संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
बीमारू पर बड़ा कनफ्यूजन है। मुझे नहीं। कंफ्यूजन जानबूझकर पैदा किया जा रहा है। मोदी जी कह रहे हैं कि बिहार को बीमारू राज्य से बाहर निकालेंगे। मने बाकी को बीमारू ही रहने देंगे। जहाँ भाजपा की सरकार है उसे भी। आपको शायद ना मालूम हो पर झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भी बीमारू राज्य हैं। नीतिश कुमार मोदी की तरह होते तो बताते। लेकिन वो बुरा मान जाते हैं। झटका खा जाते हैं। मुझे नहीं लगता कि आम आदमी खासकर 80 के दशक में पैदा हुई आज की युवा पीढ़ी को बीमारू राज्य का मतलब भी पता है। अगर पता होता तो यह दावा ही नहीं किया जाता कि बिहार को बीमारू राज्य से अलग करेंगे। बिहार को बीमारू से अलग कर देंगे तो “मारू” बचेगा। और आप से वो नहीं संभलने वाला।
बीमारू ना अंग्रेजी का शब्द है ना हिन्दी का (ना फ्रेंच, लैटिन या गुजराती) का। जो भक्त आँख मूद कर ताली बजाने लगते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि हिन्दी पट्टी या उत्तर भारत के चार राज्यों – अविभाजित बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान (बंटा ही नहीं) और उत्तर प्रदेश को एक सा माना गया था और इन राज्यों के नामों के अंग्रेजी के पहले दो अक्षरों को मिलाने से बीमारू बनता है और इसका संबंध बीमार से नहीं है पर खराब आर्थिक स्थिति के कारण इसे बीमार कहा जाने लगा और प्रचलित भी हो गया।
यह 1980 के दशक की बात है और पहली बार आशीष बोस ने इस अवधारणा की चर्चा की थी। अब इन चार राज्यों में से तीन बंट चुके हैं और बाद में खराब आर्थिक हालत के कारण उड़ीसा को भी इनमें शामिल कर लिया गया था। हालाँकि अब इन राज्यों की स्थिति तब के मुकाबले काफी बेहतर और अलग है। बिहार में चुनाव है इसलिए बीमारू है – बाकी बीमारू राज्यों के नाम क्यों नहीं ले रहे हैं। जाहिर है, प्रधान मन्त्री का यह कहना कि वे बिहार को बीमारू राज्यों से अलग करेंगे कोई मायने नहीं रखता है। अव्वल तो यह अवधारणा ही खत्म हो चुकी है और स्थितियाँ काफी बदल गयी हैं और इनमें से किसी एक को अलग करने का भी मतलब यही होगा कि उसका जोरदार विकास हो जाये। पर इस लिहाज से बिहार को अलग करना इतना आसान नहीं है। झारखंड समेत जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है उससे भी उसकी योग्यता क्षमता सर्व विदित है और धुंआधार प्रगति के जरिए बिहार को अलग करना टेढ़ी खीर है – क्योंकि बीमारू राज्यों में बिहार वैसे ही सबसे पीछे या कमजोर है। क्यों है वह भी जान लीजिए।
बीमारू राज्यों का मतलब बीमार से लगाया जाता है इसलिए यह बताना वाजिब होगा कि इन राज्यों में प्रजनन दर (टीएफआर) क्रम से इस प्रकार है – 3.7, 3.2, 3.1 और 3.5। यानी बच्चे पैदा करने में बिहार सबसे आगे और उसके बाद उत्तर प्रदेश, फिर मध्य प्रदेश और राजस्थान है। जबकि राष्ट्रीय औसत 2.5 है। ऐसे में इन राज्यों को बीमार कहना बेमतलब है। सच तो यह है कि दक्षिण भारत में आबादी के विकास का प्रतिशत बहुत कम है और बीमारू राज्यों के योगदान से ही राष्ट्रीय औसत 2.5 है। वरना और कम होता। बिहार के पिछड़ेपन के बड़े कारणों में उसकी बड़ी आबादी या उच्च प्रजनन दर है। उसपर मोदी जी बोलते नहीं है। उन्हें तो सेल्फी विद डॉटर से मतलब है। सही या गलत – अलग बात है। ठीक है, बिहार में चुनाव है और चुनाव जीतने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए। इसके लिए जुमले भी उछालिए, झूठ भी बोलिए, डीएनए भी देखिए जानिए बताइए, गाली देने का मन हो तो वह भी कीजिए – सब का वैसा ही जवाब मिलेगा। बिहारियों का डीएनए जानते हैं तो इसपर शक नहीं होना चाहिए लेकिन अपना नहीं तो प्रधान मन्त्री पद की गरिमा का ख्याल तो रखिए।
(देश मंथन,11 अगस्त 2015)