खेलों में उग्रवाद की आग पाकिस्तान ने ही लगायी थी !

0
140

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

पाकिस्तान क्रिकेट के सदर शहरयार साहब छाती पीट-पीट कर रोते हुए घर लौट रहे हैं कि उग्रवादियों के आगे बीसीसीआई झुक गयी और उसने श्रीनिवासन के कार्यकाल के दौरान सिरीज खेलने का जो करार किया था, उसे तोड़ दिया।

उधर कभी एशियाई ब्रैडमैन के खिताब से नवाजे गये जहीर अब्बास ने यह चेतावनी देते हुए जब कहा कि करार रद होने का खामियाजा अगले बरस आयोजित टी-20 विश्व के मेजबान भारत को भुगतना पड़ेगा और पाकिस्तान बहिष्कार कर सकता है, तब उनका भी देश प्रेम उनके आईसीसी प्रेसीडेंट पद की गरिमा को मैली कर गया। यह बयान सचमुच विश्व क्रिकेट को संचालित करने वाली संस्था के मुखिया का नहीं वरन एक खिलाड़ी का है, जिससे उसकी भी साख पर बट्टा लग गया। लेकिन जहीर साहब यह क्यों भूल जाते हैं कि वे दिन लद गये जब आईसीसी मायने इंग्लैड और आस्ट्रेलिया ही हुआ करते थे। आज आईसीसी का असली बॉस भारत है। पाकिस्तान के बहिष्कार से मुझे नहीं लगता कि आयोजन पर कोई फर्क पड़ेगा। उल्टे परेशानी उसी को होगी। आईसीसी उस पर कड़ी कारवाई से नहीं हिचकेगी। हाँ, यह जरूर है कि पाकिस्तान के मैच ऐसी जगह हो सकते हैं जहाँ विरोध की आशंका नहीं के बराबर हो।

असल में किसी भी देश और समाज की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। यही कारण है कि हम भूल गये कि सन 1975 में विश्व कप हाकी का आयोजन स्थल पाकिस्तान से हटा कर मलेशिया क्यों किया गया था? जी हाँ पीपुल्स पार्टी के नेता और क्रिकेटर कारदार मिया ने कोहराम मचा रखा था कि अगर भारत यहाँ खेलने आया तो पाकिस्तान की गलियों में खून बहेगा। पूरे देश में भारत के खिलाफ उत्तेजक प्रदर्शनों की बाढ़ सी आ गयी थी तब जबकि कारदार साहब भारत-पाक दोनों ओर से टेस्ट खेल चुके थे।

यह है पाकिस्तान का नापाक चेहरा। क्या हमारी सेक्युलर मीडिया ने कभी भूल से भी चर्चा की कि कट्टरवादी नजरिए की शुरुआत शिवसेना ने नहीं पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टी भुट्टो की पीपीपी ने की थी। बावजूद इसके मैं शिवसेना की हरकत का समर्थन नहीं कर रहा। विरोध का यह भोंडा और निहायत अलोकतांत्रिक प्रदर्शन था। विरोध शांतिपूर्ण करते पूरा देश साथ होता। कुछ अपवाद ही हैं जो पाक के साथ रिश्ते का समर्थन करते हैं, अन्यथा तो हर भारतीय सही मायने में दोस्ती होने और आतंकवाद के खिलाफ साझा अभियान चलाने की हामी भरने तक पाकिस्तान की ओर मुँह करके भी नहीं देखना चाहता। मगर मुंबई में जो हरकत की शिवसैनिको ने उससे हम सभी शर्मसार हैं।

(देश मंथन, 22 अक्तूबर 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें