संदीप त्रिपाठी :
बिहार विधानसभा के लिए सभी चरणों के मतदान संपन्न हो गये हैं। मतदान बाद के सर्वेक्षण भी आ चुके हैं। जिस सर्वेक्षण में जिस गठबंधन को बढ़त दिख रही है। उस गठबंधन के समर्थक उसी सर्वेक्षण को सही मान रहे हैं। अब इंतजार है नतीजों का। राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसे असंतुलन को साधने की कला कहा जाता है। इस मोड़ पर एक विषय बहुत मौजू है कि कौन जीतेगा तो क्या होगा और कौन हारेगा तो क्या होगा। यहां पहले गालिब का एक शेर, फिर संभावनाओं पर बात –
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पे कहना कि ये होता तो क्या होता
चूँकि मतदान बाद सर्वेक्षणों से कोई स्पष्ट नतीजा नहीं उभर सका है, इसलिए अभी 8 नवंबर की सुबह तक सभी संभावनाओं पर बात की जा सकती है। आइये देखते हैं कि बिहार चुनाव के नतीजों में क्या-क्या संभावनाएँ हैं और किस संभावना के हकीकत में बदलने पर क्या असर होगा।
संभावना 1 : न्यूज24-चाणक्य के सर्वेक्षण को सही मानें तो भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 155+ सीटें जीत कर सरकार बनायेगा।
असर : नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी मजबूत हो कर उभरेगी। पार्टी और सरकार, दोनों में इस जोड़ी पर उंगली उठाने वाले और हाशिये पर सरक जायेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार के काम-काज में और ज्यादा मजबूती से फैसले ले सकेंगे और विरोध की बिल्कुल परवाह नहीं की जायेगी। उन फैसलों से हो सकता है अल्पकाल में जनता को थोड़ी-बहुत परेशानी हो। विपक्ष का विरोध खानापूर्ति के लिए रह जायेगा।
इस संभावना के फलीभूत होने पर बिहार की राजनीति से नीतीश कुमार का लगभग राजनीतिक अवसान हो जायेगा। नीतीश के पास एक केवल एक विकल्प होगा कि वे दलीय राजनीति से हट कर युवाओं के बीच राष्ट्र निर्माण का कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलायें और वर्ष 2024 की तैयारी करें, इसके लिए उन्हें किसी पद की आकांक्षा से मुक्त होना होगा, अगर वे कर सकें तो।
लालू प्रसाद यादव अपने अंदाज में बयानबाजी करते रहेंगे। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव तक मीसा भारती, तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव को तैयार करते रहेंगे।
कांग्रेस और राहुल गाँधी के लिए समय विपरीत हो जायेगा हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर यह स्थिति उसके लिए अनुकूल होगी क्योंकि विपक्ष के नेतृत्व के लिए उसके दावे को कोई चुनौती नहीं होगी।
संभावना 2 : एबीपी न्यूज और न्यूज एक्स के मतदान बाद सर्वेक्षण को सही मानें तो महागठबंधन को 130-135 सीटें मिलेंगी और वह सरकार बनायेगी जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनेंगे। लालू प्रसाद यादव के बच्चों को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी।
लेकिन इस संभावना में तीन उप-संभावनाएँ भी हैं।
(अ) महागठबंधन में नीतीश कुमार के जदयू को ज्यादा सीटें मिलेंगी,
(ब) लालू प्रसाद यादव के राजद के ज्यादा विधायक होंगे और
(स) जदयू और राजद के तकरीबन बराबर विधायक होंगे।
असर : (अ) उप-संभावना की स्थिति में नीतीश कुमार देश भर में मोदी-विरोध की धुरी बन जायेंगे। नीतीश कुमार इस स्थिति का आनंद लेंगे और फिर जोर-शोर से अपनी राजनीति का फैलाव देश भर में करना चाहेंगे। उनकी नजर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव पर होगी जिसके लिए वह अगले साढ़े तीन साल प्रशांत किशोर को अपने साथ बनाये रखेंगे। तब सभी समाजवादी पार्टियों के लिए नीतीश के पीछे लामबंद होना उनकी सियासी मजबूरी बन जायेगी। कांग्रेस इस खेमे में अपनी भूमिका तलाशेगी या उसे तीसरी शक्ति के रूप में काम करना होगा।
लालू प्रसाद यादव कोशिश करेंगे कि नीतीश कुमार बिहार में सिमटे रहें और राष्ट्रीय राजनीति में वे विपक्ष की धुरी बनें। लेकिन नीतीश कुमार अपनी भूमिका छोड़ेंगे नहीं, इससे दोनों नेताओं में जोर-आजमाइश होगी और जिसे जो समय उपयुक्त लगेगा, एक-दूसरे से मुक्त होने का ऐलान करेंगे। इस उप-संभावना में एक स्थिति यह भी आ सकती है कि लालू नीतीश को राष्ट्रीय फलक पर ज्यादा चढ़ा कर बिहार का सौदा अपने बच्चों के पक्ष में करने की कोशिश करें। हालाँकि नीतीश इस कार्यकाल में इस समझौते पर सहमत नहीं होंगे जिससे दोनों दलों में टकराव बना रहेगा।
कांग्रेस इस दौरान टकराव को बढ़ावा देने की कोशिश करेगी और इनके बीच अपनी स्थित मजबूत करना चाहेगी। लेकिन राहुल गाँधी के नेतृत्व में स्थिति मजबूत करने की बात बहुत संभव नहीं दिखती। इसके लिए कांग्रेस को प्रदेश स्तरीय क्षत्रपों का विकास करना होगा जो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले संभव नहीं दिखता।
भाजपा इन नतीजों को नजरअंदाज करने की कोशिश करती दिखेगी। लेकिन पार्टी में मोदी-शाह की जोड़ी से असंतुष्ट खेमा सिर उठायेगा। केंद्र की मोदी सरकार मजबूत फैसलों की बजाय लोकलुभावन फैसलों की राह पर बढ़ेगी। मोदी-शाह की जोड़ी असम विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर पहली बार इस प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने के लिए जमीनी तैयारी करेगी।
(ब) उप-संभावना की स्थिति में लालू प्रसाद भारी पड़ेंगे और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रमुख भूमिका देखेंगे। वे नीतीश कुमार को चलाते हुए दिखना पसंद करेंगे और अंदरखाने उन्हें कमजोर करेंगे। राज्य में वे अपनी संतानों में किसी को उभारने की रणनीति पर चलेंगे। यह स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव तक बनी रहेगी।
इस स्थिति में नीतीश कुमार शुरुआती एक-डेढ़ साल बाद कसमसाना शुरू करेंगे और प्रदेश और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर लालू की उपेक्षा और उन पर बढ़त बनाने की कोशिश करेंगे। यह काम वे बहुत खामोशी और आहिस्ता-आहिस्ता करेंगे। देश के अन्य राजनीतिक दलों के बीच वे अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेंगे जिसके आधार पर 2019 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के दावे को चुनौती दे सकें और नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष के सर्वमान्य नेता बन सकें।
कांग्रेस राज्य स्तर पर सरकार में हिस्सेदारी ले कर अपनी राजनीतिक जमीन का दायरा बढ़ाने में जुटेगी। हालाँकि इस प्रक्रिया में मंत्री बने कांग्रेस नेता अपना व्यक्तिगत आधार ही बढ़ा पायेंगे। कांग्रेस नेतृत्व ने भले बिहार विधानसभा चुनाव में पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव के मुकाबले नये जुड़े नीतीश कुमार को तरजीह दी हो लेकिन राष्ट्रीय फलक पर वह नीतीश कुमार को तवज्जो देने से कतरायेगी और नीतीश को नजरअंदाज करने के लिए वह लालू प्रसाद यादव को अपने पीछे खड़ा होने के लिए तैयार करेगी।
(स) उप-संभावना के हकीकत बनने पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर चार साल तक रस्साकसी चलती रहेगी। इसमें बिहार कहीं पीछे छूट जायेगा। कांग्रेस इसका लाभ लेने की कोशिश करेगी।
संभावना 3 : आजतक, न्यूज नेशन और इंडिया टीवी और टाइम्स नाउ के सर्वेक्षणों को सही मानें तो दोनों गठबंधन बहुमत के आँकड़े से पीछे रहेंगे। सरकार बनाने के लिए निर्दलीय फैसलाकुन भूमिका में होगे। इसमें भी अगर आजतक और न्यूज नेशन के सर्वेक्षण की तरह के नतीजे आते हैं तो भाजपा नीत सरकार बनने की गुंजाइश ज्यादा होगी। इंडिया टीवी और टाइम्स नाउ के सर्वेक्षण सही साबित हुए तो नीतीश कुमार की सरकार बनने के अवसर ज्यादा होंगे।
असर : अगर ये सर्वेक्षण सही साबित हुए तो निर्दलीय या अन्य विधायकों के भाव बढ़ जायेंगे। इसके साथ ही बिहार के राज्यपाल की राजनीतिक सूझ-बूझ और पक्षधरता यह तय करेगी कि किसकी सरकार बनेगी।
अगर भाजपा नीत सरकार बनती है तो इस खेमे में मोदी-शाह की जोड़ी कुछ समय शांत रहने के बाद असम, पश्चिम बंगाल और केरल के विधानसभा चुनावों में बढ़-चढ़ कर सामने आयेगी। यह जोड़ी सार्वजनिक तौर पर पार्टी के अन्य नेताओं को तवज्जो देते हुए दिखेगी लेकिन फैसले अपने हिसाब से करेगी। असम के आगामी विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित होने पर ही नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाया जायेगा।
अगर महागठबंधन की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही बनेंगे लेकिन उन पर लालू प्रसाद यादव का शिकंजा कसा रहेगा। नीतीश कुमार एक कमजोर मुख्यमंत्री की तरह दिखेंगे और भाजपा लालू प्रसाद यादव के बहाने नीतीश सरकार पर हमले करती रहेगी। भाजपा के उदार धड़े के जरिये नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी की कोशिशें होंगी। भाजपा के बिगड़े बोल बोलने वाले कुछ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा और अन्य पर अंकुश लगाया जायेगा।
(देश मंथन, 06 नवंबर 2015)