कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
हाजिर हो! सरकार हाजिर हो! तो संघ के दरबार में सरकार की हाजिरी लग गयी! पेशी हो गयी! एक-एक कर मन्त्री भी पेश हो गये, प्रधान मन्त्री भी पेश हो गये! रिपोर्टें पेश हो गयीं! सवाल हुए, जवाब हुए। पन्द्रह महीने में क्या काम हुआ, क्या नहीं हुआ, आगे क्या करना है, क्यों करना है, कैसे करना है, क्या नहीं करना है, सब तय हो गया। तीन दिन, चौदह सत्र, सरकार के पन्द्रह महीने, संघ परिवार के अलग-अलग संगठनों के 93 प्रतिनिधियों की जूरी, हर उस मुद्दे की पड़ताल हो गयी, जो संघ के एजेंडे में जरूरी है!
कोई शक कि कौन है बिग बॉस?
जो मोदी जी का ‘स्टाइल’ है, ठीक वही अब संघ कर रहा है! नरेन्द्र मोदी अपने मन्त्रियों को छोड़ सीधे अफसरों को फोन खड़का कर पूछ लेते हैं, भई क्या हुआ, अमुक मामले में क्या कर रहे हो, ऐसा करो, वैसा करो वगैरह-वगैरह। अब संघ वही कर रहा है। एक-एक मन्त्री को बुला कर पूछ रहा है, ऐसा क्यों हुआ, वैसा क्यों नहीं हुआ, यह क्या मामला है, वह क्या मामला था, नीति ऐसी नहीं, वैसी होनी चाहिए। तो अब पता चल गया न आपको कि बिग बॉस कौन है? कोई शक बाकी है क्या कि सरकार किसकी है और सरकार कौन चला रहा है?
पीएमओ दिल्ली में, सुपर पीएमओ नागपुर में!
सन्देश सीधा और दो टूक है। मोदी संघ दोऊ खड़े, काके लागूँ पायँ! संघ ने साफ-साफ बता दिया है कि किन ‘कमल चरणों’ की वन्दना होनी है? किसी को कन्फ्यूजन न रहे कि बीजेपी में किसी का कमल किसके आशीर्वाद से खिल सकता है! एक पीएमओ है, जिसे देश के लोग सरकार समझते हैं। दूसरा सुपर पीएमओ है, जो इस सरकार को चलाता है! पीएमओ दिल्ली में है, सुपर पीएमओ नागपुर में है!
तीर-कमान किसके हाथ, संघ ने बता दिया!
नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्य मन्त्री थे, तब उन्हें लेकर बहुत-से मिथ थे। उनमें से बहुत-से मिथ अब टूट रहे हैं। एक बड़ा मिथ यह भी था कि मोदी ने गुजरात में संघ वालों के पर कतर रखे थे, और उनके सामने संघ चूँ भी नहीं करता था। और जब सोलह-सत्रह महीने पहले मोदी लोकसभा के लिए वोट माँगते घूम रहे थे, तब भी विकास के लिए ललसाये, इठलाये लोग अकसर यही कहा करते थे कि संघ की चिन्ता मत कीजिए, मोदी जानते हैं कि संघ को कैसे ‘हैंडल’ करना है! लेकिन सरकार बनते ही पता चल गया कि मोदी और संघ की महत्त्वाकाँक्षाओं को एक तीर से साध पाना मुश्किल है। और अब सरकार के पन्द्रह महीनों बाद संघ ने बता और जता दिया कि तीर और कमान किसके हाथ में है? याद है कि लालकृष्ण आडवाणी को संघ ने क्यों और कैसे किनारे किया था!
बड़ा दाँव है दिल्ली के सिंहासन पर
तो मोदी गुजरात के मुख्य मन्त्री के तौर पर संघ पर क्यों हावी हो सके थे और वह प्रधान मन्त्री के तौर पर संघ के सामने इस तरह दंडवत क्यों हो गये? यह कोई कठिन पहेली नहीं है। गुजरात बहुत पहले ही संघ की सफल प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित हो चुका था। वहाँ संघ के लिए न करने के लिए कुछ बचा था, न सोचने के लिए और न वहाँ संघ का कुछ दाँव पर था। इसलिए डोर जरा ढीली थी। बस, लेकिन दिल्ली के सिंहासन पर संघ का बहुत बड़ा दाँव लगा है। पूरा का पूरा भविष्य दाँव पर है। भविष्य की सारी योजनाएँ, सारा एजेंडा दाँव पर है। संघ की अपनी घोषित टाइमलाइन है। संघ ने इसे किसी से छिपाया भी नहीं है कि वह अगले तीस वर्षों में भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने का लक्ष्य पाना चाहता है।
हर नीति में संघ का ‘इनपुट’ लीजिए!
इसलिए दिल्ली और गुजरात में फर्क़ है। गुजरात में संघ का एजेंडा पूरा हो चुका था। दिल्ली के जरिये देश में उसका एजेंडा पूरा हो सके, यह रास्ता बहुत लम्बा है। इसलिए फिसलने का कोई जोखिम उठाया नहीं जा सकता। इसलिए डोर ढीली भी नहीं की जा सकती। और संघ का एजेंडा पूरा हो, इसकी दो शर्तें हैं। एक, कम से कम अगले तीस बरस तक देश में और ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकारें चलती रहें और दूसरी यह कि प्रधान मन्त्री की गद्दी पर बैठने वाला आदमी संघ का आज्ञापालक हो, संघ की उँगली पकड़ कर चले, न कि संघ को उसकी उँगली पकड़नी पड़े। इसलिए, संघ ने पहली बार इस तरह खुल कर और सीधे सरकार की कमान अपने हाथ में ली और नरेन्द्र मोदी को साफ-साफ बता दिया कि आन्तरिक सुरक्षा से लेकर रक्षा और विदेश नीति तक, शिक्षा से लेकर वित्त, व्यापार और अर्थव्यवस्था तक, कृषि से लेकर स्वास्थ्य तक, परिवहन से लेकर शहरी विकास तक हर महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार संघ के ‘इनपुट’ का ध्यान रखे।
मोदी ने आश्वस्त किया, सब ठीक हो जायेगा!
वैसे संघ कह रहा है कि वह मोदी सरकार के अब तक के कामकाज से बहुत सन्तुष्ट है और खास कर अपनी विचारधारा को लेकर सरकार को जो आलोचना झेलनी पड़ रही है, वह बड़ी अच्छी बात है, लेकिन सब बहुत अच्छा ही चल रहा होता, तो तीन दिन की इतनी लम्बी समीक्षा की जरूरत ही क्यों पड़ती? जाहिर है कि संघ में मोदी सरकार के पन्द्रह महीनों के काम को लेकर भारी बेचैनी है और इसीलिए वक्त और गँवाये बिना उसने लगाम और चाबुक अपने हाथ में ले ली। और आखिर नरेन्द्र मोदी को संघ को यह कह कर आश्वस्त करना ही पड़ा कि वह तो संघ से ही हैं और संघ से ‘मार्गदर्शन’ मिलते रहने की आशा करते हैं, सरकार अपने एक ‘टाइमटेबल’ के अनुसार चल रही है, और उन्हें यक़ीन है कि अगले कुछ समय में हालात में काफ़ी सुधार होगा।
(देश मंथन, 10 सितंबर 2015)