समझ का हेर—फेर

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रामबहादुर राय, राजनीतिक विश्लेषक और संपादक, यथावत :

डॉ. वेद प्रताप वैदिक आजकल गुरु के गाँव में रहते हैं। जो गुड़गाँव कहलाता है। चाहे नया हो या पुराना, हर गुड़गाँव वासी पर यह बात लागू हो या नहीं, पर वैदिक अपने गुरु आप हो गये हैं। अपने घर के एक कोने में वे मिले। उनके चेहरे पर तूफान में फँसे होने की कोई लकीर नहीं थी। उन्हें देखकर और सुनकर यह महसूस नहीं हआ कि यह व्यक्ति बेचैन है।

लगा कि वे अपनी आंतरिक शांति में जी रहे हैं। जिससे दूसरे आक्रांत हैं। वह वैदिक के लिए हंसी—खेल का नायाब तोहफा बन गया है। संसद, मीडिया और समाज में उठे सवालों से वे बेपरवाह लगे। कहा कि सब मेरे खिलाफ हो जायें तो भी अपनी बात पर कायम रहूँगा। उनको जो बात तीर की तरह लगी, वह है उनकी देशभक्ति पर उठे सवाल। इस पर वे अवश्य बचाव की भावदशा में दिखे।

जो विवाद है वह बहुत उलझा हुआ है। भारत सरकार संसद को बता रही है कि हाफिज सईद एक आतंकवादी है। भारतीय उच्चायुक्त ने वह भेंट नहीं कराई। पाकिस्तान सरकार भी इसी आशय की सफाई दे चुकी है। यह विपक्ष के सवालों का जवाब है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि वैदिक को मोदी सरकार ने भेजा था। राहुल गांधी तो यह भी बोल गए है कि वैदिक का राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से संबंध है। ऐसी बेतुकी बात वही कर सकते हैं। राहुल गांधी अगर सच जानना चाहते हैं, तो वे मणि शंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद से पता कर सकते थे। क्या उनकी दिलचस्पी सच जानने में है? उन्हें तो एक नुक्ते की तलाश है जो राजनीति में उनको ठौर दिला सके।

पर मीडिया को क्या हो गया है? उसकी हालत उससे भी ज्यादा गयी—गुजरी हो गयी है। इसे तीन अनुभवी पत्रकारों के बयान से समझा जा सकता है। बीजी वर्गीज ने प्रभाष प्रसंग के आयोजन में ‘आज का मीडिया’ पर बोलते हुए अफसोस जताया कि वस्तुनिष्ठता मीडिया से गायब हो गयी है। तिल का ताड़ बनाना उसका स्वभाव हो गया है। राजनीतिक पक्षधरता उसके खून को तेजी से दूषित कर रही है। सनसनी फैलाना मानो उसका मकसद हो गया है। उन्होंने कहा कि वेद प्रताप वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात पर जो बवंडर मचाया जा रहा है वह इसका उदाहरण है। वेद प्रताप वैदिक की राजनीति से सहमत न होते हुए भी वे यह मानते हैं कि हाफिज सईद से मुलाकात एक पत्रकार के लिए स्कूप है। एक पत्रकार को और क्या चाहिए? क्या एक पत्रकार को हाफिज सईद से मुलाकात के लिए किसी की इजाजत चाहिए? दुनिया भर में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब पत्रकारों ने चाहे वह ओसामा बिन लादेन हो या प्रभाकरण या दूसरे उनसे इंटरव्यू लिए।

दूसरे पत्रकार दिलीप पडगांवकर हैं। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा है कि पत्रकार के रूप में डॉ. वेद प्रताप वैदिक को हाफिज सईद से इंटरव्यू का अधिकार है। इसके लिए उन्हें किसी से पूछने की जरुरत नहीं है। लेकिन उन्होंने यह सवाल भी उठाया है कि क्या वैदिक हाफिज सईद से एक पत्रकार के रूप में मिले। पडगांवकर का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और भारत जिस व्यक्ति को पकड़ना चाहते हैं उससे बिना पाकिस्तानी सरकार और खुफिया एजेंसियों की मदद के वैदिक मिल ही नहीं सकते, जबकि वैदिक बताते हैं कि वे पाकिस्तान के एक पत्रकार के जरिये मिले। जो बातचीत वैदिक ने की वह क्या थी, इसे कोई नहीं जानता। पडगांवकर ने पूछा है कि वैदिक ने उस बातचीत के बारे में एक पत्रकार के रूप में लिखा क्यों नहीं?

राजेंद्र पुरी चकित है कि वैदिक को गिरफ्तार करने की मांग हो रही है। वे अपने एक लेख में पूछ रहे हैं कि वैदिक का अपराध क्या है? हाफिज सईद से मिलना और कश्मीर के बारे में बयान देना क्या अपराध है? राजेंद्र पुरी का मानना है कि वैदिक ने कोई अपराध नहीं किया है। कश्मीर के बारे में उनका बयान अगर अपराध है तो ऐसा अपराध पंडित जवाहरलाल नेहरु 1964 में कर चुके हैं। उन्होंने शेख अब्दुल्ला के जरिये अयूब खान को एक प्रस्ताव भेजा था। जब परवेज मुशर्रफ ने भारत—पाकिस्तान की सीमाओं से परे आवाजाही का प्रस्ताव भेजा था, तब मनमोहन सिंह ने उस फार्मूले को माना। राजेंद्र पुरी इस आधार पर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि जो लोग वैदिक को गिरफ्तार करने की माँग कर रहे हैं, वे क्या नेहरु और मनमोहन सिंह के बारे में ऐसे ही माँग करेंगे?

सालों से वैदिक छुट्टे पत्रकार हैं। वे अखबारों के लिए लिखते हैं। उनका कॉलम भी जगह—जगह छपता है। अपनी पाकिस्तान यात्रा के बारे में उन्होंने कुछ लेख लिखे हैं। हाफिज सईद से बातचीत का ब्यौरा भी एक अखबार में लिखा है। चैनलों में इंटरव्यू भी दिए है। शुरुआत इंडिया टीवी से की। जो भी उनसे पूछता है, उसे वे बताते हैं कि हाफिज सईद से क्या बातें हुईं। वे दो जुलाई को मिले। जिस बैठक के लिए वे गये थे वह चौदह जून को खत्म हो गयी थी। पाकिस्तान में वे बीस दिन रुके। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित तमाम राजनीतिक नेताओं से वे मिले। जिस दिन उन्हें लौटना था उसी दिन हाफिज सईद से भेंट हुई। हाफिज सईद के संगठन जमात—उद—दावा के प्रवक्ता याहिया मुजाहिद ने एक पखवाड़े बाद बताया है कि बातचीत किन—किन मसलों पर हुई। नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर सईद ने कुछ टिप्पणियाँ की। डॉ. वैदिक ने उन्हें जवाब दिए। उस बातचीत से वैदिक को जानकारी मिली कि सईद मुहाजिर है। रोपड़ से रिश्ता रहा है। जो लोग डॉ. वैदिक को सिर्फ पत्रकार समझते हैं वे ही ज्यादा शोर मचा रहे हैं। जो यह जानते हैं कि वे अभियानी भी हैं और ‘सबल भारत’ संस्था चलाते हैं उन्हें कोई भ्रम नहीं है। वे जानते हैं कि डॉ. वैदिक सईद से मिले, लिखने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए।

(देश मंथन, 06 अगस्त 2014)

 

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