जो आतंकी मारे गये, उन्हें जान तो लें

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आवेश तिवारी, पत्रकार :

अगर भोपाल में मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की करतूतों को लिखना शुरू करूँ तो एक पूरा उपन्यास बन जायेगा। कुछ मित्रों का कहना है कि किसी अंडरट्रायल को आतंकी घोषित कैसे किया जा सकता हैबिल्कुल किया जा सकता है।

कोई जुर्म बार-बार किया जाये तो वह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? खैर, मातमपुर्सी करने वालों एक जानकारी और ले लो। जो मारे गये उनमे से एक को तो दो साल पहले खुद खुदा ने सजा दे दी थी। खुदा की सजा पर अंगुली कौन उठायेगा?

भोपाल में मारे गये आतंकियों में से चार लोग दूसरी बार जेल से फरार हुए थे। अक्टूबर 2013 में खंडवा में जेल से भागने के बाद इन्होंने कुल 17 वारदातों को अंजाम दिया। छह लोग इन वारदातों में मारे गये थे। दुस्साहस यह कि इस साल 17 फरवरी को ही राउरकेला में ये पकडे गये थे, लेकिन पकड़े जाने के एक साल के भीतर ही ये दोबारा जेल से भाग निकले।

महबूब उर्फ़ गुड्डू जो कल भोपाल की मुठभेड़ में मारा गया, वह नये तरीके के बम बनाने में माहिर था। यूपी के बिजनौर में बम बनाते वक्त हुए विस्फोट में वह बुरी तरह से जल गया था। आश्चर्यजनक है कि पटना के गांधी मैदान और चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर विस्फोट में जो बम इस्तेमाल किये गये, वे दोनों एक जैसे थे और उनको बनाने के पीछे महबूब का ही हाथ था।

भोपाल मुठभेड़ में मारे गये आतंकियों में से एक ने लंबे अरसे तक अपना नाम विनय कुमार रख रखा था। मजेदार बात यह है कि करीमगंज में हुई एक लूट के बाद पुलिस ने इसी नाम से मुकदमा भी दर्ज कर दिया। एक अन्य आतंकी मोहम्मद सालेक भेष बदलने में माहिर था, कहें तो पूरा बहुरूपिया।

जो लोग मुठभेड़ में मारे गये सिमी आतंकियों को लेकर टेसुए बहा रहे हैं, उन्हें उत्तर प्रदेश के बलिया में उस हेड कांस्टेबल रमाशंकर यादव के घर एक बार जरूर जाना चाहिए, जहाँ उसकी बेटी की शादी होने वाली थी। या फिर उस महिला साफ्टवेयर इंजिनियर के घर जिसे दो साल पहले इन्हीं लोगों ने बम से उड़ा दिया था, जिसे पता भी न चला कि उसे किस बात की सजा मिली। वह तो अपनी माँ की अकेली बिटिया थी।

स्वाति परुचुरि टाटा कंसल्टेंसी में साफ्टवेयर इंजीनियर थी। पापा किसान, माँ शिक्षिका। अपने बचपन के दोस्त से ही शादी करने वाली थी। फिर मई 2014 में एक दिन जब वह बंगलौर-गुवाहाटी (काजीरंगा) एक्सप्रेस से लौट रही थी, तो भोपाल में मारे गए आतंकियों में शामिल महबूब, जाकिर, अमजद और उसके साथियों ने उसमें धमाका करा दिया और 22 साल की स्वाति मारी गयी। अब चेन्नई में रेल कर्मचारी मई दिवस के अगले दिन स्वाति दिवस मनाते हैं। उस दिन एक बेटी ही नहीं मारी गयी थी, उसकी आँखों में बसे सपने भी उसके साथ मारे गये थे।

वर्ष 2009 से 2012 तक देश में फर्जी मुठभेड़ों के 555 मामले मानवाधिकार आयोग के सामने आये। इनमें से सर्वाधिक 138 मामले उत्तर प्रदेश से थे, जहाँ उस वक्त मायावती की सरकार थी। राजस्थान में 33, महाराष्ट्र में 21, मणिपुर में 62 और असम में 52 लोग फर्जी मुठभेड़ों में मारे गये। तब इन राज्यों में भी भाजपा की सरकार नहीं थीं। दरअसल मुठभेड़ पुलिस के चरित्र का हिस्सा है, सत्ता के पास निर्णय लेने का साहस कहाँ होता है।

(देश मंथन, 01 नवंबर 2016)

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