संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
सर्दियों की उस रात मैं मामा के साथ हीटर के आगे बैठा था। सामने फोन रखा था, जो हर मिनट घनघनाता था।
राज्य के मुख्य मन्त्री के रिश्तेदार के घर आर्थिक अपराध ब्यूरो ने छापा डाला था और मामा उस छापेमारी दल की रिपोर्ट फोन पर ले रहे थे।
मामा मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस थे। उन दिनों राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो में आईजी थे। कुछ ही दिन पहले ही दिल्ली से भोपाल आये थे। सीबीआई में संयुक्त निदेशक पद से अपना कार्यकाल पूरा कर वो अपने होम कैडर में लौटे थे। होम कैडर में पहले उन्हें लोकायुक्त में पोस्टिंग मिली थी, लेकिन कुछ महीनों में ही उनका ट्रांसफर आर्थिक अपराध ब्यूरो में हो गया था।
फोन मिनट-मिनट पर घनघनाता। मामा फोन उठाते, कुछ जरूरी निर्देश देते और फिर हम दोनों साथ बैठ कर देश दुनिया की चर्चा करने लगते।
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आधी रात हो चली थी। अचानक फोन की घंटी बजी। मामा ने फोन उठाया। फोन पर उधर से आवाज सुनते ही मामा कुर्सी से खड़े हो गये।
सर, यस सर, जी सर, हाँ सर, सर…सर…सर।
मैं समझ गया था कि मामा के किसी ऊँचे अधिकारी का फोन आया है। पुलिस में आप चाहे जितने बड़े अधिकारी हों, लेकिन अगर आपसे ऊपर वाले का फोन आ गया तो आपके पास सिवाय सर, सर, जी सर, हाँ सर, यस सर कहने के दूसरा कुछ कहने के लिए नहीं होता।
दो मिनट में ही फोन कट गया।
फोन कटने के बाद भी मामा मिनट भर को खड़े ही रहे। फिर धीरे से कुर्सी पर बैठ गए और हँसने लगे। कहने लगे कि मुख्य मन्त्री जी का फोन था।
“मुख्य मन्त्री ने सीधे आपको फोन कर दिया?”
“हाँ, बेटा। सीधे मुझे ही फोन कर दिया। लेकिन मुझे लग ही रहा था कि ऐसा होगा। पर आधी रात को होगा, यह उम्मीद नहीं थी। मैं सुबह का इंतजार कर रहा था।”
“क्या मामा? आप आधी रात तक सीएम साहब के रिश्तेदार के घर छापा डलवा रहे हैं, और आपको सुबह का इंतजार था?”
मामा फिर हँसने लगे।
मैंने पूछा कि सीएम साहब ने कहा क्या?
“अरे कुछ नहीं। मेरे काम से वो बहुत प्रसन्न थे। कहने लगे कि आपको प्रमोशन के साथ होमगार्ड में भेजा जा रहा है।”
“होम गार्ड?”
“हाँ, पुलिस में जब प्रमोशन देकर होमगार्ड में भेजा जाये तो समझ लेना चाहिए कि अब आप देर तक सो सकते हैं, फोन की घंटी कम बजेगी, घर-परिवार को ढेर सारा समय दे सकते हैं। यह सही मायने में प्रमोशन ही होता है।”
“पर मामा, आपने जो छापा डलवाया उसका क्या होगा? क्या सरकार आपसे नाराज है?”
“छोड़ो बेटा। तुम यह बताओ कि तुम एमए के बाद क्या करने की योजना बना रहे हो?”
“ठीक से तय नहीं कर पाया हूँ। लेकिन सोचता हूँ कि सिविल सर्विस के चक्कर में न पड़ूँ।”
“बिल्कुल सही सोच रहे हो। जो लोग ईमानदारी से जीना चाहते हैं, उनके लिए यह सब नौकरी मन में कुंठा पैदा करने वाली ही है। लोग कहने को तो कहते हैं कि आदमी को ईमानदारी से काम करना चाहिए, किसी से नहीं डरना चाहिए, सच बोलना चाहिए लेकिन हकीकत में ऐसे लोगों को कोई पसन्द नहीं करता। भ्रष्टाचार इस देश की नसों में बस गया है। मुमकिन है कि वैज्ञानिक एकदिन कैंसर का पूरा इलाज ढूँढ लेंगे, लेकिन हमारे देश से भ्रष्टाचार कभी खत्म नहीं होगा। ऐसे में तुम अगर सिविल सर्विस में आये तो बहुत दुखी रहोगे।”
“इतना निराश मत हों मामा। एक दिन ऐसा आएगा, जब लोग ईमानदारी और सच्चाई की सचमुच पूजा करने लगेंगे। हमारी पीढ़ी डिप्रेशन काल की पीढ़ी है। लेकिन मेरे बाद की पीढ़ी के सामने राजनीति का यह रूप नहीं होगा। मैं भले सिविल सर्विस से मुँह मोड़ लूँ, लेकिन मेरे बाद की पीढ़ी सिविल सर्विस में सचमुच देश सेवा की भावना लेकर आएगी।”
“नहीं बेटा। मैं यही सोच कर आईपीएस बना था। तुम्हारे नाना स्वतंत्रता सेनानी थे। वो नहीं चाहते थे कि मैं पुलिस की नौकरी में जाऊँ। उन्हें लगता था कि देश में अंग्रेजों की बनाई जो पुलिस है, उसके रक्त में ही बेईमानी भरी है। लोग पुलिस से नफरत करते हैं। लेकिन मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की थी कि देश आजाद हो चुका है। अब अंग्रेजों की पुलिस नहीं है। उनकी मर्जी के खिलाफ मैं आईपीएस की परीक्षा में बैठा और टॉप करके यहाँ तक पहुँचा। पर अब मुझे लगता है कि तुम्हारे नाना सही थे। यह अभी भी अंग्रेजों की ही पुलिस है।”
मैं मामा का दुख समझ रहा था। मामा एक ईमानदार पुलिस अफसर थे। वो किसी पद पर छह महीने से अधिक नहीं रह पाते थे। उनका सामान बंधा ही रहता था। एक शहर से दूसरे शहर और दूसरे से तीसरे शहर जाने के वो अभ्यस्त थे। उन्हें ट्रांसफर से कभी दुख नहीं हुआ। वो मानते थे कि जहाँ जो काम मिले, उसे ईमानदारी से करना चाहिए। लेकिन इस तरह रात में अचानक प्रमोशन होने और होमगार्ड में भेजे जाने पर समझ नहीं पा रहे थे कि किस तरह की प्रतिक्रिया दें।
खैर मामा होमगार्ड में चले गये। और मध्य प्रदेश में डीजी होमगार्ड के पद से ही रिटायर भी हुए।
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कल मैं अपने दफ्तर में बैठा था। अचानक खबर आई कि शीना मर्डर केस में इंद्राणी मुखर्जी से लगातार पूछताछ कर रहे मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया का अचानक प्रमोशन हो गया। उन्हें कमिश्नर से होमगार्ड का डीजी बना दिया गया।
खबर तो मेरे पास यही आई थी कि उनका प्रमोशन समय से पहले कर दिया गया है। अचानक कर दिया गया है। पर मेरी समझ में यह नहीं आया कि मैं उनके इस प्रमोशन के विषय में लिखूँ क्या? इसे उनके अच्छे काम के बदले मिलने वाला इनाम मानूँ या फिर सजा? कुछ देर में मारिया साहब की तस्वीर भी टीवी पर दिखी। उनके चेहरे से भी पता नहीं चला कि उन्हें प्रमोशन की खुशी मिली है, या अफसोस हुआ है।
पहले तो प्रमोशन मिलते ही आदमी मिठाई का डिब्बा लिए घर की ओर दौड़ता था। यार, दोस्त, रिश्तेदारों के घर आने का सिलसिला शुरू हो जाता था। आदमी अपनी सैलरी स्लिप लेकर यह देखने बैठ जाता था कि कितने पैसों का इजाफा हुआ है। पर उस दिन आधी रात को हुए उस प्रमोशन की खुशखबरी तो मामा ने मामी को नींद से जगा कर भी नहीं दी थी।
कल मारिया साहब भी प्रमोशन की खबर के बाद घर नहीं भागे।
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कल मामा की बहुत याद आई। मामा सही थे। मैं गलत था।
मैंने कभी सिविल सर्विस की परीक्षा नहीं दी। मामा ने कहा था कि यहाँ केवल कहने के लिए अच्छाई और ईमानदारी की बातें की जाती हैं। हकीकत में ऐसा करना गुनाह होता है। मैंने मामा से कहा था कि मेरे बाद की पीढ़ी तक सब ठीक हो जाएगा। पर मैं पूरी तरह गलत था।
आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे अपने बेटे को मैं पिछले दिनों समझा रहा था कि तुम सिवल सर्विसेज की तैयारी करना। तुम पढ़ने में होशियार हो, तुम उसे क्वालिफाई कर सकते हो। उसे क्वालिफाई करने के बाद तुम सचमुच देश के लिए कुछ कर सकते हो। उसका बहुत मन नहीं था। उसने पता नहीं कहाँ सुन लिया था कि आईएएस, आईपीएस बन कर आदमी अगर ईमानदारी से अपना काम करना चाहे तो भी नहीं कर पाता।
मैं उसके दिमाग से यह बात निकालने की पूरी कोशिश कर रहा था। लेकिन मैं गलत था।
आज मैं फोन करके उससे कहूँगा कि तुम ठीक कह रहे थे बेटा। अभी भी यहाँ अंग्रेजों वाली ब्यूरोक्रैटिक व्यवस्था ही चल रही है।
कोई बात नहीं। शायद तुम्हारे आगे की पीढ़ी तक यह सब ठीक हो जाये।
जब तक अच्छे काम के लिए होमगार्ड में प्रमोशन का विकल्प खुला है, तुम गूगल, फेसबुक, एप्पल, सोनी, सैमसंग में ही नौकरी तलाशना।
(देश मंथन, 09 सितंबर 2015)