डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
प्रियंका वाड्रा ने यह ठीक ही कहा है कि ‘वे राजीव गांधी की बेटी हैं।’ इसमें गलत कुछ नहीं है। उन्होंने यह बात इतने सलीके से कही है कि कोई भी इसे नरेंद्र मोदी पर प्रहार नहीं कह सकता।
वे चाहती तो नरेंद्र मोदी पर सीधा प्रहार भी कर सकती थीं। वे यह भी कह सकती थी कि देखिए कि एक मूलतः चाय बेचने वाला मुझे अपनी बेटी बना रहा है। या एक निःसंतान व्यक्ति की हिमाकत देखिए कि वह दूसरों के बेटे-बेटियों को अपना कह रहा है लेकिन प्रियंका ने कम बोलकर काफी अच्छा जवाब दे दिया है। यह जवाब काफी अच्छा इसलिए लग रहा है कि इसमें किन्हीं भी अनुचित शब्दों का प्रयोग नहीं है लेकिन हम शब्दों पर न जायें और ज़रा अर्थ में उतरें तो सूक्ष्म अहंकार की तीव्र दुर्गंध से माथा फट जायेगा।
नरेंद्र मोदी ने प्रियंका पर वार करने से मना कर दिया और कहा कि वह मेरी बेटी-जैसी है। यह बात मोदी-जैसी नहीं है। यह अटलजी-जैसी है। नरसिंहरावजी-जैसी है। मोदी-जैसे आक्रामक व्यक्ति के मुंह से इतनी संजीदा, इतनी गरिमामयी, इतनी प्रेमल बात निकले, यही स्वागत का विषय होना चाहिए था। यदि प्रियंका इस बात की तारीफ में दो शब्द भी बोल देती तो जरा वह सोंचे कि भारत की राजनीति में उसके दो-चार शब्दों से ही कितनी मधुरता का संचार होता! उसने जो कुछ बोला, वह सही तो था लेकिन उसमें वजन बिल्कुल नहीं था।
यह तो सबको पता है कि वह राजीव गांधी की बेटी हैं, लेकिन लोगों को यह भी पता है कि उसके अलावा वह क्या है? कुछ भी नहीं। बस शून्य! यदि अब कुछ है तो वह राबर्ट वाड्रा की बीवी हैं। राबर्ट वाड्रा क्या है, यह भी सबको पता है। क्या नरेंद्र मोदी इस लायक भी नहीं कि उसे पितृतुल्य कह दिया जाये? सिर्फ कहने के लिए कह दिया जाये? क्या मोदी में कोई ऐसी बुराई है कि उसे बुजुर्ग का सम्मान भी न दिया जाये? उम्र की इज्जत करना तो हम भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग मानते हैं। जो वाक्य प्रियंका ने मोदी के जवाब में कहा, वह उन पर प्रहार तो नहीं था लेकिन अपने खोखलेपन का अनावरण तो था ही! इससे तो अच्छा होता कि वह मोदी पर सीधा प्रहार ही कर देती, जैसे कि वह स्वयं और राजीव गांधी का बेटा करता रहा है। तब कोई यह तो नहीं पूछता कि तुम्हारी हैसियत क्या है? तुम बेटा और बेटी होने के अलावा क्या हो?
(देश मंथन, 03 मई 2014)