राजीव रंजन झा :
मध्य प्रदेश की भोपाल जेल से भागे आठ आतंकवादियों की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद तमाम राजनीतिक दल और कथित रूप से उदार विचारधारा वाले लोगों की तरफ से सवालों की बौछार शुरू हो गयी है। सवाल पूछने वालों की नीयत चाहे जो भी हो, मध्य प्रदेश सरकार को इन सवालों के जवाब जरूर देने चाहिए।
मगर एनआईए की जाँच के बाद विस्तृत रिपोर्ट भी सवाल पूछने वालों को कितना संतुष्ट कर पायेगी, यह कहना मुश्किल है क्योंकि इन लोगों ने एनआईए की जाँच शुरू होने से पहले ही उसको लेकर असंतोष जता दिया है। बहरहाल, प्रस्तुत हैं कुछ प्राथमिक सवालों के प्रथम-दृष्टया जवाब, जिनके लिए जाँच रिपोर्ट आने तक इंतजार करने की जरूरत नहीं। ये जवाब तो अभी तक उपलब्ध तथ्यों के आधार पर सहज रूप से दिखते हैं।
– क्या वे आतंकवादी थे?
उन पर गंभीर आरोप थे और उनमें से कई लोग बारंबार अपराधों में पकड़े गये थे।
– इतनी सुरक्षित जेल से भागे कैसे?
जब आतंकवादी भागे थे, तब तो ऐसे ही लोग सवाल उठा रहे थे कि सुरक्षा इतनी ढीली क्यों थी। जब वे मारे गये तो उनके भागने पर ही सवाल उठाने लगे!
– 8 घंटे में केवल 8 किलोमीटर दूर ही क्यों भाग पाये? शहर और भीड़-भाड़ वाली जगहों के बदले जंगल की ओर क्यों भागे?
क्या उनके भागते ही पुलिस ने हर तरफ नाकाबंदी नहीं की? शहर की ओर भागने पर किसी नाकाबंदी में फँस ही जाते। और बाकी जवाब दिग्विजय-ओवैसी ब्रिगेड के ही अगले सवाल में है!
– भागते ही केवल 8 घंटे के अंदर उन्हें ब्रांडेड कपड़े-जूते और हथियार कैसे मिल गये?
8 घंटे में केवल 8 किलोमीटर दूर जाने का कारण यह भी तो रहा होगा, कि कुछ समय उन्होंने अपने कपड़े वगैरह और हुलिया बदलने में खर्च किया होगा। साथ में यह भी कि भागने की प्लानिंग केवल अंदर से नहीं हुई होगी, बाहर से भी कुछ मदद मिली होगी।
– जिंदा क्यों नहीं पकड़े गये?
क्या आपने दिल्ली की एक चालू सड़क का वह वीडियो देखा था, जिसमें एक व्यक्ति चाकू से एक लड़की पर अनगिनत वार किये जा रहा था और आसपास से गुजरने वाला कोई उसे पकड़ नहीं रहा था, सब भाग जा रहे थे? आपको क्या लगता है कि मध्य प्रदेश पुलिस के साधारण सिपाहियों को कमांडो ट्रेनिंग मिली हुई है? डर सबको लगता है।
पर हाँ, अगर सारे नहीं तो घायल हो कर पड़े हुए दो-चार को जिंदा पकड़ा जा सकता था। कम-से-कम उनकी साजिश को जानने के लिए ऐसा किया जाना चाहिए था। पर संभवतः केवल मध्य प्रदेश नहीं, बल्कि किसी भी राज्य की पुलिस को इस लायक प्रशिक्षण नहीं मिला है।
(देश मंथन, 01 नवंबर 2016)