 21 विधायकों को बचाने के लिए वे माफी तो नहीं माँग रहे। कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं। डटे हुए हैं कि उन्होंने गलत नहीं किया है। अगर गलत किया है तो साबित हो जाने दीजिए। दूसरी ओर, उन्हें अधिकत्तम कार्रवाई से डर नहीं है या उसके डर से समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। राजनीतिक दृष्टि से यह गलत हो, दिल्ली की जनता को भरमाया जा सकता हो कि इससे दिल्ली में अच्छे काम नहीं हो पा रहे हैं। पर सच यही है कि जो मजबूत होगा वही गलत का विरोध कर सकेगा। गलत का विरोध करने के लिए मजबूत होना पहली शर्त है। दूसरी दूसरों की गलतियों को जानना। वरना विदेशों में रखा काला पैसा वापस लाने की बात करने वाला स्वच्छता अभियान चलाने लगेगा। उसके लिए टैक्स भी लगा देगा।
मेरा मानना है कि केंद्र सरकार ने हिम्मत दिखाई, अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ डट पाई तो 21 विधायकों का इस्तीफा होगा ही। लेकिन केंद्र सरकार (और दूसरी सरकारों की भी) पोल तो खुलने दीजिए। अरविन्द केजरीवाल कहाँ माफी माँग रहा है। वो कहाँ सौदा कर रहा है। वो तो खुल कर लड़ रहा है। केंद्र जो बिगाड़ सकता है बिगाड़ ले। इसमें पोल खुल रहे हैं तो जनता के लिए अच्छा ही है। मुझे लग रहा है कि अरविन्द केजरीवाल का यह बताना कि उन्होंने कुछ नया या गलत नहीं किया है वह भले ही तकनीकी तौर पर गलत हो ठीक है। इससे कई चीजें सामने आ रही हैं। जनता देख रही है।
मुझे अरविन्द केजरीवाल को नहीं, केंद्र सरकार को देखना है कि वह अरविन्द केजरीवाल से किस सीमा तक लड़ सकती है। अरविन्द केजरीवाल की सीमा तो समझ में आ रही है। उन्हें हो सकने वाला अधिकतम नुकसान भी। केंद्र सरकार कहाँ रुक जाएगी, समझौता कर लेगी, माफ कर देगी, दुबारा चुनाव के खर्चे को टालने के लिए छोड़ देगी यह देखना है। और यह भी कि उसके हाथ में क्या-क्या है। या कि अंत में फैसला कोर्ट में ही होगा। नोट करने वाली बात है कि अरविन्द केजरीवाल उदाहरण दे रहे हैं तो डर कर या माफी माँगने या अपना बचाव करने के लिए नहीं लड़ते हुए दे रहे हैं। कल भी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि नहीं चलेगा।
(देश मंथन, 16 जून 2016)

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