Monday, December 23, 2024
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शक्ति को सृजन में लगाएँ मोदी

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : :

हाथ में आए ऐतिहासिक अवसर का करें राष्ट्रोत्थान के लिए इस्तेमाल

पिछले कुछ दिनों से सार्वजनिक जीवन में जैसी कड़वाहटें, चीख-चिल्लाहटें, शोर-शराबा और आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह बना रहे हैं, उससे हम देश की ऊर्जा को नष्ट होता हुआ ही देख रहे हैं। भाषा की अभद्रता ने जिस तरह मुख्य धारा की राजनीति में अपनी जगह बनायी है, वह चौंकाने वाली है। सवाल यह उठता है कि नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने से दुखीजन अगर आर्तनाद और विलाप कर रहे हैं तो उनकी रूदाली टीम में मोदी समर्थक और भाजपा के संगठन क्यों शामिल हो रहे हैं?

ताकि रोज का यह टंटा खत्म हो!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

बात गम्भीर है। खुद प्रधानमंत्री ने कही है, तो यकीनन गम्भीर ही होगी! पर इससे भी गम्भीर बात यह है कि प्रधानमंत्री की इस बात पर ज्यादा बात नहीं हुई। क्योंकि देश तब कहीं और व्यस्त था। उस आवेग में उलझा हुआ था, जिसके बारूदी गोले प्रधानमंत्री की अपनी ही पार्टी के युवा संगठन ने दाग़े थे! भीड़ फैसले कर रही थी। सड़कों पर राष्ट्रवाद की परिभाषाएँ तय हो रही थीं। पुलिस टीवी कैमरों के सामने हो कर भी कहीं नहीं थी। टीवी कैमरों को सब दिख रहा था। पुलिस को कुछ भी नहीं दिख रहा था। दुनिया अवाक् देख रही थी। लेकिन इसमें हैरानी की क्या बात? क्या ऐसा पहले नहीं हुआ है? याद कीजिए!

अच्छाई में भी कमियाँ दिखेंगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चा पार्क में खेलने जा रहा था। 

दादी घर में अकेली थी। दादी ने बच्चे को रोका और कहा कि क्या तू दिन भर खेलता रहता है। कभी अपनी दादी के पास भी बैठा कर। बातें किया कर। 

राजनीति भूल गये मोदी जी!

राजीव रंजन झा :

इतना भी काम मत कीजिए मोदी जी। काम में उलझ कर राजनीति भूल गये हैं नरेंद्र मोदी। 

जी हाँ। गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने काम भी जम कर किया, और राजनीति भी जम कर की। विरोधियों के फेंके पत्थरों को चुन-चुन कर अपना राजनीतिक महल बनाते रहे। मगर दिल्ली आ कर शायद यह कला भूल गये मोदी। 

आज राह दिखी है

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

माँ गंगा की इस स्वच्छता को बरकरार रखने के लिए आईए हम संकल्प लें, सौगंध खाएँ। आज राह दिखी है। वाकई ये अद्भुत दृश्य इसलिए ही नहीं हैं कि काशी में दो प्रधान मंत्रियों ने एक साथ माँ गंगा का पूजन किया और अत्यंत मनोयोग से पौने घंटे तक चली महा आरती का आनंद उठाया, बल्कि इसलिए भी कि माँ गंगा दशकों बाद इतनी निर्मल और स्वच्छ नजर आयीं। कहीं एक तिनका तक भी नहीं दिखा। 

प्रधानमंत्री की खामोशी के अर्थ-अनर्थ

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

तय मानिए यह देश नरेंद्र मोदी को, मनमोहन सिंह की तरह व्यवहार करता हुआ सह नहीं सकता। पूर्व प्रधानमंत्री मजबूरी का मनोनयन थे, जबकि नरेंद्र मोदी देश की जनता का सीधा चुनाव हैं। कई मायनों में वे जनता के सीधे प्रतिनिधि हैं। जाहिर है उन पर देश की जनता अपना हक समझती है और हक इतना कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे अपनी व्यस्तताओं के बीच भी हर छोटे-बड़े प्रसंग पर संवाद करें, बातचीत करें।

ज्ञान ही ज्ञान

सुशांत झा, पत्रकार :

उन लोगों पर ताज्जुब होता है जो कहते हैं कि पीएम को बिहार में 40 सभाएँ नहीं करनी चाहिए। अरे भाई, इसका क्या मतलब कि जिस बच्चे को 12वीं में 99 फीसदी नंबर आये वो IIT की परीक्षा में दारू पीकर इक्जाम देने चला जाये? हद है! चुनाव है या फेसबुक पोस्ट कि कुछ भी लिख दिया? विपक्षी दलों के पास नेता नहीं है और जो हैं या तो वो जोकर किस्म के हैं या किसी आईलैंड पर तफरीह कर रहे हैं तो इसमें नरेंद्र मोदी का क्या दोष है? ये तो उस आदमी का बड़प्पन है कि सांढ का सींग पकड़कर मैदान में डटा हुआ है।

बिहार चुनाव : विकास, गोकसी और आरक्षण का मुद्दा है भारी

संदीप त्रिपाठी :

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान होने में एक हफ्ते हैं। बीते महीने में विश्लेषक यह आकलन करते रहे कि दोनों प्रमुख चुनावी गठबंधनों, राजद + जदयू + कांग्रेस के महागठबंधन और भाजपा + लोजपा + रालोसपा + हम के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बीच बाजी किसके हाथ रहेगी। और यह भी कि तारिक अनवर के नेतृत्व में सपा + राकांपा + जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव) + समरस समाज पार्टी (नागमणि) + समाजवादी जनता पार्टी (देवेंद्र यादव) + नेशनल पीपुल्स पार्टी (पीए संगमा) का गठबंधन धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मोर्चा इन दोनों प्रमुख गठबंधनों में कहाँ किसके वोटबैंक में सेंध लगायेगा। और यह भी कि हैदराबाद की राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में क्या गुल खिला पायेंगे और इससे किसको नुकसान और किसको फायदा होगा और इनके पीछे कौन है।

कौन हैं जो मोदी को विफल करना चाहते हैं?

 

 

 

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

क्या सच में नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का जादू टूट रहा है? अगर टूट रहा है तो वो कौन है, जिसका जादू सिर चढ़कर बोल रहा है? वे कौन लोग हैं जो पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई देश की पहली राष्ट्रवादी सरकार को मार्ग से भटकाना चाहते हैं? जाहिर तौर पर सवाल कई हैं पर उनके उत्तर नदारद हैं।

कश्मीरी पंडितों की वापसी से कौन डरता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने को लेकर अलगाववादी संगठनों की जैसी प्रतिक्रियायें हुयी हैं, वे बहुत स्वाभाविक हैं। यह बात साबित करती है कि कश्मीर घाटी में जो कुछ हुआ, उसमें इन अलगाववादियों की भूमिका और समर्थन रहा है।

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