बिहार और भ्रष्टाचार की ट्रिकल डाउन थ्योरी

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श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :

मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का सार्वजनिक रूप से ये खुलासा कि जब वो मंत्री थे उन्हें बिजली बिल कम करवाने के लिए पाँच हजार रुपये की रिश्वत देनी पड़ी और उनकी यह स्वीकारोक्ति कि नीतीश कुमार के राज में विकास से ज्यादा रफ्तार से भ्रष्टाचार बढ़ा है, कई बड़े सवाल व्यवस्था को लेकर खड़ा करता है।

जीतन राम मांझी के इस बयान से कि भ्रष्टाचार ने नीतीश कुमार के सारे विकास कार्यों पर पानी फेर दिया है, बढ़ते भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की चिंता को उजागर करता है। इसमे कोई शक की गुंजाइश नहीं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में सबसे ज्यादा कारवाई हुई। भ्रष्ट आईएएस आइएपीस समेत कई बड़े अधिकारियों की सम्पति और बंगले जप्त हुए और उनमे सरकारी स्कूल खोलने का देश का अपने तरह का अनूठा प्रयोग भी हुआ। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी ज्यादा कारवाई हुई उतना ही ज्यादा बड़ा चेहरा भ्रष्टाचार का सामने आया।

भ्रष्टाचार के इस खेल में जिस तरह से बड़े अधिकारियों और उनके साथ साठ-गाँठ रखने वाले पत्रकारों तक के चेहरे बेनकाब हुए उससे एक बात तो साफ हो गयी है कि बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा नीचे से ऊपर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे की तरफ बह रही है।यह भ्रष्टाचार की ट्रिकल डाउन थ्योरी है। एक बड़े अधिकारी द्वारा एक व्यवसायी से रंगदारी और रिश्वत माँगे जाने और कई थानेदारों के ब्रोकर के रूप में पत्रकारों के काम करने की शिकायते जिस तरह से सामने आयीं, भ्रष्टाचार पर काबू पाने की रही सही उम्मीद भी खत्म हो गयी।

इस मामले पर प्रकाश डालने के लिए एक घटना की चर्चा जरुरी है। पटना के आम शहरी के खिलाफ कंकरबाग थाने में कोई शिकायत दर्ज हुई। उस शहरी को मामले से अवगत कराने उसके घर पहुँची एक मासिक पत्रिका की एक महिला पत्रकार ने मामला रफादफा कराने के लिए दस हजार रुपये की माँग की और इनकार करने पर इंस्पेक्टर से मिलने की नसीहत दी। थाने पहुँचे शहरी ने जब थानेदार के साथ उस महिला पत्रकार को बैठे देखा तो उनके होश उड़ गये। थानेदार उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दे रहा था, महिला पत्रकार बैठी मुस्कुराहट रही थी। महिला पत्रकार उनके घर दस हजार रुपये की माँग लेकर फिर पहुँच गयी और उन्हें देना पड़ा।

इस घटना को केवल एक मामूली थानेदार और एक मामूली पत्रकार के बीच के सांठगांठ के रूप में देखना बड़ी भूल होगी। यह महज एक इत्तेफाक नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की संस्कृति को सुरक्षित ढंग से आगे बढ़ाते रहने के लिए भ्रष्ट नौकरशाही के पत्रकारिता के सहयात्री बनने की शुरुआत है। भ्रष्टाचार को उजागर करने की जिम्मेवारी है जिसके जिम्मे है, अगर वहीँ भ्रष्टाचार में भागीदार बन जाये तो हालात के गंभीरता का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है।

वैसे तो पुलिस और प्रशासनिक महकमे में नीचले स्तर पर भ्रष्टाचार कोई नयी बात नहीं है। बीडीओ, सीओ और थानेदारों के भ्रष्टाचार से भला कौन परिचित नहीं है? जब भ्रष्टाचार निचले स्तर का हो या नीचे से ऊपर की तरफ जा रहा हो तो ऊपर से केवल न्यूट्रल रहकर या थोडा सा जोर लगाकर भी उसे आसानी से नियंत्रित या फिर रोका जा सकता है।लेकिन जब वह ऊपर से ही नीचे आ रहा हो तो उसके बहाव को रोक पाना मुश्किल होता है। ऊपर से नीचे पानी का बहाव ऐसे भी तेज रहता है लेकिन उसे नीचे से ऊपर पानी चढ़ाना हो तो विशेष प्रयास की दरकार होती है। ऊपर से पानी छोड़ने भर की देर होती है, वह अपना अधिकतम रफ्तार पकड़ लेता है।

भ्रष्टाचार का यह ट्रिकल डाउन थ्योरी बेहद खतरनाक है। जिस तरह से एक के बाद एक बड़े नौकरशाहों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायतें सामने आ रही हैं, जाहिर है राज्य में भ्रष्टाचार नीचे से ऊपर की तरफ नहीं बल्कि ऊपर से नीचे तेज गति से फैल रहा है। जबतक शासन भ्रष्टाचार के इस ट्रिकल डाउन थ्योरी को ठीक से नहीं समझेगा, भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान के साथ भ्रष्टाचार का चेहरा और बड़ा होता जायेगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान के सेलेक्टिव होने से भी भ्रष्टाचार के और बढ़ने और सत्ता के खिलाफ आमजन के बिच आक्रोश पैदा होने का खतरा बढ़ता है। जानेमाने समाज और अर्थ शास्त्र के ज्ञानी शैबल गुप्ता भी मानते हैं कि चुनाव में नीतीश कुमार की असफलता का एक बड़ा कारण सता द्वारा चुन चुनकर पिछड़े और दलित समाज के लोगों को भ्रष्टाचार अभियान का निशाना बनाए जाने से उपजा आक्रोश भी है।

 

सरकार को ये समझना पड़ेगा कि केवल कानून और अभियान से कामयाबी नहीं मिलती। ये कामयाबी इस बात पर निर्भर करती है कि उस अभियान का कर्ताधर्ता कौन है और कितनी ईमानदारी से अभियान चला रहा है? अगर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की कमान ही एक भ्रष्ट हाथ में हो तो उस अभियान से खतरा भ्रष्टाचार को नहीं बल्कि ईमानदारी को होती है। प्रभु वर्ग हर कड़ा कानून बनाने से पहले उस कानून की जद से अपने आपको और अपने प्रिय लोगों को सुरक्षित कर लेने की गारंटी चाहता है।

इसीलिए वह बेईमानी से लड़ने के लिए ईमानदारी को जरुरी नहीं मानता। जिस राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध स्तर पर अभियान चलने के बावजूद भ्रष्ट बेफिक्र हों और ईमानदार, डरे-सहमे हों,समझ लेना चाहिए कि बेईमानी के खिलाफ बेईमान मोर्च्रे पर लगा दिया गया है। ऐसे में ईमानदार लोगों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती। लेकिन अभी भी थोड़ी उम्मीद अगर बची है तो केवल इसलिए कि नीतीश कुमार काजल की कोठरी से भी बेदाग निकलने में कामयाब रहे हैं और नए मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी उस कोठरी में घुसने के साथ ही समय के साथ और ज्यादा गहरा होते काजल के रंग के खतरे को लेकर बेहद चिंतित हैं।

(देश मंथन, 14 अगस्त 2014)

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