संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने राज बब्बर को अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 9 माह बाकी है, इसलिए तब तक कोई नियुक्ति होगी, वह चुनाव की दृष्टि से मानी जायेगी। तो देखना पड़ेगा कि कांग्रेस ने राज बब्बर को अध्यक्ष नियुक्त कर कौन से समीकरण साधे हैं।
राज बब्बर आगरा के एक पंजाबी परिवार में पैदा हुए और रंगमंच की अभिनेत्री नादिरा से विवाह किया। बाद में उन्होंने नादिरा को तलाक दे कर अभिनेत्री स्मिता पाटिल से शादी की। राज बब्बर 1989 में बरास्ता वीपी सिंह के जनता दल राजनीति में आये और जनता दल टूटने पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में रहे और कई बार सांसद बने। वर्ष 2006 में राज बब्बर सपा से निकाले जाने के बाद 2008 में कांग्रेस में शामिल हुए। राज बब्बर के खाते में फिरोजाबाद के चुनाव में मुलायम सिंह की बहू डिंपल यादव को हराने की उपलब्धि है। वर्ष 2013 में राज बब्बर यह बयान दे कर काफी विवादों में रहे कि आम आदमी को 12 रुपये में एक वक्त का भरपेट भोजन उपलब्ध है।
राज बब्बर की नियुक्ति प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और फैजाबाद के निवासी निर्मल खत्री के इस्तीफे के बाद हुई है। उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से नियुक्ति रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहले चाहते थे कि प्रियंका गाँधी को आगे किया जाये। बात न बनने पर उन्होंने ब्राह्मण चेहरा आगे लाने की रणनीति बनायी। इसके लिए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के मानिंद ब्राह्मण परिवार की बहू और कन्नौज से सांसद रह चुकी शीला दीक्षित का नाम आगे बढ़ाया गया। लेकिन दीक्षित पीछे हट गयी। इस बीच कांग्रेस आलाकमान को उत्तर प्रदेश का कार्यभार देखने के लिए केंद्रीय नेता गुलाम नबीं आजाद को प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में वाराणसी से सांसद रह चुके राजेश मिश्र, केंद्रीय मंत्री रह चुके शाहजहाँपुर के जितिन प्रसाद और प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके प्रतापगढ़ के रामपुर के विधायक प्रमोद तिवारी के नामों पर चर्चा हुई। बहुत रस्साकशी के बावजूद इन तीनों में से किसी नाम पर सहमति नहीं बन सकी। आखिरकार कांग्रेस ने राज बब्बर और अमेठी के संजय सिंह के नामों पर चर्चा की। और अंतत: गुलाब नबी आजाद के प्रस्ताव पर कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गाँधी ने राज बब्बर के नाम पर मुहर लगा दी।
राज बब्बर के अध्यक्ष नियुक्त होने पर कुछ कांग्रेसी बता रहे हैं कि कांग्रेस जातिवाद में विश्वास नहीं रखती, इसलिए जातिगत समीकरणों से परे राज बब्बर को अध्यक्ष बनाया गया है। इस बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को अब किसी भी जाति के अपने साथ होने का भरोसा नहीं है और उसे किसी जाति के साथ आने की उम्मीद भी बहुत नहीं है। उत्तर प्रदेश-बिहार की राजनीति में जाति का फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण है। पिछड़ी जातियाँ कभी कांग्रेस के साथ नहीं रहीं। दलित कभी साथ थे लेकिन अब मायावती की अहमियत स्थापित हो जाने के बाद कांग्रेस के लिए दलितों को साथ लाना कम से कम नौ महीने में असंभव लगता है। बच गयी अगड़ी जातियाँ, तो प्रशांत किशोर कांग्रेस की लुटिया डूबने से बचाने के लिए इन्हीं जातियों पर नजर लगाये थे। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश से ब्राह्मण नेताओं में कमलापति त्रिपाठी के पौत्र राजेश पति त्रिपाठी गाँधी परिवार के बहुत नजदीक माने जाते हैं। ऐसे में राजेश मिश्र का अध्यक्ष बनना थोड़ा मुश्किल था। जतिन प्रसाद बहुत नये हैं और बहुत सज्जन भी माने जाते हैं, प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को संभालना उनकी सज्जनता के वश का नहीं था। प्रमोद तिवारी जमीनी नेता हैं लेकिन उनकी जमीन बस अपने विधानसभा तक सीमित है।
ऐसे में दूसरी अगड़ी जाति क्षत्रिय बचती है। लेकिन क्षत्रियों की जातिगत राजनीति में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नता राजनाथ सिंह लंबे समय की कोशिशों के बाद अच्छी पैठ बना चुके हैं। ऐसे में संजय सिंह अपनी जाति को साध सकने वाले नेता के रूप में सामने नहीं आते। दूसरे, संजय सिंह संजय गाँधी के अति अभिन्न मित्रों में थे और गाँधी परिवार की अंदरूनी लड़ाई में उन्होंने मेनका का साथ दिया था। वह कई दलों में रह चुके हैं, ऐसे में गाँधी परिवार के लिए बहुत विश्वसनीय नहीं है। तब जा कर राज बब्बर का नाम आता है जिनका अपना कोई जनाधार नहीं है, किसी जातिगत समीकरण में फिट नहीं बैठते लेकिन एक बात है, कि इन कारणों से उनकी राजनीति आलाकमान का विश्वसनीय बनने की ही है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश में वे अध्यक्ष पद के लिए वे मुफीद बैठते हैं।
राज बब्बर कभी संगठनकर्ता या जननेता नहीं रहे। ऐसी स्थिति में उनकी नियुक्ति से कांग्रेस को केवल एक फायदा होगा कि सूबे में पूरी जमीन धराशायी होने के बाद भी जिले-जिले में बँटी हुई कांग्रेस को एक ऐसा अध्यक्ष मिला है जो किसी स्थानीय गुट का नहीं है। इनकी दूसरी खासियत आलाकमान के लिए विश्वसनीय होना है। ऐसे में अब प्रशांत किशोर के लिए यही रास्ता है कि वह चुनाव प्रचार समिति के जरिये अपनी रणनीति को जमीन पर लाने की कोशिश करें और अपनी रणनीति के माकूल नेताओं को इस समिति में रखें।
(देश मंथन 14 जुलाई 2016)