वाह, कुमारस्वामी!

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक : 

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल (एस) के नेता एचडी कुमारस्वामी की यों तो सब निंदा करेंगे, क्योंकि उन्होंने एक विधान परिषद उम्मीदवार से 40 करोड़ रुपये माँगे थे।

अखबार वाले और टीवी वाले इस कन्नड़ नेता के पीछे पड़ गये हैं लेकिन अपने विरुद्ध हो रहे प्रचार से कुमारस्वामी जरा भी नहीं घबराये। उन्होंने उनकी बातचीत के टेप को प्रामाणिक बताया और कहा कि हाँ, फोन पर हुई बातचीत में मैंने बीजापुर के विजयाम गौड़ा पाटिल से 40 करोड़ रुपये की माँग की थी। यदि वे मुझे 40 करोड़ रुपये दे देते तो मैं उन्हें कर्नाटक के उच्च सदन के लिए नामजद कर देता।

कुमारस्वामी ने कहा है कि इसमें छिपाने लायक क्या है? मेरे चालीस विधायक हैं। चुनाव में उनका बहुत खर्च हुआ है। वे सब मुझसे एक-एक करोड़ रुपये माँग रहे हैं। मैं उन्हें कहाँ से दूँ? जिसके पास होगा, वहीं देगा। पाटिल के पास है लेकिन उसने दिए नहीं। वह सिर्फ दस करोड़ दे रहा था। मैंने उसे विधायक नहीं बनाया तो उसने हताश होकर हमारी ‘टेप’ की हुई बातचीत को मीडिया में उछाल दिया।

क्या बात है? कमाल किया, कुमारस्वामी, आपने। सबसे पहले तो मैं आपके साहस की दाद दूँगा। आपने झूठ नहीं बोला। इधर-उधर की बहानेबाजी नहीं की। आम नेताओं की तरह सारे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश नहीं की। दूसरी प्रशंसनीय बात यह कि आपने भारतीय राजनीति की पोल खोल दी। रोज करोड़ों-अरबों रुपये की हेरा-फेरी किए बिना राजनीति करना असंभव है। यह सब जानते हैं लेकिन आम जनता को पता नहीं कि यह हेरा-फेरी होती कैसे है। आपने सबको बता दिया।

लेकिन कुमार। आपने जो राज खोला है, वह एक पहाड़ के सामने एक कंकड़ के बराबर भी नहीं है। राजनीति में पैसे का महत्व इतना अधिक हो गया है कि दोनों ही एक दूसरे के पर्याय बन गये हैं। राजनीति से पैसा बनाओ और पैसे से राजनीति बनाओ। हमारे नेता सेठों की गुलामी करते हैं। और सेठ फिर नेताओं की गुलामी करते हैं। दोनों बड़े चतुर हैं। दोनों एक-दूसरे को ठगते हैं। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान किसका होता है? आम जनता का होता है।

क्योंकि नेतागण और नौकरशाह जब नीतियाँ बनाते हैं तो सबसे पहले वे सबसे ज्यादा ध्यान उन सेठों का रखते हैं, जिनके पैसे से उन्होंने चुनाव लड़ा है। वोट देनेवाली जनता से सामना तो पाँच साल बाद होगा। जब होगा, तब देखा जायेगा। अभी तो पैसा और पैसा जमा करना है। कुमारस्वामी अभी प्रतिपक्ष में हैं, इसलिए उन्हें माँगना पड़ रहा है। यदि वे सत्ता में होते तो 40 करोड़ क्या, चार सौ करोड़ भी मामूली बात होती। पैसे ने हमारे नेताओं को बौना कर दिया है। वे नेता नहीं, दलाल बन गये हैं।

(देश मंथन, 07 जुलाई 2014)

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