देश मंथन डेस्क
‘सिन्धु-साक्षी’ पॉवर से सुपरपॉवर!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
दीपा करमाकर और साक्षी मलिक के परिवारों ने अपनी बेटियों की तैयारी के लिए खुद अपना घर-बार सब कुछ दाँव पर न लगा दिया होता, तो उनकी कहानियाँ आज किसी के सामने न होती। इनके और गोपीचन्द जैसों के लिए 'ईज ऑफ प्लेयिंग' जैसी कोई योजना बननी चाहिए न! 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के लिए तो हम बहुत काम कर रहे हैं, कुछ थोड़ा-सा काम 'ईज ऑफ प्लेयिंग' के लिए भी हो जाये!
जिन्दगी अनमोल है, पर असीमित नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कर्मचारी बॉस के आगे गिड़गिड़ा रहा था।
“सर, अब आप मुझे शाम सात बजे के बाद मत रोका कीजिए। मुझे रोज शाम सात बजे यहाँ से जाने दिया कीजिए।”
बाबा रामदेव लाएं पतंजलि हर्बल स्याही, ताकि नेताजी को खुजली न हो!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
इस देश में अगर राष्ट्रविरोधी कार्यक्रम आयोजित करने वालों अथवा उन्हें समर्थन देने वालों को भी पुलिस गिरफ्तार कर ले, तो बड़ी संख्या में लोग सरकार और पुलिस का विरोध करने लगते हैं। अगर किसी बड़ी आतंकवादी घटना के बाद जाँच एजेंसियों को किसी पर शक हो जाए और वह उसे गिरफ्तार कर ले, तो भी अक्सर लोग बवाल काटना शुरू कर देते हैं। लेकिन फिनलैंड-प्रेमी किसी नेताजी पर अगर कोई स्याही मात्र भी फेंक दे, तो उसे फौरन गिरफ्तार कर लिया जाता है और कोई इसकी आलोचना तक नहीं करता।
नेताजी (मुलायम) की जंग

सुशांत झा, पत्रकार :
मुलायम सिंह ने अपने हस्तलिखित पत्र से अमर सिंह को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। मुलायम सिंह ऐसे पहलवान हैं जिनका अगला दाँव भगवान को भी मालूम नहीं होगा।
एक विफल देश का शोक गीत !

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
पाकिस्तान प्रायोजित हमलों से तबाह भारत आज दुखी है, संतप्त है और क्षोभ से भरा हुआ है। उसकी जंग एक ऐसे देश से है जो असफल हो चुका है, नष्ट हो चुका है और जिसके पास खुद को संयुक्त रखने का एक ही उपाय है कि भारत के साथ युद्ध के हालात बने रहें। भारत का भय ही अब पाकिस्तान के एक रहने का गारंटी है।
आँखों को धोखा नहीं देना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
फातमागुल एक लड़की का नाम है। एक दिन शहर से कुछ लड़के मौज-मस्ती करने शहर से दूर निकलते हैं और एक गाँव से गुजरते हुए उनकी निगाह फातमागुल पर पड़ती है। फातमागुल सुंदर, सरल और किशोरावस्था से निकल रही बच्ची है। वो गाँव के ही एक लड़के से प्रेम करती है।
चुन लीजिए, आपको क्या चाहिए!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
पहला सवाल : अगर किसी सरकारी कर्मचारी, अफसर या न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध के लिए सजा मिलती है, तो वह तो अपनी नौकरी पर कभी वापस नहीं रखा जा सकता, तो फिर ऐसा ही पैमाना राजनेताओं के लिए क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? सजायाफ्ता नेता पर आजीवन रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए?
दूसरों के साथ वैसा न करें, जो हमें खुद पंसद नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
वैसे तो चुटकुले हँसाने के लिए होते हैं, लेकिन मैं कई चुटकुलों को सुन कर दुखी हो जाता हूँ।
आज मैं एक ऐसा ही चुटकुला आपको सुनाने जा रहा हूँ, जिसे सुन कर बहुत से लोग मुस्कुराते हैं, हँसते हैं, पर मैं उदास हो जाता हूँ।
तीन तलाक की नाजायज जिद!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्क बेहद हास्यास्पद है। एक तर्क यह है कि 'पुरुषों में बेहतर निर्णय क्षमता होती है, वह भावनाओं पर क़ाबू रख सकते हैं। पुरुष को तलाक़ का अधिकार देना एक प्रकार से परोक्ष रूप में महिला को सुरक्षा प्रदान करना है। पुरुष शक्तिशाली होता है और महिला निर्बल। पुरुष महिला पर निर्भर नहीं है, लेकिन अपनी रक्षा के लिए पुरुष पर निर्भर है।' बोर्ड का एक और तर्क देखिए। बोर्ड का कहना है कि महिला को मार डालने से अच्छा है कि उसे तलाक़ दे दो।
माफ कीजिए, इंसानियत का खून बहाने के लिए कैसे दूँ शुभकामनाएं?

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मेरे एक प्रिय मुस्लिम भाई ने शिकायत की कि देश-दुनिया के मुद्दों पर तो आप ख़ूब लिखते हैं, लेकिन हमें बकरीद की शुभकामनाएं तक नहीं दीं। क्या आप मुसलमानों को अपना भाई-बहन नहीं मानते? मुझे लगा कि यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब मुझे सार्वजनिक रूप से देना चाहिए, क्योंकि इससे मुझे समाज, सियासत और धर्म में व्याप्त बुराइयों पर चोट करने में मदद मिलेगी।



क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
सुशांत झा, पत्रकार :
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :




