संदीप त्रिपाठी :
पश्चिम बंगाल के हालिया स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने विरोधियों को धूल-धुसरित करते हुए अपना परचम लहराया है। लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह पहलू है कि भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों में दूसरे स्थान पर रही है।
महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि माकपा यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) इस प्रदेश में तीन दशक तक राज करने के बाद अब अपनी पकड़ पूरी तरह से खोती दिख रही है, जबकि कांग्रेस भी राज्य में अपना वजूद खोने लगी है। इनके मुकाबले भाजपा, जो अपनी स्थापना से अब तक राज्य में कहीं गिनती में नहीं आती थी, वह तृणमूल के मुकाबले मुख्य विरोधी दल बनती जा रही है।
निकाय चुनावों में भाजपा कांग्रेस-वामदलों से आगे
13 अगस्त को प्रदेश के सात नगर निकायों – नालहाटी (बीरभूम), बुनियादपुर (दक्षिण दिनाजपुर), पंसकुरा, हल्दिया (पूर्व मिदनापुर), घूपगुड़ी (जलपाईगुड़ी), कोपस कैंप (नादिया), दुर्गापुर (बर्दमान) के लिए कुल 148 वार्डों के लिए मतदान हुआ। इसमें तृणमूल कांग्रेस ने 140 सीटों पर विजय हासिल की। पिछली बार के मुकाबले उसे 68 सीटें ज्यादा मिलीं। भाजपा को छह सीटें मिलीं और उसे तीन सीटों का फायदा हुआ। कई सीटों पर भाजपा मामूली अंतरों से हारी है। वामपंथी दलों में मात्र एक सीट फारवर्ड ब्लॉक को मिली और शेष वामदल खाली हाथ रहे। इससे वाम दलों को कुल 36 सीटों का नुकसान हुआ। कांग्रेस को शून्य सीटें मिलीं और उसे 15 सीटों का नुकसान हुआ। इससे पूर्व मई, 2017 में भी सात नगर निगमों दार्जिलिंग, कुर्सियांग, कल्मपोंग, डोकलम, पुजाली, रायगंज और मिरीक के चुनाव हुए थे। इसमें चार निगम तृणमूल के खाते में और पहाड़ी इलाके के तीन निगम गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के हाथ आये। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा पश्चिम बंगाल में भाजपा की सहयोगी पार्टी है। इस चुनाव में कुल 148 वार्डों में से तृणमूल को 68 सीटें, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और भाजपा गठबंधन को 72 वार्डों में जीत हासिल हुई थी। इन चुनावों में कांग्रेस और वाम गठबंधन को कुल 5 सीटें मिली थीं।
प्रदेश के लिए भाजपा की रणनीति
भाजपा पश्चिम बंगाल में अपना प्रभाव बनाने के लिए जी-तोड़ कोशिशों में जुटी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह स्वयं इस प्रदेश पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। हर जिले में सड़क पर तृणमूल के खिलाफ भाजपा के कार्यकर्ता ही दिखते हैं। इससे तृणमूल को भी समझ में आ रहा है कि प्रदेश में भाजपा ही उसके खिलाफ मुख्य संघर्ष में है। तृणमूल के कार्यकर्ताओं का भी बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल होने का क्रम जारी है। यही वजह है कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को भाजपा भारत छोड़ो का नारा देना पड़ता है। भाजपा ने तृणमूल को घेरने के लिए कई स्तरों पर रणनीति बनायी है। एक तो ममता सरकार के अत्याचार, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के खिलाफ भाजपा सड़क पर हंगामे का कोई मौका नहीं छोड़ रही। दूसरे, भाजपा ने बंगाल के लोगों को आकर्षित करने के लिए मछली महोत्सव, संगीत महोत्सव और खेल महोत्सव का सिलसिला प्रारंभ करने की योजना बनायी है। भाजपा की नजर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनावों पर हैं, जहाँ उम्मीद है कि 77 हजार बूथ होने और हर मतदाता के एक-दूसरे को पहचानने के कारण उक्त चुनाव में तृणमूल कांग्रेस चुनावी धाँधली करने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो पायेगी।
स्थापना के तीन दशक खाली
पश्चिम बंगाल में भाजपा की इस पुरजोर कोशिश का मतलब समझने के लिए प्रदेश में भाजपा के चुनावी इतिहास पर नजर डालना आवश्यक है। भाजपा को अपनी स्थापना (6 अप्रैल, 1980) के बाद तीन दशक तक पश्चिम बंगाल विधानसभा में खाली हाथ रहना पड़ा। सबसे पहले 1982 के चुनाव में पार्टी ने 52 प्रत्याशी खड़े किये और सभी की जमानत जब्त हुई। पार्टी को महज 0.58% वोट मिले। 1987 के चुनाव में पार्टी ने 57 प्रत्याशी खड़े किये जिसमें कोई नहीं जीता और पार्टी को कुल 0.51% वोट मिले। वर्ष 1991 के विधानसभा चुनाव में, जब देश में राम लहर चल रही थी, पार्टी ने 291 प्रत्याशी खड़े किये, तब भी कोई सीट नहीं मिली, हालाँकि वोट प्रतिशत बढ़ कर 11.34% पर आ गया। लेकिन 1996 के चुनाव में यह बढ़त खत्म हो गयी और पार्टी को महज 6.45 प्रतिशत वोट मिले। वर्ष 2001 के चुनाव में पार्टी को 5.19% वोट मिले। वर्ष 2006 में पार्टी ने महज 29 प्रत्याशी उतारे और कुल 1.93% वोट हासिल किये।
2011 तक फर्श पर थी भाजपा
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 184 सीटें और 38.93% वोट मिले थे। माकपा को 40 सीटें (30.08% वोट), भाकपा को दो सीटें (1.84% वोट), फारवर्ड ब्लॉक को 11 सीटें (4.80% वोट) और आरएसपी को 7 सीटें (2.96% वोट) मिली थीं। कांग्रेस को 42 सीटें (9.09% वोट) मिली थीं। इसके अलावा गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को 3 सीटें, डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी को 1 सीट, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया को 1 सीट, सपा को 1 सीट और निर्दलीयों को दो सीटें मिली थीं। भाजपा को इस विधानसभा चुनाव में कोई सीट हासिल नहीं हुई थी और महज 4.06% वोट मिले थे। पार्टी की हालत इतनी बुरी थी कि 294 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी के 289 प्रत्याशियों में से 285 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी।
2014 से मिले थे संकेत
वर्ष 2014 में लोकसभा के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बनने में सफल हुई थी। भाजपा को कुल 17.02% वोट और दो सीटें मिली थीं। पहले नंबर पर तृणमूल कांग्रेस थी जिसे 39.79% वोट के साथ 34 सीटें मिली थीं। वोट प्रतिशत के हिसाब से माकपा 22.96% वोट के साथ दूसरे स्थान पर थी, हालाँकि उसे भी मात्र दो सीटें ही मिली थीं। कांग्रेस को हालाँकि चार सीटें मिली थीं, लेकिन उसे कुल वैध मतों का महज 9.69% हिस्सा प्राप्त हुआ था। तीन अन्य वामपंथी दलों में भाकपा को 2.36%, आरएसपी को 2.46% और फारवर्ड ब्लॉक को 2.17% वोट मिले थे, हालाँकि इनके खाते में कोई सीट नहीं गयी थी।
2016 विधानसभा चुनाव में बदली स्थिति
लेकिन वर्ष 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति बदल गयी। भाजपा का न सिर्फ मत प्रतिशत बढ़ कर 10.16% हो गया, बल्कि राज्य विधानसभा में इसे तीन सीटें भी मिलीं। तृणमूल कांग्रेस को इस चुनाव में 45.18% वोटों के साथ 211 सीटें मिलीं। माकपा को 26 सीटें (19.75% वोट), भाकपा को 1 सीट (1.45% वोट), फारवर्ड ब्लॉक को 2 सीटें (2.82% वोट) और आरएसपी को 3 सीटें (1.67% वोट) मिलीं। कांग्रेस को इस चुनाव में 44 सीटें (12.25% वोट) मिलीं।
पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण
पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्रदेश है, क्योंकि यह तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा के अलावा चौथा बड़ा प्रदेश है जहाँ भाजपा कभी अपनी जमीन नहीं बना पायी। दूसरे, पश्चिम बंगाल जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। इस नाते भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल का विशेष महत्व है। तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2014 के चुनाव में कई ऐसे प्रदेश रहे, जहाँ भाजपा ने लगभग शत-प्रतिशत सफलता पायी। अब वर्ष 2019 में यदि उन प्रदेशों में उस सफलता में मामूली कमी भी आती है तो उसकी भरपाई के लिए पार्टी को ऐसे राज्यों से सीटें चाहिए होंगी, जहाँ भाजपा वर्ष 2014 में कमजोर थी। ऐसे में वर्ष 2019 के लिहाज से पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल का महत्व बढ़ जाता है। यही वजह है कि भाजपा इस प्रदेश में लगातार मेहनत कर स्थितियाँ बदलने में जुटी है।
(देश मंथन, 19 अगस्त 2017)