राजनीतिक चंदा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज की कहानी मुझे मेरे दफ्तर में कोई सुना रहा था। बता रहा था कि उसने शायद ऐसा कभी बहुत पहले अखबार में पढ़ा था, या फिर किसी वरिष्ठ पत्रकार ने उससे साझा किया था। 

कहानी बहुत पुरानी है। तब ज्ञानी जैलसिंह जिन्दा थे। 

कहानी कुछ इस तरह है कि पंजाब में बहुत साल पहले कुछ व्यापारियों ने आपस में मिल कर तय किया कि वो अब राजनीतिक चंदा नहीं देंगे। 

चंडीगढ़ में बैठे नेताओं को जब पता चला कि कुछ व्यापारियों ने तय कर लिया है कि वो अब पैसे नहीं देंगे, तो उनकी भृकुटि तन गयी। इन व्यापारियों की इतनी औकात कि उन्हें चंदा नहीं देंगे? आज ये नहीं देंगे, कल कोई और नहीं देगा। फिर राजनीति क्या होगी? खाक?

राजनेताओें को लगा कि इस तरह के विरोध को तुरंत नहीं कुचला गया तो उनके प्रति लोगों में जो भय है, वो खत्म हो जाएगा।

अफरा-तफरी में नेताओं ने बैठक की और डीजी पुलिस को बुलाया गया कि भई, कुछ करो। डीजी पुलिस ने नेताओं को भरोसा दिलाया कि आप जरा भी चिंता न करें। दो दिनों में पैसे आ जाएंगे। आ क्या जाएंगे, हर महीने आने लगेंगे।

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मेरा साथी मुझे कहानी सुना रहा था और मेरा दिल आगे का हाल जानने को बेचैन था। 

मैंने उत्सुकता से पूछा, “फिर क्या हुआ?”

“फिर डीजी पुलिस ने एक गाड़ी तैयार की। गाड़ी के दरवाजे पर पर्दे लगवा कर व्यापारी के मुहल्ले में घुमाया। फिर एक-एक व्यापारी के पास खुद गया और कहा कि इस जीप में शहर की एक महिला है, और उसने पुलिस में शिकायत की है कि उसके साथ इन व्यापारियों के अवैध संबंध रहे हैं। पहले वो उसे पैसे देते रहे हैं, पर इन दिनों पैसे देने बंद कर दिए हैं। जाहिर है महिला दुखी हो कर पुलिस की शरण में आई है और अगर व्यापारियों ने उसे पैसे नहीं दिए, तो उन सबके नाम सार्वजनिक कर देगी जिसके साथ उसके संबंध रहे हैं।”

इतना कह कर डीजीपी साहब थोड़ी देर चुप रहें, फिर उन्होंने कहा कि सच क्या है, झूठ क्या है, मुझे नहीं पता। हो सकता है आप के रिश्ते इस महिला से न भी रहे हों। पर महिला अगर शिकायत करेगी, तो कार्रवाई तो करनी ही पड़ेगी।”

***

फिर क्या हुआ?

“फिर क्या होना था? सारे व्यापारियों ने उस महिला तक पैसे पहुँचा दिए।”

“क्या सारे व्यापारियों के उस महिला से संबंध थे?”

“यही सवाल एक पत्रकार ने ज्ञानी जैलसिंह से पूछा था। और जैलसिंह ने बहुत कम में अपनी बात पूरी कर ली थी। उन्होंने कहा था कि बड़े लोगों की इज्जत बड़ी होती है। वो अपनी इज्जत बचाने के लिए पैसे खर्च करने से नहीं चूकते। जाहिर है, उन व्यापारियों के पास से पैसे पहुँचने लगे।”

“यही सच है। राजनीति में जब किसी को बर्बाद करना हो तो सामने वाले पर फटाफट कीचड़ उछालने का खेल चलने लगता है।” 

मुझे सचमुच नहीं पता कि हकीकत क्या है? पर यह सच है कि बड़े लोगों के मन में बदनामी का डर बहुत गहरा होता है। बड़े लोगों को इज्जत बहुत प्यारी होती है, और इतनी ही होती है उनकी इज्जत।

(देश मंथन 23 जून 2016) 

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