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जलन छोड़, अपनी किस्मत बदलें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ कहानियाँ पढ़ कर हंसी आती है। कुछ कहानियाँ पढ़ कर रोना आता है। जिन कहानियों को पढ़ कर हम हँसते या रोते हैं, उनके बारे में हम राय बना लेते हैं कि यह कहानी अच्छी है या बुरी है। पर हम यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि हर कहानी कुछ न कुछ कहती है, संदेश देती है। जिस कहानी को सुन कर हमें कोई संदेश न मिले, वो कहानी उस फल की तरह है, जिसमें रस नहीं होता।
प्रेम करने वाला सबको संग लेकर चलते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी नौकरी पहले लगी थी, पत्रकारिता की पढ़ाई में दाखिला बाद में मिला था। जिन दिनों मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, एक लड़की से मेरी दोस्ती हुई। मेरी तरफ से दोस्ती सिर्फ दोस्ती तक सीमित थी, लेकिन अक्सर लड़कियाँ दोस्ती, प्रेम और शादी तीनों की चाशनी बना लेती हैं। उसने भी ऐसा ही किया और जिस दिन कॉलेज में मेरा आखिरी दिन था वो मेरे पास शादी का प्रस्ताव लेकर पहुँच गयी।
छिपाए गए सच में आदमी टूट कर गिरता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं अपनी माँ से पूछा करता था कि माँ, आपकी शादी पिताजी से कैसे हुई?
माँ अपनी शादी को ईश्वरीय विधान बताती। कहती कि भगवानजी आये थे और उन्होंने सब तय कर दिया। बहुत से बच्चों की तरह मेरे मन में भी कौतूहल जगता कि माँ की शादी वाली तस्वीरों में मैं कहीं क्यों नहीं हूँ? माना कि मैं छोटा बच्चा रहा होऊँगा और मुमकिन है कि सो रहा होऊँगा, पर एक दो तस्वीरों में तो मुझे होना ही चाहिए था।
कोट मुक्ति मुद्रा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
यह भी तारीखों का ही एक खेल है कि बहुत साल पहले मैं अपने छोटे भाई के साथ 19 अप्रैल की सुबह बैठा हुआ था और अगले दिन होने वाली अपनी शादी की चर्चा कर रहा था। मेरी शादी में मेरा छोटा भाई ही माँ बना बैठा था, पिता बना बैठा था, सखा बना बैठा था।
स्पष्ट खुलासा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं चाहूँ तो फोन करके भी जबलपुर के Rajeev Chaturvedi को धन्यवाद कह सकता हूँ। लेकिन मैं पोस्ट के जरिए धन्यवाद कहने जा रहा हूँ, क्योंकि उन्होंने इस बार मुझे एक ऐसी किताब भेंट की जिसने मेरी समझ के आकार को बदल दिया है। मैंने उनसे कई बार इस बात की चर्चा की थी कि अपने छोटे भाई के निधन से मैं बहुत व्यथित हूँ, और भीतर ही भीतर बहुत अवसाद से गुजरता हूँ।
गोनू झा की बिल्ली

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राजा ने सभी दरबारियों को एक-एक बिल्ली और एक-एक गाय दी। सबसे कहा कि महीने भर बाद जिसकी बिल्ली सबसे ज्यादा तगड़ी दिखेगी, उसे इनाम मिलेगा।
मन को साफ करो खुश रहोगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं प्रेम पर लिखते हुए बहुत डरता हूँ। डर की वजह सिर्फ इतनी है कि जब मैं ऐसी पोस्ट लिखता हूँ तो अगले दिन मेरे पास ऐसे-ऐसे कई सवाल आ खड़े होते हैं, जिनके जवाब में मुझे फिर प्रेम पर एक पोस्ट लिखनी पड़ती है। एक पोस्ट और लिख कर मैं मुक्त होता हूँ और सोचता हूँ कि कल ये वाली कहानी लिखूँगा, वो वाली कहानी लिखूँगा, पर रात में जैसे ही अपने इनबॉक्स में झाँकता हूँ, मेरी तय की हुई सारी कहानियाँ उड़ जाती हैं और रह जाता है प्रेम।
चाहत में शिद्दत हो सब मिलेगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय जी, मेरी जिन्दगी में प्रेम नहीं है।”
कल मेरा इनबॉक्स इस एक वाक्य से भर गया। कुछ लोगों ने तो सीधे-सीधे मेरी वाल पर ही अपनी कहानी लिख दी, कुछ लोगों ने अपने दोस्तों की कहानी लिखी कि उसके दोस्त को फलाँ से प्यार है, पर उसकी शादी हो चुकी है, उसके बच्चे हैं, अब वो क्या करे?
शादी की बंजर भूमि पर प्यार के फूल खिलाओ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक पिता और पुत्र ट्रेन में सफर कर रहे थे। पिता पुत्र से कहता नंबर तीन और दोनों जोर-जोर से हँसने लगते। दोनों की हँसी थमती और फिर पुत्र कहता नंबर सात। पुत्र के मुँह से नंबर सात निकला नहीं कि दोनों पेट पकड़ कर हँसने लगते।
जिन्दगी जीने के 10 नुस्खे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बचपन में जब मैं प्रेमचंद के किसी उपन्यास को पढ़ता तो मेरे मन में यही ख्याल दौड़ता कि मैं बीए तक पढ़ाई करूंगा।
उनकी किताबों में लिखा रहता था - प्रेमचंद, बीए।