राजीव रंजन झा
मुझे नहीं पता कि भारत के अगले वित्त मंत्री कौन होंगे, लेकिन उनके बारे में मैं शर्तिया एक बात की भविष्यवाणी कर सकता हूँ।
चिदंबरम जहाँ खर्चे कम आँक कर चल रहे हैं, वहीं आमदनी बढ़ने के अनुमानों पर वे कुछ ज्यादा आशावादी हैं। उन्होंने अगले साल के लिए सरकार को मिलने वाले कर राजस्व में 19% वृद्धि होने का अनुमान रखा है। इस साल तो यह वृद्धि केवल 11.8% हुई है। अगले साल इसमें इतनी तेजी कहाँ से आ जायेगी? अर्थव्यवस्था में बहुत सुधार की संभावनाएँ अब तक तो नहीं दिखी हैं। वित्त मंत्री ने जीडीपी में अगले साल 6% वृद्धि की बात कही है। लेकिन अब तक जितने अनुमान मैंने देखे हैं, उनमें यह सबसे ज्यादा सकारात्मक है, यानी जरूरत से ज्यादा आशावादी।
हाल में एक आँकड़ा सामने आया, जिस पर कम चर्चा हुई है। सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 2012-13 के विकास दर का आँकड़ा 5% के पिछले अनुमान से संशोधित करके 4.5% कर दिया है। इस घटाये हुए आँकड़े के ऊपर 2013-14 में 4.9% विकास दर का ताजा अनुमान सामने आया है। इसका मोटा मतलब यही है कि अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा, हाल के अनुमानों की तुलना में स्थिति कुछ बिगड़ी ही है। ऐसा नहीं होता तो घटे हुए आँकड़ों पर बेस इफेक्ट की वजह से इस साल की वृद्धि दर कुछ बेहतर नजर आती।
इन हालात में वित्त मंत्री किस आधार पर यह भरोसा कर रहे हैं कि अगले साल कर राजस्व में 19% की वृद्धि हो जायेगी? वे जीडीपी में वृद्धि पर भरोसा करने के बदले यह बता रहे हैं कि टैक्स और जीडीपी का अनुपात सुधर जायेगा। यानी भले ही लोग पहले जितना ही कमायेंगे, लेकिन वे सरकार को ज्यादा कर चुकायेंगे!
जब हमें पता है कि हर बार हमारे खर्च अनुमानों से ज्यादा हो जाते हैं, तो हम पहले से ही वास्तविक अनुमान क्यों नहीं सामने रखते? आप खर्च कम मान कर चलें और आमदनी ज्यादा मान कर चलें तो साल के अंत में बजट बिगड़ेगा ही।
आँकड़ों की इस बाजीगरी से वित्त मंत्री क्या हासिल कर पा रहे हैं? एक सक्षम वित्त मंत्री का खिताब। वे भले ही महँगाई नहीं घटा पाये और विकास की गाड़ी को फिर से पटरी पर नहीं ला पाये, लेकिन वे चाहते हैं कि लोग उन्हें अर्थव्यवस्था को ठीक से सँभाल पाने वाले वित्त मंत्री के रूप में याद रखें। पिछले बजट में 2013-14 के लिए सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) जीडीपी के 4.8% पर रहने का अनुमान जताया गया था। वे चाहते थे कि यह आँकड़ा उस लक्ष्य से नीचे आये।
इसीलिए जहाँ भी संभव था, वहाँ उन्होंने खर्चों में कटौती की। जहाँ कटौती संभव नहीं थी, वहाँ कोशिश की गयी कि खर्च अगले साल के खाते में डाल दिया जाये। साथ में कोशिश की गयी कि अगले साल की भी कुछ आमदनी इसी साल दर्ज कर ली जाये। तमाम सरकारी कंपनियों से वित्त वर्ष पूरा होने से पहले ही विशेष अंतरिम लाभांश (डिविडेंड) घोषित कराना इसी रणनीति का हिस्सा था। यह सब करके सरकारी घाटे को 4.8% के लक्ष्य की तुलना में 4.6% पर ला दिया गया। वाहवाही तो बनती है।
साथ में उन्होंने अगले वित्त मंत्री के लिए 4.1% सरकारी घाटे का लक्ष्य रख दिया है। कैसे पूरा होगा, यह तो अगले वित्त मंत्री की चिंता होगी। नये वित्त मंत्री सिर धुनेंगे कि मेरे हिस्से की कमाई आपने अपने नाम पर डाल ली, अपने खर्चे मुझे सौंप दिये और कह रहे हैं कि घाटा कम करके दिखाओ! लेकिन जब लक्ष्य पूरा नहीं होगा तो चिदंबरम फरवरी 2015 के बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहेंगे कि मैं तो अर्थव्यवस्था की रेलगाड़ी बिल्कुल सही चला रहा था, नये वित्त मंत्री ने इसे पटरी से उतार दिया। Rajeev Ranjan Jha
(देश मंथन, 20 फरवरी 2014)