जातीय जनगणना क्यों कराना चाहते हैं राहुल गांधी? क्या है इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति

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Rahul Gandhi, Congress

हाल में राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए दावा किया था, “हिंदुस्तान का ऑर्डर आ चुका है, जल्दी ही 90 फीसदी भारतीय जातीय जनगणना की माँग करेंगे।” उन्होंने पीएम मोदी को खुली चुनौती देते हुए कह डाला कि जातीय जनगणना को कोई शक्ति नहीं रोक सकती है। अब सवाल यह है कि आखिर राहुल गांधी जातीय जनगणना कराने को लेकर इतने आक्रामक क्यों हैं?

जातीय जनगणना को लेकर देश में सियासी माहौल गरमाया हुआ है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने चुनावी रैलियों में यह वादा किया था कि अगर उसकी सरकार बनी तो वह पूरे देश में जातीय जनगणना करायेगा। हालाँकि सरकार एनडीए की बनी, लेकिन जातीय जनगणना के मुद्दे पर अब विपक्ष लगातार आक्रामक रवैया अपनाये हुए है। खास कर, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी संसद में भी मोदी सरकार को इस मुद्दे पर खुली चुनौती दे चुके हैं।

हाल में राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए दावा किया था, “हिंदुस्तान का ऑर्डर आ चुका है, जल्दी ही 90 फीसदी भारतीय जातीय जनगणना की माँग करेंगे।” उन्होंने पीएम मोदी को खुली चुनौती देते हुए कह डाला कि जातीय जनगणना को कोई शक्ति नहीं रोक सकती है। अब सवाल यह है कि आखिर राहुल गांधी जातीय जनगणना कराने को लेकर इतने आक्रामक क्यों हैं?

कांग्रेस का क्या है तर्क

दरअसल, कांग्रेस का तर्क है कि वह जातीय जनगणना पर इसलिए जोर दे रही है, क्योंकि समाज में सभी को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए, बराबरी का हक मिलना चाहिए। कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह का कहना है कि जातीय जनगणना के आँकड़े आने के बाद पता चलेगा कि कितने लोग सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह गये हैं। इसके बाद हमें उनकी मदद के लिए योजना बनाने में सहूलियत होगी।

हालाँकि, आरक्षण का दायरा क्या रहेगा? इस पर कांग्रेस कुछ भी स्पष्ट नहीं कर रही है। लेकिन, लोक सभा चुनावों के नतीजों के बाद जिस तरह से राहुल गांधी ने जातीय जनगणना कराने की माँग हर प्लेटफॉर्म से की है, उसके बाद सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस की रणनीति महज वंचितों को लाभ पहुँचाने की ही नहीं है। राजनीतिक जानकार इसे वोट बैंक की राजनीति से भी जोड़ कर देख रहे हैं।

बीजेपी को चुनौती देने की रणनीति

जिस तरह से लोक सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में संजीवनी मिली और साथ ही पूरे देश में उनकी कुल सीटें 99 तक जा पहुँची, उसके बाद कांग्रेस पार्टी के हाव-भाव बदले नजर आ रहे हैं। कहीं-न-कहीं कांग्रेस पार्टी इस बात को भाँप गयी है कि बीजेपी को अगर कोई चीज चुनौती दे सकती है तो वह जातीय राजनीति है।

कांग्रेस 2014 के बाद से बीजेपी की रणनीति का तोड़ ढूँढ पाने में नाकाम रही है और लगातार चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अब कांग्रेस जातीय जनगणना के सहारे बीजेपी को चुनावों में चोट पहुँचाना चाहती है। कांग्रेस पार्टी ने हालिया चुनावों में जोर-शोर से प्रचारित किया था कि बीजेपी 400 सीट इसलिए चाहती है, क्योंकि उसे आरक्षण खत्म करना है। लगभग हर चुनावी रैली में कांग्रेस के नेता इस बात का जिक्र करते थे।

दूसरी तरफ, अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले ने भी यूपी में सियासी समीकरण बदल दिया, जिससे भगवा दल को काफी नुकसान हुआ। इन नतीजों से उत्साहित राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी जातीय जनगणना कराने की माँग जोर-शोर से कर रही है।

कांग्रेस पार्टी को लगता है कि कहीं-न-कहीं यह मुद्दा बीजेपी को बैकफुट पर ला सकता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस को यूपी में समाजवादी पार्टी जैसे दल के साथ गठबंधन का लाभ सीधे तौर पर मिला है। सपा ने लोकसभा चुनावों में पीडीए के फॉर्मूले को अपनाया था और गठबंधन में होने के कारण इसका लाभ कांग्रेस को भी मिला, जिसे अब वह किसी भी तरह हाथ से जाने नहीं देना चाहती है।

(देश मंथन, 23 सितंबर 2024)

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