गोली और खेल एक साथ कैसे?

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता की लंबे अर्से बाद शुरुआत को एक अच्छी पहल जरूर कहा जा सकता है। मगर जो मुद्दे हैं क्या उनको लेकर पाकिस्तान संजीदा साबित होगा और क्या उसकी फौज, जो असली ताकत है, पहली बार जन्मपत्री को ठोकर मार अपनी सरकार के साथ सुर में सुर मिलाएगी?

ये सवाल इसलिए उठने लाजमी हैं कि अतीत में न जाने कितनी बार दोनों देशों के बीच बातचीत और समझौते हुए मगर उसकी फौज ने उन समझौतों को कभी मान्यता नहीं दी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अफगानिस्तान को लेकर इस्लामाबाद में हुई समिट में भागीदारी के बाद अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ बैठक में कई बिंदुओं पर विदेश सचिव स्तर की बातचीत पर रजामंदी हुई। अच्छी बात है उभय देश पर पश्चिमी ताकतों का दबाव था ओर वे उन्हें टेबल पर साथ बैठाने में कामयाब भी हुए। परंतु यह भी एक कठोर वास्तविकता है कि इस तरह की वार्ताओं का हमेशा एक ही हश्र हुआ। उसका पटरी से उतर जाना। उनका कश्मीर में आतंकवाद असल में आजादी का संघर्ष है और वे आतंकी नहीं, मुजाहिदीन हैं। 

रहा सवाल क्रिकेट सहित द्विपक्षीय खेल संबंधों का तो वह होना चाहिए लेकिन तब जब हमारे दौत्य संबंध सुधरें जो पाकिस्तानी रुख पर ही निर्भर करता है। वह यदि सीमा पर शांति कायम करनें में आगे आता है, अपने तथाकथित मुजाहिदीनों- आतंकियों पर अंकुश लगाता है, 1993 मुंबई बम विस्फोट के दाऊद सहित कराची में बैठे आरोपियों को भारत के हवाले करता है, 26/11 के दोषियों के खिलाफ न्यायोचित कारवाई करता और समझौते को उनके अंजाम तक पहुँचाता है। तो फिर मैदान में हाथ मिला कर खेलना समय की माँग होगा। लेकिन सुषमाजी की पाकिस्तान यात्रा के समापन और संयुक्त बयान जारी होने के बाद पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर पैनलिस्टों नें जिस तरह से कड़ी प्रतिक्रिया दी, एनडीए सरकार, भाजपा और और भारतीय प्रधानमंत्री को इंगित करते हुए जिस लहजे में बात की उसे निष्पक्षत: जहर उगलना ही माना जाएगा और यह उस दावे की पुष्टि करता है कि विवाद की जड़ कश्मीर नहीं असल में उनको घूंटी में पिलाया गया नफरत का जहर ही है। इसलिए पाकिस्तान स्वयँ में झाँके और तय करे कि गोली और खेल कैसे एक साथ नहीं हो सकते।

बीसीसीआई नें पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड से जो करार किया था वह एक शख्स की निजी महत्वाकाँक्षा और पदलोलुपता के चलते था। भारतीय क्रिकेट की अपने धतकरमों से साख मिट्टी में मिलाने वाले बीसीसीआई के निवर्तमान अध्यक्ष श्रीनिवासन ने आईसीसी के मुखिया के चुनाव में समर्थन की कीमत पर पाकिस्तान के साथ सन 2022 तक छह द्विपक्षीय सिरीज का जो एमओयू साइन किया था, यह समझा जा सकता है कि उन्होंने इसके लिए बीसीसीआई के संविधान में प्रदत्त असीमित अधिकारों का खुल कर दुरुपयोग किया। यह करार बीसीसीआई के गले की फाँस तो है लेकिन आईसीसी उस पर किसी भी तरह की कारवाई इसलिए नहीं कर सकती कि बिना सरकार की अनुमति बीसीसीआई अपनी टीम कैसे भेज सकती है ? जबकि वह तो श्रीलंका जैसे तटस्थ स्थान पर पाकिस्तान के साथ दो टी-20 और तीन एक दिनी मैच खेलने को तैयार बैठी है। बोर्ड सचिव अनुराग ठाकुर का भी यह कहना है,” हमे तो बस सरकार की मंजूरी का इंतजार है।”

पीसीबी के सदर शहरयार खाँ ने क्रिकेट सीरिज की बाबत सुषमाजी के कुछ भी न बोलने पर गहरी निराशा जताते हुए परोक्ष धमकी भी दे दी कि भारत में अगले साल आयोजित टी-20 विश्व कप में पाकिस्तान की भागीदारी भी मुश्किल में पड़ सकती है। इसके अलावा उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि प्रस्तावित सीरिज नहीं हुई तो आईसीसी से शिकायत दर्ज की जाएगी। लेकिन पीसीबी भूल चुका है कि आईसीसी शायद ही कोई कारवाई कर सकेगा। सदस्य देशों की सरकारें यदि सुरक्षा या अन्य गंभीर कारणों से अनुमति नहीं देतीं तो उसका बोर्ड अपनी जवाबदेही से बच सकता है। रहा सवाल विश्व कप से पाकिस्तान के बहिष्कार का तो इससे टूर्नामेंट और मेजबान भारत की सेहत पर कोई असर पड़ने से रहा। बस इंतजार भारत सरकार के अंतिम फैसले का ही सभी को है।

(देश मंथन, 10 दिसंबर 2015)

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