देश मंथन डेस्क
किस्सा-ए-कोलस्ट्रोल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
देखोजी कैसी-कैसी फ्राडबाजी है दुनिया में। कैसा भला सा नाम है कोलस्ट्रोल, जैसे लुईस कैरोल, जैसे पामेला एंडरसन, जैसे शिंडी क्राफर्ड, पर कोलस्ट्रोल की हरकतें देख लो।
तोड़ो नहीं, जोड़ो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले साल मैं अमृतसर में वाघा बॉर्डर गया था। वाघा बॉर्डर पर हर शाम एक खेल होता है। देशभक्ति का खेल।
वहाँ अटारी सीमा पर शाम के पाँच बजे भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के गेट खुलते हैं और दोनों देशों के सैनिक अपने सैन्यबल का प्रदर्शन करते हैं।
धन्य किहिन विक्टोरिया जिन्ह चलाईस रेल

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
धन्य किहिन विक्टोरिया जिन्ह चलाईस रेल, मानो जादू किहिस दिखाइस खेल...
रणछोड़ ही असली योद्धा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक ठाकुर साहब थे। ठाकुर साहब की घनी-घनी मूंछें थीं।
दिल पे ना लें

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
आम आदमी पार्टी में कई मित्र हैं, बहुत से मित्र परेशान हैं, कुछ का कहना है कि अब केजरीवाल का पतन शुरू हो जायेगा।
सयाजीराव गायकवाड़ का बड़ौदा शहर

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
गुजरात का बड़ौदा शहर। अब इसका नाम बदलकर कागजों में वड़ोदरा हो गया है। पर ऐतिहासिक रूप से ये बड़ौदा है। लोग आम बोलचाल में उच्चारित करते हैं बरोदा। तो आप वड़ोदरा और बड़ौदा को एक ही समझें। बड़ौदा मैं पहुँचा दूसरी बार तो नेशनल हाईवे नंबर आठ से मुंबई की ओर से।
फुटबाल, फतवा और ममता!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
फुटबाल और फतवे का भला क्या रिश्ता? और कहीं हो न हो, लेकिन शासन अगर ममता बनर्जी का हो तो फुटबाल से फतवे का भी रिश्ता निकल आता है!
दुश्मन को अपना बनायें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये कहानी मैंने नहीं लिखी। कहीं सुनी थी, लेकिन इसमें संदेश इतना अच्छा छिपा था कि आपसे साझा किए बिना नहीं रह पाऊंगा।
एनएच 8 पर सूरत से बड़ौदा वाया गोल्डेन ब्रिज

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कोसांबा जंक्शन से मुझे बड़ौदा जाना था। मैंने आगे की यात्रा ट्रेन के बजाये बस से करने की सोची। क्योंकि इस मार्ग पर मैं ट्रेन से तो कई बार आवाजाही कर चुका था। कोसांबा में लोगों ने बताया कि भरुच की तरफ जाने वाली गाड़ियाँ हाईवे से मिलेंगी।
जुबाँ से दिये जख्म जिन्दगी भर नहीं भरते

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी एक परिचित किसी को कुछ भी कह सकती हैं। वो स्पष्टवादी हैं। उन्हें किसी को कुछ भी कह देने में कोई गुरेज नहीं है।
वो कोई भी बात कहने के बाद कहती हैं, “माफ कीजिएगा, मैं साफ बोलती हूँ।