राजीव रंजन झा :
मंगलवार 7 अप्रैल को सुबह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति सामने आते ही समाचार चैनलों की सुर्खियाँ बताने लगीं कि नहीं बदलेगी आपकी ईएमआई, लेकिन क्या बैंकों को उस दिन अपनी ईएमआई घटानी थी, और उन्होंने वह फैसला टाल दिया?
मौद्रिक नीति में तो आरबीआई बाकी तमाम बातों के अलावा अपनी ब्याज दरों की समीक्षा किया करता है, लेकिन इस मौद्रिक नीति में आरबीआई हमारी-आपकी ईएमआई तय नहीं करता। वह काम तो उसी बैंक का है, जिससे हम लोग कोई कर्ज लेते हैं। आरबीआई उन दरों को तय करता है, जिन पर वह बैंकों को उधार देता है और उनका अतिरिक्त पैसा अपने पास जमा करता है। इसके अलावा वह देश की बैंकिंग व्यवस्था में जरूरत के मुताबिक नकदी की मात्रा घटाने-बढ़ाने के उपाय करता रहता है।
बेशक, इस मौद्रिक नीति से देश में ब्याज दरों की दिशा तय होती है। दरअसल आरबीआई की ब्याज दरों का असर उन व्यावसायिक बैंकों की लागत पर होता है, जिनसे हम-आप कर्ज लेते हैं। जब उनके लिए पैसे की लागत कम होती है, तो वे अपने ग्राहकों को कम दर पर कर्ज दे पाते हैं और जब उनकी लागत बढ़ती है तो वे हमारी-आपकी ईएमआई बढ़ा देते हैं। मगर यह किसी स्विच की तरह काम नहीं करता कि इधर आरबीआई ने अपनी दरों को बदला और उधर लोगों की ईएमआई बदल गयी।
ऐसा होता तो इस साल जनवरी से अब तक लोगों की ईएमआई दो बार घट चुकी होती, क्योंकि इस दौरान आरबीआई दो बार अपनी दरों को घटा चुका है। लेकिन तब ऐसा नहीं हुआ। इस बात को लेकर आरबीआई भी गाहे-बगाहे अपनी चिंता जताता रहा कि उसकी ओर से दी जाने वाली राहत को बैंक अपने ग्राहकों तक पहुँचाने में देरी करते हैं। हालाँकि बैंकों का तर्क यह होता है कि आरबीआई की नीतियों और दरों में बदलाव का उनकी लागत पर असर होने में थोड़ा समय लगता है और जब तक उनकी लागत पर असर नजर न आने लगे, तब तक वे ग्राहकों को उसका फायदा नहीं दे सकते।
लेकिन अप्रैल की इस मौद्रिक नीति में एक दिलचस्प बात दिखी। भले ही आरबीआई ने अपनी दरें नहीं घटायीं, पर बैंकों को पिछली कटौतियों का फायदा ग्राहकों तक पहुँचाने की नसीहत इस ढंग से दी कि बैंकों को शाम होते-होते अपनी ब्याज दरें घटाने का ऐलान करना पड़ गया। हालाँकि मौद्रिक नीति आने के तुरंत बाद तमाम बैंक प्रमुखों ने यही संकेत दिये थे कि अभी उनकी ब्याज दरों में कटौती में देरी हो सकती है। मगर शाम तक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपनी बेस दर 10% से घटा कर 9.85% कर दी। बेस दर वह आधारभूत न्यूनतम दर है, जिससे किसी बैंक की ओर दिये जाने वाले कर्ज की ब्याज दरें जुड़ी रहती हैं। फिर निजी क्षेत्र के दिग्गज बैंकों – आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक की ओर से भी ऐसी ही खबरें आ गयीं। एचडीएफसी बैंक ने भी बेस दर को 0.15% अंक घटा कर 9.85% कर दिया। उसके बाद तमाम बैंकों की ओर से ऐसी कटौती का सिलसिला शुरू हो गया।
दरअसल अपनी इस मौद्रिक नीति में आरबीआई ने साफ-साफ कहा कि नीतिगत दरों (यानी आरबीआई की दरों) में आयी कमी का असर बैंकों की ब्याज दरों पर अभी तक नहीं हुआ है, वह भी ऐसी स्थिति में जब कर्ज की माँग कमजोर चल रही है और आरबीआई दो बार अपनी दरें घटा चुका है। आरबीआई ने इस बार अपनी ब्याज दरों में यथास्थिति बनाये रखने का मुख्य कारण बैंकों के इस रवैये को बताया। हालाँकि साथ में आरबीआई ने यह भी कहा कि उसे महँगाई दर पर आगे आने वाले आँकड़ों का भी इंतजार है।
आरबीआई ने पहले तो जनवरी के मध्य में अपनी रेपो दर (वह दर जिस पर वह बैंकों को छोटी अवधि के ऋण देता है) को घटाया था। उसके बाद अभी करीब महीने भर पहले ही 4 मार्च को फिर से इसमें कमी की गयी थी। लिहाजा कम ही विश्लेषक ऐसे थे, जिन्हें इस समय आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में एक और कटौती की उम्मीद थी।
लेकिन उद्योग संगठन कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने भी आरबीआई की मौद्रिक नीति आने के बाद अपने बयान में कहा कि आरबीआई ने नीतिगत दरों को स्थिर रख कर मौद्रिक ढील देने के बारे में बहुत सतर्क रवैया अपनाया है, ताकि महँगाई दर फिर से न बढ़ने लगे। हालाँकि सीआईआई का कहना है कि इस समय आरबीआई की दर में 0.25% की हल्की कटौती होने से उद्योग जगत और उपभोक्ताओं दोनों का उत्साह बढ़ता और उनकी ओर से माँग बढ़ती। खास तौर पर वाहन, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और आवासीय क्षेत्र में ऐसा होने की उम्मीद रहती और ये सभी रोजगार बढ़ाने वाले क्षेत्र हैं।
सीआईआई का तर्क है कि ऐसे समय में, जब कच्चे तेल और जिंसों (कमोडिटी) के भावों में काफी कमी आयी हुई है और उसके चलते अर्थव्यवस्था महँगाई के दबाव से काफी हद तक मुक्त हुई है, आरबीआई के पास अभी पर्याप्त गुंजाइश है कि वह महँगाई को नियंत्रण में रखने का लक्ष्य साधते हुए भी ब्याज दरों में कमी कर सके। सीआईआई की राय है कि जनवरी और मार्च में हुई कटौती के बाद अभी ब्याज दर में एक और कमी करने से विकास दर को तेज करने में मदद मिलती।
सीआईआई ने उम्मीद जतायी है कि इस साल के दौरान आरबीआई ब्याज दरों को और 1% तक घटायेगा। यानी अभी जनवरी और मार्च की दो बार की कटौती से जो रेपो दर 8% से घट कर 7.5% पर आयी है, उसे सीआईआई साल के अंत तक 6.5% पर देखना चाहता है। अगर महँगाई दर नियंत्रण में बनी रही और आरबीआई ने इन उम्मीदों को पूरा कर दिया तो निश्चित रूप से औद्योगिक क्षेत्र और आम उपभोक्ता दोनों को राहत मिलेगी।
देश के सबसे बड़े व्यावसायिक बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने भी इस तर्क को आगे बढ़ाया है कि खुद आरबीआई के अनुमानों के मुताबिक अब से लेकर अगस्त तक महँगाई दर नरम ही रहने के आसार हैं, लिहाजा रेपो दर में कटौती करना एक विकल्प हो सकता है।
इतना स्पष्ट है कि आरबीआई को आने वाले समय में अपनी हर नीतिगत समीक्षा के समय दरों में कटौती को लेकर एक चौतरफा दबाव झेलना होगा। अभी सबको अर्थव्यवस्था में तेजी का बेसब्री से इंतजार है और आरबीआई की दरों में कटौती उसके लिए एक मुख्य उत्प्रेरक है। इसलिए उद्योग जगत और बैंकिंग क्षेत्र के साथ-साथ केंद्र सरकार की ओर से भी इसके लिए दबाव जारी रहेगा।
(देश मंथन, 10 अप्रैल 2015)