देश मंथन डेस्क
प्रेम पाने का एक मात्र उपाय है कि प्रेम करो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
इस कहानी को लिखने से पहले मैंने कम से कम हफ्ता भर इंतजार किया है। चाहता तो एक हफ्ता पहले ही पूरी कहानी आपको सुना सकता था। महीना भर पहले मैं अपनी उस परिचित के घर गया था, जिनकी बेटी की शादी कुछ ही दिन पहले हुई है। शादी खूब धूम-धाम से हुई थी, लेकिन शादी के बाद ससुराल में अनबन शुरू हो गयी। जरा-जरा सी बात पर झगड़े होने लगे। मेरे पास लड़की की माँ का फोन आया था कि सोनू की उसके ससुराल में नहीं बन रही।
युवा ही लाएंगे हिंदी समय!

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
अब लडाई अंग्रेजी को हटाने की नहीं हिंदी को बचाने की है
सरकारों के भरोसे हिंदी का विकास और विस्तार सोचने वालों को अब मान लेना चाहिए कि राजनीति और सत्ता से हिंदी का भला नहीं हो सकता। हिंदी एक ऐसी सूली पर चढ़ा दी गयी है, जहां उसे रहना तो अंग्रेजी की अनुगामी ही है। आत्मदैन्य से घिरा हिंदी समाज खुद ही भाषा की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है।
ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ।
वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।
सोशल मीडिया पर क्रांतिदूतों से डर

यशवंत राना:
नींद कभी-कभी जरूरी होती है और बहुत अच्छी लगती है। आज दिनभर सोता रहा और बस सोता ही रहा। कभी जगा भी तो जरूरत भर का काम करके फिर सो गया। अब भी शर्म से रोक रखा है कि यार ये भी क्या है ! समय की लाज भी तो कोई चीज होती है! उसके लिए ही कुछ कर लो। थोड़ा लिख-पढ़ लो। इतना सोने के बाद फिर सोना भी क्या सोना है!
‘आप’ की झाड़ू, ‘आप’ पर!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
आम आदमी पार्टी का बनना देश की राजनीति में एक अलग घटना थी। वह दूसरी पार्टियों की तरह नहीं बनी थी। बल्कि वह मौजूदा तमाम पार्टियों के बरअक्स एक अकेली और इकलौती पार्टी थी, जो इन तमाम पार्टियों के तौर-तरीकों के बिलकुल खिलाफ, बिलकुल उलट होने का दावा कर रही थी। उसका दावा था कि वह ईमानदारी और स्वच्छ राजनीतिक आचरण की मिसाल पेश करेगी। इसलिए 'आप' के प्रयोग को जनता बड़ी उत्सुकता देख रही थी कि क्या वाकई 'आप' राजनीति में आदर्शों की एक ऐसी लकीर खींच पायेगी कि सारी पार्टियों को मजबूर हो कर उसी लकीर पर चलना पड़े।
चीफ जस्टिस साहब, चंद्र बाबू की आँखें ढूँढ़ रही हैं आपको!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
बताइए तो एक शरीफ आदमी को इतने-इतने साल जेल में रखना कहाँ तक मुनासिब है? जिन लोगों ने भी शहाबुद्दीन साहब की जमानत और रिहाई का रास्ता प्रशस्त किया, वे तमाम लोग संयुक्त रूप से अगले भारत रत्न के हकदार हैं। इनमें मैं जमानत देने वाले उन जज साहब की भी पैरवी कर रहा हूँ, न्याय का माथा ऊँचा करने में जिनके उल्लेखनीय योगदान की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा।
लंगट सिंह कॉलेज के वे दिन

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
वह 1987 का साल था जब मुझे हाई स्कूल यानी दसवीं पास करने के बाद कॉलेज में नामांकन लेना था। तब बिहार में 11वीं यानी इंटर से कॉलेज में पढ़ाई होने लगती थी। नंबर के आधार पर हमारा नामांकन मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में हो गया।
रोशनी का चिराग

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मेरी कहानी पढ़ने से पहले आप वीडियो पर क्लिक करके इस बच्ची के साथ अपना एक रिश्ता कायम कर लीजिएगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्ची का नाम शिवानी है या संध्या। पर फर्क पड़ता है उन लोगों की कोशिशों से जो ऐसे बच्चों की आवाज बनने को तत्पर होते हैं।
हमारा कश्मीर, तुम्हारा बलूचिस्तान

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देर से ही सही भारत की सरकार ने एक ऐसे कड़वे सच पर हाथ रख दिया है जिससे पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को मिर्ची लगनी ही थी। दूसरों के मामले में दखल देने और आतंकवाद को निर्यात करने की आदतन बीमारियाँ कैसे किसी देश को खुद की आग में जला डालती हैं, पाकिस्तान इसका उदाहरण है। बदले की आग में जलता पाकिस्तान कई लड़ाईयाँ हार कर भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है और कश्मीर के बहाने उसे जिलाए हुए है। पड़ोसी को छकाए-पकाए और आतंकित रखने की कोशिशों में उसने आतंकवाद को जिस तरह पाला-पोसा और राज्याश्रय दिया, आज वही लोग उसके लिए भस्मासुर बन गये हैं।
रिश्तों में अच्छाई छाँटना सीखिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कहानी तो सुनानी है शिवानी की। कहानी सुनानी है नीति की और कहानी सुनानी है शुभि की। इतनी ही क्यों, वो ढेर सारी कहानियाँ मुझे आपको सुनानी हैं, जिन्हें मैं जबलपुर से आपके लिए अपने मन के कैमरे में छुपा कर लाया हूँ। अपनी कहानियों की पोटली एक-एक करके रोज खोलूंगा। आप हतप्रभ रह जाएंगे कि उन ढेर सारे मासूमों की कहानी सुन कर, जो कुछ बोल नहीं सकते, पर अपनी कहानी आपको सुनाएंगे। खुद, अपनी जुबान से।



संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
यशवंत राना:
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :




