पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
परमाणु तकनीक की तस्करी और चोरी के बल पर पाकिस्तान के लिए एटम बम के, जिसे “इस्लामिक बम” भी करार दिया जाता है, निर्माता पाकिस्तानी वैज्ञानिक डाक्टर अब्दुल कादिर खाँ ने जो रहस्योदघाटन शनिवार को इस्लामाबाद में देश के परमाणु ताकत बनने के मौके पर आयोजित “यौम-ए-तकबीर” रैली में किया कि 1984 में हम कहूटा से दिल्ली को पाँच मिनट के भीतर टारगेट करने जा रहे थे पर ऐन समय में पाकिस्तान के सैन्य शासक तानाशाह जियाउल हक ने इजाजत नहीं दी, कहीं से गलत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उसी साल हम न्यूक्लीयर टेस्ट करना चाहते थे मगर जिया साहब ने यह कहते हुए रोक दिया कि टेस्ट करने से अमेरिका सहित सभी देश हमारी आर्थिक मदद रोक देंगे।
मुझे नहीं पता कि भारत का परराष्ट्र मंत्रालय कैसे रिएक्ट करता है और क्या उसके पास गोपनीय फाइल है इस प्रकरण की ? मगर यह जानता हूँ कि 1984 में हमारे विदेश विभाग के लांबा और शशांक जैसे अफसर पाक स्थित भारतीय उच्चायोग में तैनात थे वे पुष्टि कर सकते हैं कि कादिर का यह रहस्योदघाटन कोई उड़नझाई नहीं, इसमें सत्यता है। उस समय पाकिस्तान इस कदर भारत और रा से डरा हुआ था कि तीन दिनों तक उस देश में अफरातफरी मची हुई थी और देश आतंकित था कि किसी भी क्षण भारत के जगुआर विमान कुहेटा के परमाणविक केंद्र को बमवर्षा से नष्ट कर देंगे। देश में ब्लैक आउट जैसे हालात बने हुए थे।
यह बात दावे से इसलिए कह सकता हूँ कि 1984 में मैं स्वयं पाकिस्तान में मौजूद था। अवसर था भारत-पाक क्रिकेट सिरीज का। पहला टेस्ट लाहौर में खेला जाना था। पूर्व में मैं दो बार 1978 और 1982 की सिरीज के दौरान भी इस देश में मौजूद था। लेकिन इस तीसरी यात्रा में हम सभी को पाकिस्तान एकदम बदला सा नजर आया। पहले हालत यह होती थी कि पाकिस्तानी धरती पर कदम रखते ही वहाँ के शहाफी यानी पत्रकार आ धमकते थे। बड़बोले क्रिकेटर सरफराज नवाज तो भारतीय शिविर के हमदम हुआ करते थे। मगर दो दिन बीत गये कोई होटल में नजर नहीं आया। रात्रि में होटल की लाबी में साथी पत्रकार राजनबाला (अब स्वर्गीय) ने सिर्फ सिगरेट सुलगायी थी कि सुरक्षाकर्मियों ने राइफल तान दी गोया राजन कोई भारतीय जासूस हो। हर कोई चकित था इस बदले नजरिए से।
तीसरे दिन कुछ पाकिस्तानी साथी और खिलाड़ी छुप कर आये जब रात्रि में हमारे उच्चायोग ने एक काकटेल पार्टी रखी। हम चौंक उठे उनसे यह जान कर कि पाकिस्तान को जब अमेरिका से खबर मिली कि भारतीय जगुआर अपने बेस से गायब हैं। हो सकता है कि पाकिस्तान के कुहेटा पर हमला हो। सभी को लगा कि बस अब भारत दबोच लेगा। तीन दिन बाद पाकिस्तान ने कहीं जा कर राहत की साँस ली जब अमेरिका ने स्पष्ट किया कि खतरे जैसी कोई बात नहीं है और भारतीय जगुआर असल में अनियमित अभ्यास के लिए चले गये थे। दरअसल इन तीन दिनों के दौरान ही कादिर साहब ने योजना बनायी होगी दिल्ली को हिरोशिमा में तब्दील करने की जिसे सरकारी मंजूरी नहीं मिली। लेकिन तब तक उभय देश के राजनयिक संबंध निचली सतह पर आ चुके थे हम सब पाकिसानी इंटेलिजेंस की चौबीसों घंटे निगरानी में थे। दौरे के बीच ही श्रीमती इंदिरा गाँधी की उन्हीं के अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। तब पंजाब में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद चरम पर था और कहा तो यहाँ तक जाता है कि वह हत्या भी शातिर जियाउल हक की साजिश का ही एक हिस्सा थी।
तब कुछ नहीं हुआ पर आज हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि कादिर जैसे बिकाऊ से जिहादी आतंकियों ने यदि डर्टी बम प्राप्त कर लिए हों और उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ हो तो कोई बड़ी बात नहीं। इसलिए भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को जरूरत से ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है।
(देश मंथन, 31 मई 2016)