दूसरे मनमोहन की तलाश!

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डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक : 

यदि नवीन पटनायक और जयललिता पहली मुलाकात में ही नरेंद्र मोदी के साथ गठबंधन में बंध जाते तो उनके राज्यों में उनकी काफी हैठी होती।

लोग कहते कि इन नेताओं का कोई दीन-ईमान नहीं है। चुनाव में जिस पार्टी के खिलाफ खंजर खड़का रहे थे, अब उसी के साथ झाँझ बजाने लगे। इसीलिए ओडिसा और तमिलनाडु भाजपा-गठबंधन में मिलने के सवाल पर मौन साधे हुए हैं लेकिन गठबंधन के बाहर रहकर उन्होंने समर्थन देने के लिए भी मना नहीं किया है याने वे प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने को भी तैयार नहीं है।

इसमें शक नहीं कि चुनावी मैदान में उतरते समय सिर्फ जयललिता और पटनायक ही नहीं, ममता बनर्जी, मुलायम सिंह, मायावती और नीतीश जैसे प्राँतीय नेता भी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे थे लेकिन अब भी उनमें इतनी सहिष्णुता और उदारता नहीं है कि वे अपना एक संयुक्त मोर्चा खड़ा करें, जो संसद में एक सबल प्रतिपक्ष की भूमिका निभाए। भारतीय लोकतंत्र की यह विडंबना है कि पिछले दस साल से एक सबल सरकार नहीं थी और अब अगले दस साल तक सबल प्रतिपक्ष नहीं होगा।

सभी नेतागण अपनी-अपनी गोटी गरम करने में भिड़े हुए हैं। जयललिता और पटनायक ने प्रधानमंत्री को वित्तीय सहायता और विशेष दर्जे की माँगें पकड़ा दी हैं। बेहतर तो यह होता कि चाहे आज नहीं, कल ही सही, वे गठबंधन में शामिल होकर अपने राज्यों के लिए ज्यादा फायदे उठाते और केंद्र सरकार को एक सच्चा अखिल भारतीय प्रतिनिधि स्वरुप भी देते।

उधर कांग्रेस की हालत तो और भी खस्ता है। उसके हारे हुए नेताओं से प्राँतों के कोई भी जीते हुए नेता मिलना ही नहीं चाहते। वे जानते हैं कि कांग्रेस-गठबंधन में शामिल होना अपना खस्सीकरण करवाना है। कांग्रेस ने अपनी लगाम दक्षिण के हाथ में थमा दी है। यह भी कोई तर्क है कि सबसे ज्यादा सांसद कर्नाटक से जीते हैं, इसलिए कन्नड़भाषी सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे संसद में कांग्रेस के नेता होंगे। खड़गे को देश में कौन जानता है? न वे अपनी प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं और न ही भाषणकला के लिए! वे सबल प्रतिपक्ष की भूमिका कैसे निभायेंगे? कांग्रेस में कमलनाथ जैसे अनुभवी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा और चतुर सांसद हैं लेकिन लगता है कि मां-बेटा जोड़ी दुबारा दरबारियों के चंगुल में फंस गयी है। वे अपनी बुद्धि से कोई निर्णय ले सकते हैं या नहीं? दोनों को खड़गे में अब दूसरे मनमोहनजी दिखायी पड़ रहे हैं। मनमोहनजी ने मां-बेटा पार्टी को इतना मोहित कर लिया है कि पहले मनमोहन से सरकार खत्म करवाई और अब इस दूसरे मनमोहन से पार्टी का पंचनामा करवाया जाएगा। इस दूसरे मनमोहन की तलाश पर बधाई!

(देश मंथन, 05 जून 2014)

 

 

 

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