संदीप त्रिपाठी :
संसद में कश्मीर पर बहस चल रही है। विपक्ष सलाह दे रहा है कि कश्मीर मसले पर संवेदनशील होने की जरूरत है, हमें कश्मीर और कश्मीरियत को बचाना है। विपक्ष के कई दलों के नेताओं के कथन को सुनें तो लगेगा कि पूरी कश्मीर समस्या की जड़ में मोदी सरकार का कश्मीर के प्रति असंवेदनशील रवैया है। अगर इस सरकार का रवैया संवेदनशील होता तो कश्मीर की समस्या खत्म हो गयी होती।
देश को आजाद हुए 69 साल बीत गये। इस दरम्यान 55 साल कांग्रेस की सरकार रही। 8 साल भाजपा की सरकार रही और 6 साल अन्य दलों की सरकार रही। कश्मीर की समस्या आजादी मिलने के साथ की है। निश्चित रूप से जो लोग संवेदनशील होने की सलाह दे रहे हैं, देश में 61 साल तक उनकी सरकारें रहीं हैं। जब वे सलाह दे रहे हैं तो हमें यह मानना चाहिए कि उन सरकारों के कार्यकाल में संवेदनशील रवैया अपनाया गया होगा। तब तो उन 61 सालों में कश्मीर समस्या सुलझ गयी होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्या जस की तस है। इसका अर्थ है रवैया बदलना होगा।
एक सवाल यह भी है कि यह संवेदनशील रवैया आप किसके लिए माँग रहे हैं? कश्मीर राज्य में केवल घाटी नहीं है, जम्मू भी है, लद्दाख भी है। भाजपा सांसद श्मशेर सिंह मिन्हास ने बिल्कुल सही कहा कि जब आप कश्मीर की बात करते हैं तो जम्मू और लद्दाख की बात क्यों नहीं करते? जम्मू और लद्दाख के लोगों ने तो कभी अलगाववाद की बात नहीं की? जम्मू और लद्दाख में भी युवा डिग्रियाँ हाथ में लिये बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, वे तो सेना पर पथराव नहीं कर रहे?
आबादी की दृष्टि से देखें तो जम्मू और कश्मीर भारत का 19वां बड़ा राज्य है। इसके तीन हिस्से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हैं। राज्य की कुल आबादी सवा करोड़ (1,25,41,302 – वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) है। इसमें जम्मू की आबादी 53.8 लाख, लद्दाख की आबादी 2.7 लाख और कश्मीर घाटी की आबादी 68.9 लाख है। इसमें पथराव करने वाले और अलगाववाद की बात करने वाले कितने हैं – ज्यादा से ज्यादा घाटी की कुल आबादी के 10 से 15% होंगे, यानी हद से हद 10 लाख लोग, हालाँकि यह अनुमान भी ज्यादा लग रहा है। इनमें भी 60-70% ऐसे लोग होंगे जो साथ की वजह से या भय के कारण अलगाववादियों का साथ दे रहे हैं। यानी कुल वास्तविक अलगाववादियों की संख्या तीन से पाँच लाख होनी चाहिए। यह संख्या पूरे जम्मू और कश्मीर राज्य की आबादी के 4% के बराबर है।
कश्मीर घाटी से हर साल लाखों व्यापारी शॉल और स्वेटर ले कर देश के विभिन्न शहरों और कस्बों में आते हैं। देशभर में ऐसे व्यापारियों की कुल संख्या तीन से पाँच लाख हो सकती है। इन व्यापारियों के परिवारों के सदस्यों की संख्या जोड़ लीजिये तो इन व्यापारियों से जुड़े लोगों की संख्या 30 से 35 लाख हो सकती है जो कश्मीर घाटी की कुल आबादी के लगभग आधी है। तो केवल उन व्यापारियों से पूछिये कि कश्मीर भारत से अलग हो गया तो उनका क्या होगा? तो क्या महज 4% लोगों की खता की सजा बाकी 96% को भुगतनी चाहिए?
कश्मीर समस्या का समाधान देश भर में फैले इन कश्मीरी व्यापारियों के जरिये किया जा सकता है। इन्हें कश्मीर घाटी में कश्मीर के भारत के अभिन्न अंग होने के दूत के रूप में खड़ा किया जा सकता है। कश्मीर घाटी में शांति के लिए मसीहा यही व्यापारी बन सकते हैं, सरकार और नेताओं को इस दिशा में विचार करना चाहिए। और खैर, जो अलगाववादी हैं, उनसे वही व्यवहार होना चाहिए जो देश के किसी भी अन्य राज्य में कानून के प्रति हिकारत का भाव रखने वालों के साथ किये जाने का प्रावधान है।
(देश मंथन 11 अगस्त 2016)