राजेश रपरिया :
आज मतदान के प्रथम चरण के साथ बिहार का भाग्य इलेक्ट्रॉनिक मतपेटिकाओं में बंद होना शुरू हो चुका है। नतीजे एनडीए के पक्ष में आयें या नीतीश-लालू-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में, पर इस बार बिहार चुनाव निष्कृष्टता और मर्यादाहीनता की सभी सीमाएँ लांघ चुका है। सिद्धांतहीनता अपने चरम पर है। चुनावों में इतना वैमनस्य कभी देखने में नहीं आया, जो इस बार बिहार में देखने को मिल रहा है। मतदान नजदीक आने के साथ सारे मुद्दे गुल हो गये हैं और शुद्ध रूप से जातियों के गणित पर यह चुनाव आ कर टिक गया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों की दिक्कत यह है कि जातियों और उपजातियों के वोटबैंक के समीकरण बेहद उलझ गये हैं और चुनावी गणित का कोई मॉडल फिट नहीं हो रहा है। मगर समाचार चैनलों पर चुनावी सवालों को ले कर लगभग रोजाना जो सर्वेक्षण नतीजे सुनाये और दिखाये जाते हैं, उनके हिसाब से भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का आकलन शत प्रतिशत सही जान पड़ता है। शाह का आकलन है कि एनडीए गठबंधन को इस चुनाव में दो-तिहाई बहुमत मिलेगा। पर जो जमीन पर चुनावी सर्वेक्षण अब तक हुए हैं, वे बिहार में कांटे की टक्कर दर्शाते हैं, पर पलड़ा भाजपा का भारी दिखाते हैं। सट्टा बाजार के दाँव भी भाजपा के पक्ष में हैं। पर दिक्कत यह है कि भाजपा को इन चुनावी सर्वेक्षणों या सट्टेबाजों के दावों पर भरोसा नहीं बन पा रहा है। कम-से-कम भाजपा का दृष्टि-पत्र (विजन डॉक्यूमेंट) इस बात की तसदीक करता है।
स्कूटी के साथ अब पेट्रोल मुफ्त
विधानसभा चुनावों के पूर्व घोषणा-पत्र जारी करने की ठोस परंपरा भाजपा में रही है, केवल दिल्ली विधानसभा को छोड़ कर। दृष्टिपत्र को बनाना घोषणा-पत्र बनाने से सरल काम होता है। घोषणा-पत्र ज्यादा विस्तृत होता है, दृष्टिपत्र कम। दृष्टि-पत्र में वचनबद्धता का पुट भी कम होता है। भाजपा ने इसे विकास और विश्वास दृष्टि-पत्र का नाम दिया है। भाजपा ने मेक इन बिहार और डिजिटल बिहार का नारा भी दिया है। पर दृष्टि-पत्र मुफ्त में सरकारी खजाने से माल लुटाने का पिटारा बन कर रह गया है।
एक अक्टूबर को दृष्टि-पत्र जारी करते समय केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिल्कुल सही फरमाया है कि मुफ्त में स्कूटी, लैपटॉप, धोती-साड़ी, दलितों और महादलितों को टीवी देने की घोषणा करना कोई नयी बात नहीं है। कई राजनीतिक दलों ने पूर्व में ऐसे चुनावी वायदे किये हैं और सरकार बनने पर उन्हें पूरा करके भी दिखाया है। इसके अलावा भूमिहीनों को जमीन, युवाओं को एक लाख दुकानें, 2022 तक गृहविहीनों को पेयजल, शौचालय, बिजलीयुक्त मकान देने का वायदा भी इसमें किया गया है। हर गाँव में बारहमासी पक्की सड़क, कृषि को 12 घंटे बिजली, घरों को 24 घंटे बिजली और समय पर ऋण चुकाने वाले किसानों को ब्याज-मुक्त ऋण देने का वायदा भी इस दृष्टि-पत्र में किया गया है।
भाजपा के दृष्टि-पत्र में पिछले माह जारी नीतीश कुमार के सात-सूत्री कार्यक्रम की लगभग सभी बातें शामिल हैं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा बड़े वादे किये गये हैं। इन दोनों जो वायदे किये हैं, उन पर कम-से-कम तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आयेगा। नीतीश कुमार ने अपने सात-सूत्री कार्यक्रम के लिए व्यय के ब्यौरे भी दिये हैं। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इसका पैसा कहाँ से आयेगा। वहीं भाजपा के दृष्टि-पत्र में व्यय के ब्यौरे ही नहीं हैं। पर इसमें समाज के हर वर्ग और समुदाय को मुफ्त उपहार देने की बरसात है। मोटा अनुमान है कि केवल रंगीन टीवी बाँटने पर ही 1,500 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। मुफ्त में बाँटे जाने वाले बाकी सामानों का व्यय अलग है।
कर्नाटक चुनाव में सिद्धरमैया ने जब मुफ्त में सामान बाँटने की घोषणा की थी तो भाजपा ने इसकी जम कर आलोचना की थी। हरियाणा में इनेलो ने पिछले विधानसभा चुनावों में स्कूटी बाँटने का ऐलान किया था तो भाजपा ने जम कर मजाक उड़ाया था। पर लड़कियों को साइकिल बाँटने के नीतीश कुमार के अभियान को फीका करने के लिए स्कूटी बाँटने का वायदा कम रोचक नहीं है। इस पर नीतीश कुमार ने भाजपा की चुटकी ली कि स्कूटी तो बाँट दोगे, लेकिन पेट्रोल कहाँ से आयेगा। इस पर दूसरे दिन ही भाजपा के नेता सुशील मोदी ने घोषणा कर दी कि हम दो साल तक पेट्रोल भी मुफ्त में देंगे। पर भाजपा के दृष्टि-पत्र की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 1.65 लाख करोड़ रुपये के बिहार पैकेज को चंद पंक्तियों में निपटा दिया गया है।
भाजपा के दृष्टि-पत्र से यह बात तो साफ जाहिर है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व किसी भी कीमत पर बिहार को जीतना चाहता है, और यह भी कि जीत की राह आसान नहीं है।
(देश मंथन, 12 अक्तूबर 2015)