संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। कांग्रेस ने हिंदी हृदय प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी है। इस क्रम में बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रोड शो किया। यह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की स्टाइल है। शिखर पर जाना है तो सबसे मजबूत से लड़ो। नि:संदेह उत्तर प्रदेश से अगर प्रधानमंत्री हैं और लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने इस सूबे की 80 में से 73 (भाजपा-71, अपना दल-2) सीटों पर कब्जा किया हो तो प्रधानमंत्री की सीट शक्ति की सबसे बड़ी प्रतीक तो मानी ही जायेगी।
खैर, कांग्रेस ने रोडशो किया, लाखों लोगों ने इसे देखा, इसमें शिरकत किया। सोनिया गाँधी बीच रोड शो में बीमार भी पड़ गयीं और उन्हें अचानक डॉक्टरों की निगरानी में लेना पड़ा। प्रधानमंत्री ने दिल्ली से मदद भिजवायी और उन्हें आनन-फानन में दिल्ली ले आया गया। वे अब स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं।
दमदार रहा रोड शो
लेकिन यहाँ प्रश्न है कि इस रोडशो से कांग्रेस की संभावनाओं पर क्या फर्क पड़ा? राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि रोड शो में भीड़ अच्छी रही। इस रोड शो ने मृतप्राय पड़ी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जान फूँकने का काम किया है। वाराणसी के कांग्रेसी नेता पूर्व एमएलसी मणिशंकर पाण्डेय, जो गुलाम नबीं आजाद के साथ उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए सह प्रभारी हैं, विधायक और मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अजय राय और पूर्व सांसद राजेश मिश्र के साथ ही साथ तमाम छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर से ले कर श्रीप्रकाश जायसवाल तक, सूबे के तमाम बड़े कांग्रेसी नेता वाराणसी में डेरा डाले हुए थे। नतीजा अच्छा रहा।
वोट प्रतिशत बढ़ेगा
लेकिन रोड शो का नतीजा क्या चुनावी नतीजे भी बेहतर बनायेगा? राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि वोट प्रतिशत तो बढ़ेगा, लेकिन यह बात सीट वृद्धि के लिए नहीं कही जा सकती। वे इसके पीछे दो कारण बताते हैं। वे कहते हैं कि एक तो कांग्रेस न देश में और न ही उत्तर प्रदेश में, सत्ता में है। इससे जनता का जो गुस्सा कांग्रेस के खिलाफ 2014 में था, वह अब मद्धिम पड़ गया है। दूसरे, उम्मीदों के विशाल शिखर पर चढ़ कर आये नरेंद्र मोदी के पास जादू की कोई छड़ी नहीं है, यह अहसास भी मतदाताओं को हुआ है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि भले सूबे में मोदी को समर्थन सर्वाधिक हो, लेकिन 2014 के मुकाबले समर्थन कम हुआ है, भले ही इसका प्रतिशत बहुत मामूली हो। लेकिन चुनावों में 1-2% का स्विंग ही सारा खेल बदल देता है। प्रशांत किशोर इस स्विंग को कांग्रेस की ओर खींचने के प्रयास में हैं। लेकिन आधार वोट की अनुपस्थिति में स्विंग वोट आपकी झोली में सीट नहीं डाल सकता।
ब्राह्मणों पर नजर
आधार वोट की यही अनुपस्थिति कांग्रेस और प्रशांत किशोर की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। यह आधार वोट बनाने के लिए प्रशांत किशोर की नजर ब्राह्मण मतदाताओं पर है। शीला दीक्षित को कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करना इसी रणनीति का हिस्सा है। यदि ब्राह्मण-क्षत्रिय मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति जरा भी मोह पैदा होता है तो इस धारणा को फैला कर प्रशांत किशोर इसके आधार पर मुस्लिम वोट खींचने का प्रयास करेंगे। यह होगा या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन फिलहाल, यही दिख रही है कि कांग्रेस उन्हीं सीट पर दमखम दिखा पायेगी जिन सीटों पर प्रत्याशियों में व्यक्तिगत दमखम होगा, पार्टी के नाम पर किसी कांग्रेसी प्रत्याशी का मुकाबले में आना मुश्किल दिख रहा है।
(देश मंथन 06 अगस्त 2016)