राजनीति और महात्वाकांक्षा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ ने लिखा है

 “आज ट्रेन में यात्रा के दौरान मंगनू सिंह जी के बेटे से भेंट हुई। उनके बेटे डॉक्टर वीपी सिंह इस समय एनसीईआरटी, दिल्ली में हैं और आजमगढ़ से जुड़े हैं।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे स्वर्गीय मंगनू सिंह जी की तत्कालीन सरकारों में इतनी मान्यता थी कि उनके पत्र से भले लोगों को चुनाव में टिकट मिल जाते थे और वो जीत कर सरकार के माध्यम से सेवा के मार्ग पर चल पड़ते थे।

डॉक्टर वीपी सिंह जी ने बताया कि प्रारम्भ में जो सरकारें बनीं, राज्य और केंद्र, उनमें सभी एमपी और एमएलए अपने लिए राजधानियों में मकान एलाट नहीं कराते थे।उनका मानना था कि उन्हें राजधानियों में रहने की क्या जरूरत? उनको अपने कार्य क्षेत्र में रह कर सेवा करनी है। उनके बच्चों को भी तब राजधानियों में पढ़ने के लिए पिता के नाम पर एलॉट मकानों की जरूरत नहीं पड़ती थी। स्थानीय शिक्षा उनके लिए पर्याप्त थी। जब विधान सभा और लोक सभा के सत्र चलते थे तब वे लोग अपने बैग में दो जोड़ी धोती कुर्ता रख कर वरिष्ठ नेताओं के यहाँ ठहरते थे। उस समय उन वरिष्ठ नेताओं के यहाँ ही उन सब का खाना बनता था। ये लोग सरकारी भत्ता भी लेने से इनकार करते थे, ताकि सार्वजनिक कोष में से उन पर कम से कम खर्च हो। जिस नैतिकता और शुचिता से ये देश शुरू हुआ था, उसे नई पीढ़ी को जानने, समझने और दोहराने की जरूरत है। जहाँ नैतिकता को स्थापित किया जा रहा है, उसका गान करने की जरूरत है।”

Urmila Shrivastava

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बेटा लिख रहा है

मैं बिहार की पूर्व मुख्य मंत्री राबड़ी देवी को जितना जानता हूँ, उससे कह सकता हूँ कि उन्हें सचमुच राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन उनके महान राजनीतिज्ञ पति श्री लालू प्रसाद यादव जब भारी मुसीबत में फंस गये और लगने लगा कि बिहार की गद्दी उनके हाथों से जाने लगी है, तो उन्होंने अपनी गैरराजनीतिक पत्नी को मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। बेचारी राबड़ी देवी बिहार की मुख्य मंत्री बन गयीं। इससे लालू यादव का मुख्य मंत्री निवास बच गया। उनकी पावर बच गयी।

बिहार के जानवरों की तरफ से यह शिकायत दर्ज होने के बाद कि उनका चारा लालू प्रसाद खा गये और कोर्ट से यह साबित होने के बाद भी कि उन्होंने ही चारा खाया है, लालू यादव बिहार में मुख्य मंत्री पद का सुख भोगते रहे। आज उनके दोनों ‘लाल’ खुद स्कूल जाने की उम्र में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पढ़ा रहे हैं। 

खैर, मैं बंधा हूँ यहाँ राजनीति पर नहीं लिखने की अपनी प्रतिज्ञा से, इसलिए इस टॉपिक पर मैं कुछ और नहीं कहना चाहता। 

पर हरदोई से एक यात्रा में मेरी माँ की मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी मंगनू सिंह के बेटे वीपी सिंह से हो गयी। कल माँ ने अपनी पोस्ट में लिखा कि पहले के नेता राजधानी में अपने लिए मकान नहीं लेते थे। उनका कहना था कि उनका कार्य क्षेत्र जहाँ है, वहीं रहना होता है, ऐसे में राजधानी में मकान क्यों? अगर कभी राजधानी आने की जरूरत पड़ भी जाए, तो वे किसी वरिष्ठ नेता के घर ठहर लेते थे। 

ये मेरे लिए सचमुच चरण वंदन करने योग्य जानकारी है। 

पर मैं आपको एक और जानकारी देना चाहता हूँ। सुना है कि राजनीति से कोसों दूर रहने वाली राबड़ी देवी फिर दिल्ली आने वाली हैं, राज्य सभा सांसद बन कर। मुझे पता है कि राबड़ी देवी की दिलचस्पी रत्ती भर सांसद बनने की नहीं। लेकिन क्या करें, लालू यादव सांसद नहीं बन सकते। उन पर अदालती रोक है। बेटी को बनाना चाहते थे, लेकिन वो राजनीति में पहली बार आएंगी तो सांसद बनने के बाद भी उन्हें दिल्ली में सांसदों वाला ‘फ्लैट’ ही मिलेगा, कोठी नहीं। ऐसे में राबड़ी देवी सबसे मुफीद उम्मीदवार होंगी, जो इतने लंबे समय तक एक राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, जिन्हें भारी सुरक्षा की जरूरत पड़ती है, ऐसे में अगर वो सांसद बन गयीं तो उन्हें कोठी मिलेगी। 

और इस कोठी से दिल्ली में बैठ कर क्षेत्र की राजनीति चलेगी। मैं जानता हूँ कि इस बार राबड़ी देवी सिर्फ और सिर्फ इसलिए सांसद चुनी जाएंगी, ताकि उन्हें दिल्ली में बहुत बड़ी कोठी मिल सके और लालू यादव की महात्वाकांक्षा पूरी हो सके। 

मेरी पोस्ट में राजनीति मत तलाशिए। मेरी पोस्ट में मंगनू सिंह के बेटे की उस बात के मर्म को तलाशिए, जिसमें उन्होंने नैतिकता और शुचिता से भारत को चलाने की बात की है। 

मर्म ही तलाशना हो तो ये सोचिए कि हम अपने भारत को कहाँ से कहाँ पहुँचा बैठे हैं। 

आप उस सच को समझने की कोशिश कीजिए, जिसमें राजनीति अब देश सेवा, मानव सेवा नहीं रह गयी, यह एक पेशा बन गयी है, कमाई का जरिया बन गयी है।       

‪(देश मंथन, 24 अप्रैल 2016)

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