बसपाइयों के शर्मनाक कृत्य पर सियासी बेशर्मी

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संदीप त्रिपाठी :

भाजपा से बर्खास्त दयाशंकर सिंह ने मायावती पर बहुत गलत टिप्पणी की थी। भाजपा ने तत्काल इसके लिए उन्हें दंडित किया। सभी ने दयाशंकर की निंदा की। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गयी और पुलिस उनकी तलाश कर रही है, वे फरार हैं। बलिया निवासी दयाशंकर लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की उपज हैं। छात्र संघ के अलावा कहीं कोई चुनाव जीत नहीं सके। यानी आप मान सकते हैं कि अभी राजनीतिक वयस्कता की दृष्टि से दयाशंकर बालिग नहीं हैं। फिर भी उन्होंने मायावती पर जो अपमानजनक टिप्पणी की, उसका उन्हें दंड मिला।

मायावती के लिए क्या दंड

लेकिन इसके बाद मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दिकी ने जो किया, इसके लिए उन्हें आप कौन सा दंड दे रहे हैं। मायावती चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, एक बड़े दल की मुखिया हैं। नसीमुद्दीन सिद्दिकी उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। अपनी पार्टी बसपा में भी शीर्ष नेताओं में शुमार हैं। यानी आप कह सकते हैं कि मायावती और नसीमुद्दीन राजनीतिक रूप से वयस्क हैं। तो निश्चित रूप से समान गलती के लिए इन दोनों को ज्यादा बड़ी सजा मिलनी चाहिए।

मायावती, नसीमुद्दीन सही तो दयाशंकर गलत क्यों

दयाशंकर ने तो जो किया, सो किया और भुगता भी। लेकिन मायावती, नसीमुद्दीन और बसपाइयों की तरफदारी में बड़े-बड़े बोल बोलने वाले बतायेंगे कि अगर मायावती और नसीमुद्दीन सही हैं तो दयाशंकर कैसे गलत हो गये। दयाशंकर और मायावती के मामले में कहा जा सकता है कि एक राजनीतिक व्यक्ति ने दूसरे राजनीतिक व्यक्ति के खिलाफ कुछ अपमानजनक शब्दों का उपयोग कर दिया, वह भी सीधे नहीं किया, और शायद वह सोच भी नहीं पायें होंगे कि जो वे कह रहे हैं, उसको किस तरह लिया जायेगा।

लेकिन मायावती और नसीमुद्दीन ही नहीं, बसपा के सभी प्रमुख लोगों की अगुवाई में बसपाइयों ने लखनऊ में दयाशंकर की 12 साल की बच्ची के लिए जो कुछ कहा, वह तो योजनाबद्ध था, सोचा-समझा था। एक नाबालिग बच्ची, जिसे राजनीति का कोई ज्ञान नहीं है और न जिसे यह समझ है कि उसके पिता ने जो कहा, उसका क्या अर्थ है और न ही ये समझ है कि बसपाई उसके खिलाफ जो कुछ कह रहे हैं, उसका क्या अर्थ है, के खिलाफ ऐसी अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल अत्यंत अवांछनीय है। और जब यह सब कुछ जब सुनियोजित ढंग से हुआ हो तो और भी ज्यादा बड़ा अपराध है।

मगर मायावती को शर्म नहीं आयी

और इन सब पर मायावती को कोई शर्म नहीं आयी? वे अब किस मुँह से दयाशंकर के खिलाफ कुछ कहने का नैतिक साहस कर सकती हैं। मायावती के मुकाबले दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह आ गयी हैं। मायावती के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में नारा लगाया था कि दयाशंकर की बेटी-बहन को पेश करो। स्वाति सिंह ने मायावती से एक बहुत मासूम सा सवाल किया है – मैं अपनी 12 साल की बेटी को कहाँ, किसके सामने पेश करूँ। मायावती अब कह रही हैं कि यह नारा कुछ असामाजिक तत्वों ने लगाया था। लेकिन महोदया, यह नारा लखनऊ में मंच पर खुलेआम चार घंटे तक लगे थे। आप इन नारों की जवाबदेही से बच नहीं सकतीं।

अखिलेश का रुख शर्मनाक

और शर्मनाक तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का रुख भी है। मऊ में दयाशंकर के बोल बिगड़ जाने पर तेवर दिखाते हुए अखिलेश ने लखनऊ पुलिस को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिये थे। और ठीक उनकी नाक के नीचे लखनऊ में ही बसपाइयों द्वारा सोच-समझ कर एक 12 साल की बच्ची के प्रति अपमानजनक रवैया अपनाने पर अखिलेश क्या सोये हुए थे। क्या अखिलेश इस बच्ची के मुख्यमंत्री नहीं हैं, क्या यह बच्ची अखिलेश के राज्य की निवासी नहीं है, क्या इस बच्ची के सम्मान की रक्षा का दायित्व अखिलेश का नहीं है? अगर अखिलेश को वाकई ऐसी बातों से कष्ट पहुँचता है तो उन्हें चाहिए कि लखनऊ के विरोध प्रदर्शन में इस बच्ची के खिलाफ अपमानजनक बातें कहने वालों और उसे समर्थन देने वालों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करें वरना घड़ियाली तेवर दिखाने का कोई अर्थ नहीं है।  

सबसे शर्मनाक कांग्रेस

सबसे शर्मनाक तो कांग्रेस का रुख है। यह वही कांग्रेस है जिसकी प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने मायावती के साथ कुछ ‘अनैतिक’ करने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी। दयाशंकर तो बयान देते ही भाजपा से निपट गये। लेकिन रीता बहुगुणा जोशी आज भी कांग्रेस की सम्मानित नेता हैं। और वह कांग्रेस दयाशंकर के बयान के खिलाफ आंदोलन करने की कोशिश कर रही है। यह वही कांग्रेस है जिसके नेता कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी पर अपमानजनक टिप्पणी कर चुके हैं और कांग्रेस ने आज तक उन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।

(देश मंथन 23 जुलाई 2016)

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