आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है
केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, पर रेल बजट 2015-16 पेश करने में उन्होने जो किसी कवि की कल्पनाशीलता दिखायी है। चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम ठोस आंकड़ों की पुख्ता जमीन पर होता है। कवि को यह छूट होती है कि वह अपनी कल्पना के घोड़े कहीं भी दौड़ा ले।
कल्पना के जो घोड़े प्रभु ने दौड़ाये हैं, वो अगर मंजिल पर पहुंच गये, तो यह बजट भारत के एतिहासिक रेल-बजटों में गिना जायेगा। अगर कल्पना के घोड़े हकीकतों के पथरीले रास्ते पर दम तोड़ गये, तो यही कहा जायेगा कि रेल बजट 2015-16 में आइडिये तो एक से बढ़कर एक थे, पर……….।
रेल बजट 2015-16 दरअसल सिर्फ 2015-16 का दस्तावेज नहीं है। यह 2015-19 यानी करीब पांच साल का आइडिया पेश करता है यानी 8,56,020 करोड़ रुपये की निवेश योजना सामने रखता है। अच्छा आइडिया है। बजट रेल में सुविधा, सुरक्षा, क्षमता, आत्मनिर्भरता और निवेश बढ़ाने की वकालत करता है।
2015-16 के लिए बजट में योजना-व्यय 1,00,011 करोड़ रुपये का रखा गया है। यह 2014-15 के पुनरीक्षित अनुमान के मुकाबले 52 प्रतिशत ज्यादा है। इसमें गौर करने की बात यह है कि इस रकम का करीब 17,655 करोड़ रुपये उधार लेकर आयेगा और करीब 5,781 करोड़ रुपये पब्लिक-प्राइवेट पार्टिसिपेशन से आयेगा। यह दोनों मदें चिंता पैदा करनेवाली हैं।
कर्ज लेना बुरी बात नहीं है, अगर उस रकम से होनेवाली कमाई इतनी हो रही हो कि उससे कर्ज और ब्याज का भुगतान किया जा सके। अन्यथा कर्ज वित्तीय सेहत के लिए घातक ही होता है। कर्ज के बजाय दूसरा रास्ता अपनाया जाता, तो शायद बेहतर होता। कम से कम से उच्च श्रेणी के किरायों में कुछ बढ़ोत्तरी करके संसाधन संग्रह का प्रयास किया जा सकता था।
5,781 करोड़ रुपये पब्लिक-प्राइवेट-पार्टीसिपेशन यानी सरकार और निजी सहयोग से बननेवाली परियोजनाओं से आयेगा। यह रकम छोटी नहीं है। अब तक के प्रमाण यही हैं कि पब्लिक-प्राइवेट-पार्टीसिपेशन यानी पीपीपी योजनाएं कारगर साबित नहीं हुई हैं।
सरकार का नीतिगत समर्थन और निजी क्षेत्र की गतिशीलता को मिलकर कुछ ठोस और सकारात्मक परिणाम देने चाहिये। पर होता उलटा है, सरकार का निकम्मापन और निजी क्षेत्र की भ्रष्ट करने की क्षमताएं मिलकर परियोजनाओं को चौपट ही करती हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह बजट खर्चों को लेकर एकदम साफ है, पर रकम कहाँ से कैसे आयेगी, इस सवाल पर बहुत साफगोई नहीं दिखाता है। वह आनेवाले महीनों में देखना होगा।
खतरा यह है कि खर्च तो वास्तविक ही साबित हों, पर आय की मद सिर्फ आइडिया बनकर ना रह जायें।
खैर, यात्री किराये ना बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि आनेवाले महीनों में इसमें बढ़ोत्तरी हो ही नहीं सकती है। माल ढुलाई में कई मदों में बढ़ोत्तरी की गयी है। उनका देर-सबेर असर बढ़ी हुई महँगाई की शक्ल में ही देखने में आयेगा। बजट में कई शानदार आइडिये हैं।
बजट में साफ किया गया है कि रेलवे से जुड़ा संगठन आईआरसीटीसी संगठन गांधी-सर्किट टूरिज्म को बढ़ावा देगा। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के शताब्दी-वर्ष में ऐसा करने की योजना है। चुनावी भाषणों में मोदी टूरिज्म बढ़ाने के लिए कई तरह की रेल-यात्राओं की कल्पना प्रस्तुत करते थे, जैसे सिख तीर्थयात्रियों के लिए रेल-यात्रा, कृष्ण भक्तों के लिए रेल-यात्रा की योजना। वे तमाम योजनाएं फिलहाल आइडिये के स्तर पर ही देखने में आती हैं। उन आइडियों का ठोस रूप इस रेल बजट में दिखायी ना दिया।
आइडिये इस रेल बजट में बहुत शानदार हैं। एक आइडिया है कि रेलों और स्टेशनों के नाम कंपनियों के ब्रांडों के नाम के साथ जोड़कर कमाई की जा सकती है। यह कैसे फलीभूत होता, यह अभी देखना बाकी है।
कुल मिलाकर यह बजट आइडियों से भरपूर है। कल्पनाओं के घोड़े बहुत स्पीड से दौड़ रहे हैं, वो मंजिल तक पहुँचे या नहीं, इसके लिए अगले रेल बजट का इंतजार करना होगा।
(देश मंथन, 27 फरवरी 2015)