अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
देश के सबसे खांटी राजनेताओं में से हैं शरद पवार। उनके मन की थाह पाना असंभव है।
हर तरफ से कांग्रेस के लिए आ रही बुरी खबरों के बावजूद पवार कांग्रेस के साथ बने हुए हैं। तमाम उठापटक के बावजूद उनकी पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ लोक सभा चुनावों के लिए सीटों का बंटवारा कर लिया है। लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार पवार के सार्वजनिक बयानों के मतलब ढूंढते रहते हैं क्योंकि कभी वो कांग्रेस पर गरम होते हैं तो कभी नरम।
एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में पवार ने कहा है कि 2002 के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता है। पवार ने कहा कि जब अदालत ने कुछ कहा है तो हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात ये है कि गुजरात दंगों पर पवार का बयान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पीटीआई को दिए इंटरव्यू के बाद आया है। इसमें राहुल ने कहा था कि एसआईटी की रिपोर्ट पर जानकारों द्वारा कई सवाल उठाए गए हैं और निचली अदालत के फैसले पर अभी बड़ी अदालतों की मुहर लगनी बाकी है। हालांकि पवार ने ये भी कहा है कि बतौर मुख्यमंत्री दंगों के लिए मोदी की जिम्मेदारी बनती है और उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
मोदी और दंगों को लेकर पवार इससे मिलती-जुलती बात कुछ समय पहले भी कह चुके हैं। लेकिन बाद में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे की बैठक में उन्होंने गुजरात दंगों को लेकर मोदी पर तीखा हमला किया था। जबकि आठ दिसंबर को चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद पवार ने कांग्रेस आलाकमान की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। तब पवार ने आरोप लगाया था कि गैरसरकारी संगठन हावी होते जा रहे हैं। माना गया कि ये सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद पर निशाना है।
वैसे इस सबके बावजूद पवार ये स्पष्ट करते हैं कि वो यूपीए के ही साथ रहेंगे। चुनाव से पहले भी और चुनाव के बाद भी। लेकिन राजनीतिक गलियारों में मोदी के प्रति नरमी बरतने वाले पवार के बयानों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये पूछा जा रहा है कि पवार मोदी और कांग्रेस पर कभी गरम तो कभी नरम क्यों होते हैं।
जहां तक प्रधानमंत्री बनने की पवार की महत्वाकांक्षा का सवाल है, अभी तक उनकी ओर से इस पर पूर्ण विराम नहीं लगाया गया है। वैसे पवार कहते हैं कि उनकी पार्टी की इतनी ताकत नहीं है जिसके चलते वे प्रधानमंत्री बन सकें। ये ज़रूर है कि पवार इस बार लोक सभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और वो राज्य सभा के जरिए संसद में पहुँच गए हैं। महाराष्ट्र के राजनेताओं के बारे में ये बात मशहूर है कि वे चाहे किसी पार्टी में हों, मगर आपस में पक्की दोस्ती होती है। महाराष्ट्र बीजेपी के कुछ नेताओं के बारे में हल्के अंदाज में यहां तक कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनके उम्मीदवार नरेंद्र मोदी नहीं बल्कि शरद पवार हैं। ये पवार की शख्सियत और राजनीतिक विरोधियों में उनकी लोकप्रियता का पैमाना भी हो सकता है। बहरहाल पवार के कभी गरम तो कभी नरम रुख का राज यही लगता है कि भविष्य के लिए अपने दरवाजे सबके लिए खुल रखो।