क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
बिहार के हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर तमिलनाडु के हिन्दुओं के मुकाबले दुगुनी क्यों है? और केरल के मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के मुकाबले आधी क्यों है? केरल और लक्षद्वीप बड़ी मुस्लिम आबादीवाले राज्य हैं।
इन दोनों राज्यों में दस सालों में मुस्लिम आबादी सिर्फ 12.8 और 7.5% बढ़ी, जबकि देश का राष्ट्रीय औसत 17.7 का है। जाहिर है कि धर्म का इससे लेना-देना नहीं। बल्कि एक बड़ा कारण है महिला साक्षरता की दर।
मुस्लिम आबादी का मिथ – भाग दो! पहला भाग कब आया? शायद ‘राग देश’ के पाठकों को याद हो कि उसे मैंने लिखा था आज से बीस महीने पहले, पिछले साल जनवरी में! फिर बीस महीने बाद भाग- दो लिखने की जरूरत क्यों पड़ गयी? लाख टके का सवाल यही है। बस सारा मर्म यहीं है।
बीस महीने पहले धार्मिक आधार पर 2011 की जनगणना के आँकड़े कुछ अखबारों में ‘लीक’ हो कर छपे थे कि हिन्दू आबादी घट कर 80% के नीचे पहुँच गयी और मुसलमान बढ़ कर 14% के ऊपर हो गये! तब खूब हल्ला मचाया गया था कि वह दिन दूर नहीं जब भारत में हिन्दू ही अल्पसंख्यक हो जायेंगे। आँकड़े तो सत्य थे, लेकिन यह आधा सच था। सच का दूसरा पहलू यह था कि मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर और जनन दर पहले के मुकाबले लगातार घट रही है, मुसलमानों में परिवार नियोजन बढ़ रहा है और अगले कुछ वर्षों मे उनकी जनन दर घट कर राष्ट्रीय औसत के आसपास आ जायेगी। लेकिन झूठ के भोंपू अर्द्धसत्य फैला कर देश को डरा रहे थे। तब मैंने मुस्लिम आबादी के मिथ का पूरा सच लिखा था।
बीस महीने बाद फिर क्यों?
तो अब बीस महीने बाद क्या बदल गया? कोई नये आँकड़े आ गये, कोई नया अध्ययन, कोई नया शोध सामने आया है। जी नहीं। आँकड़ें वही बीस महीने पुराने हैं। लेकिन झूठ को फिर से फैलाने की कोशिश हुई है। वह किसी जमाने में नाजी जर्मनी में एक सज्जन हुआ करते थे। उनका कहना था कि एक झूठ को बार-बार बोलो तो लोग उसे सच मानने लगते हैं। अपने देश में कई लोग बड़ी श्रद्धा से उनके इस सिद्धाँत के मानते हैं। इसलिए उन्हीं पुराने आँकड़ों पर फिर से शोर मचाया जा रहा है।
जनगणना आँकड़ों पर नहीं, निष्कर्ष पर विवाद
जनगणना (Census 2011) के आँकड़े सही हैं। उस पर कोई विवाद नहीं। विवाद इस पर है कि आप आँकड़ों से निष्कर्ष क्या निकालते हैं। निष्कर्ष यह निकाला जा रहा है कि अपने धर्म के कारण मुसलमान जनसंख्या नियंत्रण में रूचि नहीं लेते। इससे भी आगे एक निष्कर्ष यह भी है कि मुसलमान जानबूझ कर अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं ताकि वे संख्याबल में हिन्दुओं से आगे निकल जायें। अब आइए देखते हैं कि सच्चाई क्या है।
जनसंख्या वृद्धि : कारण धर्म या और कुछ?
पहली सच्चाई यही है कि इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं। यह सवाल सीधे-सीधे और सिर्फ सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से जुड़ा है। तीन-चार मोटी-मोटी बातें हैं। एक, समाज में शिक्षा खास कर महिलाओं की शिक्षा की स्थिति क्या है? दूसरा आर्थिक स्थिति और रहन-सहन का स्तर क्या है। तीसरा शहरी और ग्रामीण परिवेश और चौथा विवाह की उम्र व परिवार नियोजन के साधनों के बारे में जागरूकता और उनकी उपलब्धता।
हिन्दीभाषी प्रदेशों में ही क्यों इतनी ज्यादा जनन दर?
इसी साल मार्च में स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने संसद में बयान दिया था कि देश के चौबीस राज्यों में जनन दर (Fertlity Rate) घट कर 2.1 के आसपास हो गयी है। इसे ‘रिप्लेसमेंट लेवल’ (Replacement Level) या ‘प्रतिस्थापन स्तर’ कहते हैं। इस स्तर पर आबादी न बढ़ती है और न घटती है। मतलब यह कि प्रति महिला बच्चे जनने का औसत 2.1 से कम हो जाये तो आबादी घटने लगेगी। तो क्या इन ज्यादातर राज्यों में जहाँ यह सफलता हासिल की जा चुकी है, मुसलमान नहीं रहते? और किन राज्यों में सफलता नहीं पायी जा सकी? बिहार (जनन दर 3.4), उत्तर प्रदेश (3.1), मध्य प्रदेश (2.9), राजस्थान (2.8), झारखंड (2.7)। छत्तीसगढ़ में भी यह 2.6 के आसपास है। आपने देखा कि ज्यादा जनन दर वाले सारे राज्य हिन्दी भाषी हैं और उत्तर या मध्य भारत के हैं। दक्षिण के चारों राज्यों तमिलनाडु (1.7), केरल (1.8), अविभाजित आन्ध्र (1.8) और कर्णाटक (1.9) में जन्म दर देश में सबसे कम है। क्यों? वैसे पश्चिम बंगाल में जनन दर देश में सबसे कम (1.6) है।
बिहार का हिन्दू, तमिलनाडु का हिन्दू
यूपी का मुसलमान, केरल का मुसलमान
यहाँ दुगुने बच्चे, वहाँ उसके आधे बच्चे क्यों?
सवाल। बिहार के हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर तमिलनाडु के हिन्दुओं के मुकाबले दुगुनी क्यों है? और केरल के मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के मुकाबले आधी क्यों है? केरल और लक्षद्वीप बड़ी मुस्लिम आबादीवाले राज्य हैं। इन दोनों राज्यों में दस सालों में मुस्लिम आबादी सिर्फ़ 12.8 और 7.5% बढ़ी, जबकि देश का राष्ट्रीय औसत 17.7 का है। जाहिर है कि धर्म का इससे लेना-देना नहीं। बल्कि एक बड़ा कारण है महिला साक्षरता की दर। एक और आँकड़ा। जम्मू-कश्मीर की आबादी में करीब 68% मुस्लिम हैं, लेकिन मुसलमानों की जनन दर (2.52) हिन्दुओं (2.23) से बस मामूली-सी ज्यादा है।
शहरों के मुकाबले ग्रामीण जनन दर कहीं ज्यादा क्यों?
इसी तरह, देश के शहरी इलाकों में जनन दर सिर्फ 1.8 है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 2.5 है। कारण वही है। शिक्षा, आर्थिक उन्नति, रहन-सहन और जागरूकता की वजह से शहरों में जनन दर आज दुनिया के विकसित देशों के बराबर हो गयी है। 1971 में ग्रामीण इलाक़ों की जनन दर 5.4 थी, लेकिन रोटी-रोजी के लिए गाँवों से बड़ी आबादी का शहरों में आकर काम करना, शिक्षा का प्रसार और चाहे जैसी भी लचर हो, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की गाँवों तक पहुँच ने जनन दर को घटा कर आधा कर दिया।
छोटे होते परिवार
देश में परिवारों का आकार औसतन छोटा हुआ है। हिन्दू परिवारों के आकार में 5.3% की गिरावट दर्ज की गयी है, और मुस्लिम परिवारों का आकार पहले से 11% छोटा हुआ है। जाहिर है कि मुस्लिम परिवार आमतौर पर बड़े हुआ करते थे, इसलिए उनके आकार में बड़ी गिरावट आयी है।
30 सालों में मुस्लिम जनन दर भी 2.1 पर आ जायेगी!
प्यू रिसर्च की 2011 की रिपोर्ट का हवाला देकर डराया जा रहा है कि अमेरिका, फ़्राँस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि में मुसलमान वहाँ के मूल निवासियों से आगे निकल जायेंगे। ये सभी विकसित देश हैं और जनसंख्या अध्ययन के आधार पर अगले पचास-सौ वर्षों की अपनी योजना तैयार करते हैं। हैरानी की बात है कि इन्हें अभी तक इस खतरे की चिन्ता नहीं हुई, लेकिन भारत में कुछ लोग छाती पीट रहे हैं! और उन्हें उसी प्यू रिसर्च में यह तथ्य नहीं दिखा कि पूरी दुनिया में मुस्लिम जनन दर गिरावट पर है। 90-95 में यह 4.3 थी, 2010-15 में करीब 2.9, फिर 2030-35 में घट कर 2.3 और 2040-45 में इसके 2.1 तक गिर जाने की सम्भावना है, जो ‘रिप्लेसमेंट लेवल’ है। शायद बहुत कम लोगों को यह बात पता हो कि दुनिया भर में इस समय केवल अफ़्रीका में ही 5 की जनन दर है, जो सबसे ज्यादा है। मुस्लिम देशों समेत दुनिया के तमाम कम विकसित या पिछड़े देशों में जनन दर लगातार नीचे आती जा रही है।
जनन दर का सीधा रिश्ता विकास से
विकास से जनन दर का कितना सीधा रिश्ता है, यह भी 2011 की इसी प्यू रिसर्च में दिखाया गया है। 90-95 में विकसित देशों की जनन दर 1.7 थी, आज भी यही है और 2030-35 में भी यही रहने की सम्भावना है, जबकि कम विकसित देशों की जनन दर 90-95 में 3.3 थी, जो आज 2.6 के आसपास है और 2030-35 में घट कर 2.1 तक आयेगी। अब तीनों आँकड़ों को एक बार फिर से साथ में देखिए। 90-95 में मुस्लिम देशों की जनन दर 4.3, कम विकसित देशों की जनन दर 3.3 और विकसित देशों की 1.7 थी। विकसित देशों की जनन दर तो तबसे लगभग स्थिर है, लेकिन मुस्लिम देशों की जनन दर के 2010-15 में घट कर 2.9 और कम विकसित देशों में जनन दर के घट कर 2.6 होने के अनुमान थे। 2030-35 में मुस्लिम देशों की जनन दर और घट कर 2.3 व कम विकसित देशों में 2.1 होने का अनुमान है, जबकि विकसित देशों में तब भी जनन दर के 1.7 पर ही टिके रहने की सम्भावना है।
साफ है कि विकास, महिला साक्षरता, शहरीकरण और स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता ही जनसंख्या को प्रभावित करनेवाले कारण हैं, न कि धर्म। भारतीय मुसलमान शिक्षा क्षात्र आर्थिक मोर्चे पर समाज के दूसरे तबकों से बहुत पीछे हैं, और यही कारण है कि उनकी जनन दर अन्य वर्गों के मुक़ाबले ज्यादा है। अगर शिक्षा, साक्षरता, आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता का जनसंख्या वृद्धि पर कोई प्रभाव न पड़ता होता तो भारत में शहरी और ग्रामीण इलाकों की जनन दर में इतना बड़ा अन्तर क्यों होता। कुल मिला कर जवाब एक ही है कि मुसलमानों की पढ़ाई-लिखाई और आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान दिया जाये, तो जनसंख्या का सवाल चुटकियों में सुलझ जायेगा। शायद बात आपको समझ में आ गयी होगी। और कोई न ही समझना चाहे तो किया भी क्या जा सकता है!
(देश मंथन, 24 सितंबर 2016)