मुस्लिम बहुल सीटें करेंगी लालू-नीतीश के भाग्य का फैसला

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श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :

आमतौर पर यहीं माना जा रहा है कि इसबार महागठबंधन के पक्ष में और एनडीए के विरोध में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी होगी। बिहार में 47 सीटें ऐसी हैं

जहाँ मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। इन इलाकों में मुस्लिम

आबादी 20 से 40% या इससे भी अधिक है। कायदे से 2010 के विधानसभा चुनावों में इन सीटों पर बीजेपी यानी एनडीए की हार होनी चाहिए थी, लेकिन हुआ उल्टा। बीजेपी को इन 47 सीटों में 25 पर जीत हासिल हुई थी। पिछले विधानसभा चुनाव के आँकड़े देखें तो इन मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा बाकी दलों के मुकाबले बहुत आगे थी।

मुस्लिम बहुल इलाकों में राजनीतिक दलों के प्रदर्शन पर एक नजर डालें तो

चौकाने वाली बातें सामने आती हैं। 29 विधानसभा क्षेत्रों में जहाँ अल्पसंख्यकों की संख्या 20 से 30% है वहाँ बीजेपी के 17 में से 16 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जेडीयू के भी 12 में से 11 उम्मीदवार जीतने में कामी रहे लेकिन आरजेडी जिसका सबसे ज्यादा बड़ा दावा अल्पसंख्यक मतदाताओं पर रहा है उसके 21 में से केवल 1 उम्मीदवार जीत पाया। यानी मुस्लिम बहुल ईलाकों में बीजेपी-जेडीयू के बीच कांटे का मुकाबला रहा, लेकिन सबसे ज्यादा नुकशान में आरजेडी का रहा। एलजेपी 8 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे एक सीट पर भी सफलता नहीं मिली। कांग्रेस ने 29 उम्मीदवार खड़े किये, लेकिन एक भी जीत नहीं पाया। एलजेपी और कांग्रेस से तो बढ़िया प्रदर्शन रहा झामुमो का जिसके 5 में से एक उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहा।

11 विधानसभा क्षेत्र जहाँ मुस्लिम मतदाता 40% से ज्यादा हैं, वहाँ भी लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव में बीजेपी के 6 में से 4 उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे, जबकि जेडीयू को 5 में से सिर्फ 1 और आरजेडी को 8 में से केवल 1 ही सीट पर सफलता मिली। एलजेपी 3 में से 2 सीटें और कांग्रेस 11 में से केवल 2 सीटें जीतने में कामयाब रही। वोट के परसेंटेज का जहाँ तक सवाल है 29 विधानसभा क्षेत्र जहाँ अल्पसंख्यक मतदाता 20 से 30% हैं, वहां 20 14 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 40.94%, जेडीयू को 16.95 और आरजेडी,राकपा और कांग्रेस को केवल 30.71% वोटों से ही संतोष करना पड़ा। 7 विधानसभा क्षेत्र जहाँ अल्पसंख्यक 30 से 40% हैं, वहाँ भी जेडीयू को 21.7%, एनडीए को 34.79 और आरजेडी,कांग्रेस,राकपा को केवल 32.77% वोट मिले। 11 विधानसभा जहाँ अल्पसंख्यक 40% से ज्यादा हैं, वहाँ भी 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 30.19%, जेडीयू को 7.94 और आरजेडी,कांग्रेस,राकपा को 53.46% वोट मिले।

जाहिर है महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अल्पसंख्यक मतदाताओं की अपने पक्ष में गोलबंदी करने की। 2010 के विधानसभा चुनाव और 20 14 के लोकसभा चुनाव में में लालू-नीतीश अलग-अलग थे। इसबार वो एकसाथ खड़े हैं और कांग्रेस भी उनके साथ है। इस एकता के बदौलत अगर वो अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब रहते हैं तो अल्पसंख्यक बहुल 47 विधानसभा सीटों पर उन्हें कामयाबी मिल सकती है। लेकिन अल्पसंख्यकों की गोलबंदी के साथ-साथ उन्हें बीजेपी के पक्ष में हिन्दुओं की संभावित गोलबंदी रोकने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश की तरफ बिहार में भी दलितों के हिन्दुकरण के अभियान में सफल हो जाती है तो माया की तरह महागठबंधन की चुनौती बहुत बढ़ जायेगी ।

(देश मंथन, 19 अगस्त 2015)

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