हवाई किले और आम जनता

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के मुँह से यह सुनकर कितना अच्छा लग रहा था कि यह ‘मेरी सरकार’ है। प्रणब दा के अलावा कोई और व्यक्ति नरेंद्र मोदी की सरकार को ‘मेरी सरकार’ कह देता तो इतना अजूबा नहीं होता।

जो प्रणब दा पिछले चालीस साल से नेहरू परिवार के सिपाही थे, उनके मुँह से मोदी सरकार के लिए ‘मेरी सरकार’ जैसे फूल झड़ना भारतीय लोकतंत्र की श्रेष्ठता और स्वच्छता का परिचायक है। कोई नेता किसी भी पार्टी का हो, लेकिन वह अपने संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रखे, यह बड़ी बात है।

इस बार राष्ट्रपति ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए इतने अधिक वायदे किए हैं, आश्वासन दिए हैं, सपने दिखाए हैं कि अब से पहले शायद किसी भी सरकार ने नहीं किए हैं। ये वायदे क्या हैं, भाजपा के घोषणा-पत्र को आधिकारिक मुहर लगाना ही है। घोषणा-पत्र में अपरंपार सपने दिखाना हर पार्टी की रणनीति होती है। चुनाव के बाद उस घोषणा-पत्र के वायदे न तो नेताओं को याद रहते हैं न जनता को। वे केवल एक औपचारिकता मात्र बनकर रह जाते हैं लेकिन यह खुशी की बात है कि मोदी-सरकार ने उन लगभग समस्त घोषणाओं को दुबारा राष्ट्रपति के मुँह से कहलवा दिया है।

गरीबी हटाना, महँगाई रोकना, सबको रोजगार देना, चौबीसों घंटे बिजली-पानी देना, हर घर को पक्का बनाना, हर घर में शौचालय होना, छोटे शहरों में भी हवाई अड्डे बनवाना, सौ-सौ आयुर्विज्ञान संस्थान और सूचना तकनीक संस्थान खोलना, सारे देश को महापथों से जोड़ना, आतंक, भ्रष्टाचार, महिला असुरक्षा आदि को समाप्त करना। काला धन वापस लाना। विदेश नीति और रक्षा नीति में नयी पहल और सरकारी काम-काज भारतीय भाषाओं में करना– ये सब ऐसे मुद्दे हैं, जो भारत को इक्कीसवीं सदी का सिरमौर बना सकते हैं। 21वीं सदी को एशिया की सदी बना सकते हैं।

यदि अगले एक वर्ष में यह सरकार इस लंबी-चैड़ी घोषणा के एक-चैथाई हिस्से को भी लागू कर सके तो सचमुच चमत्कार हो जायेगा। हवाई किले बांधना और लोगों को सब्जबाग दिखाना–इस महान कला में सारे नेता निष्णात होते हैं। कई नेता जो कहते हैं, उसे सचमुच करना भी चाहते हैं लेकिन निकम्मी नौकरशाही, निखट्टू पार्टी कार्यकर्ता और आलसी जनता के कारण वे कुछ नहीं कर पाते। बड़े-बड़े नेता नौकरशाहों की नौकरी करने लगते हैं, स्वार्थी पार्टी-कार्यकर्ताओं की जेबें भरने लगते हैं और जनता का आलस्य देखकर ठप्प हो जाते हैं। आशा है, इस शाश्वत पाखंड के मोदी अपवाद होंगे। वे नौकरशाही के खिलौने नहीं बनेंगे और जनता को जगाये रखने पर सबसे ज्यादा जोर देंगे। यदि जनता जागती रही और उसने अपनी कमर कसे रखी तो पूरी संभावना हैं कि मोदी सफल होंगे। पुनश्चः राष्ट्रपति को अपना भाषण राजभाषा-हिंदी – में देने के लिए बाध्य क्यों नहीं किया गया?

(देश मंथन, 10 जून 2014)

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