पठानकोट हमला : मोदी सरकार पर सवाल

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राजेश रपरिया :

पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के खौफनाक हमले से पहली बार मोदी सरकार के कामकाज, तत्परता, सतर्कता को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल उठ खड़े हुए हैं,  मोदी की टीम इंडिया के परखच्चे उड़ गये हैं। आतंकवादी कम से कम 48 घंटे पठानकोट में स्वच्छंद घूमते रहे और सुरक्षा तंत्र हाथ पर हाथ धरे अपनी माँद में बैठा प्रतीक्षा करता रहा।

आतंकवादियों का हमला इतना तेज है कि दिन-रात पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देने वालों के मुँह ही टूट गये हैं,  मोदी सरकार और भाजपा सरकार का कोई वीर अब तक पाकिस्तान का नाम लेने से डर रहा है या मोदी-नवाज का याराना सिर चढ़ कर बोल रहा है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि आतंकवादी हमले की पुख्ता जानकारी के तकरीबन 12 घंटे के बाद ही एनएसजी कमांडो का बल दिल्ली से पठानकोट पहुँच पाया। इतने समय में तो दिल्ली का कोई ऑटो वाला टहलते हुए दिल्ली से पठानकोट पहुँच जाये। 

सैन्य और रक्षा विशेषज्ञों को काट रहा है कि पठानकोट में तकरीबन 50 हजार थलसैनिकों के रहते हुए आतंकवादियों की खोज और उनकी सफाई के लिए उनकी सेवाएँ क्यों नहीं ली गयीं। यह सामंजस्य की कमी है या निर्णय लेने में भारी चूक।

यह सर्वविदित है कि जिलाधिकारी को सेना बुलाने का अधिकार है। इसके लिए उसे केंद्र से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है। देश में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जब स्थिति से निपटने के लिए जिलाधिकारियों ने सेनाओं की सेवाएँ लीं। अर्से से छावनियों में आतंकवादियों से निपटने के लिए रैपिड एक्शन टीम होती है,  जो आधुनिक हथियारों और तकनीक से लैस होती है। अब रक्षा मंत्री कह रहे हैं कि हुई चूकों की जाँच करायी जायेगी। मोदी सरकार ने पठानकोट हमले के निस्क्रमण के सफल ऑपरेशन को ले कर लंबी तहरीर दी है, लेकिन समाज जन के गले 70-80 घंटे ऑपरेशन चलने की बात नहीं उतर रही है। मोदी की लाहौर सरप्राइज से भाजपा को पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों, मीडिया और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया ज्यादा परिपक्व नजर आती है। अब अनेक पाक विशेषज्ञ पठानकोट में लगे समय को ले कर भौचक हैं।

गुरुदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह का चामत्कारिक अवतरण और उनके पल-पल बदलते बयान तमाम सवालों को जन्म दे रहे हैं। अब वह कह रहे हैं कि आतंकवादियों ने उनकी ऑख पर पटृी बाँध दी थी। हाथ और पाँव बाँध दिये थे। उनका मोबाइल छीन लिया था, ‘अब कह रहे हैं कि दो मोबाइल छीन लिये थे’  पर मोबाइल को ठप कराने के लिए उन्होंने कब कार्रवाई की, इसकी कोई जानकारी समाने नहीं आयी है,  न ही उनकी आँख पर बँधी पट्टी के सुरक्षा बलों को मिलने की कोई जानकारी है। यह चमत्कार ही है कि आतंकवादियों ने उन्हें और उनके मित्र और उनके रसोइये को किस्तों में जिंदा छोड़ दिया। शोले फिल्म की भाषा में बात करें तो तीनों के तीनों बच गये, पर नमक का हिसाब तो जाँच एजेंसियाँ ही कर पायेंगी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आतंकवादी हमले की इतनी पुख्ता जानकारी पहले कभी सुरक्षा एजेंसियों को नहीं मिली। फिर भी आतंकवादियों का सफाया करने में हर स्तर पर भारी चूक हुई। इसने सुरक्षा बलों के समन्वय और आतंकवाद से लड़ने को लेकर हमारी तैयारियों पर अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। आम आदमी के जेहन में कई सवाल काटने को दौड़ रहे हैं।

– बॉर्डर पर बीएसएफ से दोबारा चूक कैसे हुई,  छह महीने पहले भी इसी बॉर्डर से 26 जुलाई को आतंकवादी घुसे थे

– पंजाब पुलिस के पुलिस महानिदेशक हरदीप ढिल्लन ने 27 दिसंबर को ही पत्र लिख कर आतंकवादी हमले को ले कर आगाह कर दिया था, पर उसको गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया।

– 48 घंटे तक आतंकवादी पठानकोट में बेखौफ कैसे घूमते रहे।

– थल सेना के इस्तेमाल से क्यों परहेज किया गया।

– राष्टीय सुरक्षा सलाहकार के ऑपरेशन की कमान हाथ में लेने के बाद 12 घंटे देर से एनएसजी पठानकोट क्यों पहुँची।

– 2 जनवरी को ऑपरेशन बंद करने की सूचना किस गफलत में की गयी।

– पठानकोट में रावी नदी पर बने नाके पर भारी पड़ताल होती है, इस नाके पर एसपी की गाड़ी में सैन्य वर्दी में सवार आतंकवादियों से पूछताछ क्यों नहीं की गयीं।

अचानक लाहौर जा कर प्रधानमंत्री ने देश-दुनियाँ को भौचक कर दिया था। अब शायद वह खुद ही भौचक होंगे। पता नहीं क्यों, भाजपा के जिम्मेदार लोग इस आतंकवादी हमले में अब तक पाकिस्तान का नाम लेने से बच रहे हैं।

(देश मंथन, 05 जनवरी 2016) 

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