Tag: संजय सिन्हा
हर कर्म का प्रतिफल मिलता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैंने कल लिखा था कि अगर मुझे किसी ने याद दिलाने की कोशिश की तो मैं हिटलर की उस कहानी का जिक्र जरूर करूंगा, जिसमें एक फौजी अफसर का बेटा कैसे अपने पिता के बनाए नर्क में फंस जाता है और फिल्म खत्म होने के कई महीनों बाद तक मेरी नाक में आदमी के जलने की दुर्गंध छोड़ जाता है।
थ्रिल जिंदगी में तलाश करें, मौत में नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“कुछ हिल रहा है। लग रहा है चक्कर आ रहा है। अरे ये देखो ऊपर लटका पंखा भी हिल रहा है। हाँ, हाँ दीवार पर टंगी फोटो भी हिल रही है। भागो, भूकम्प आया है।” हमारे देश में भूकम्प का इतना अनुभव सबके पास है। उसके बाद शुरू होता है टीवी पर खबरों का खेल। पानी की हिलती हुई बोतल, हिलता हुआ पंखा, भागते हुए लोगों को दिखाने की होड़ मच जाती है। कुछ देर में हमारे पास भूकम्प से जुड़ी तस्वीरें आने लगती हैं और हम दिखाने लगते हैं, गिरी हुई इमारतें, उसमें फंसे हुए लोग, मलबों में दबे हुए लोग, चीख-पुकार, करुण-क्रंदन।
कल नेपाल और भारत में भूकम्प से धरती हिली। वही सब हुआ, जिसे मैंने बयाँ किया है।
पंद्रह साल पहले गुजरात में ऐसा ही भूकम्प आया था। तब मैं जी न्यूज में रिपोर्टर था।
गेहूँ की फसल कम होगी, लेकिन वोटों की खेती लहलहायेगी

संजय सिन्हा, आज तक :
मेरी माँ किसान नहीं थी, लेकिन जिस साल अप्रैल के महीने में आसमान में काले-काले बादल छाते और ओले बरसते माँ सिहर उठती थी।
रिश्तों को बचाने की जिम्मेदारी हमारी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बहुत साल पहले गाँव के मुकुंद चाचा की शादी में गया था। पूरा गाँव नाच रहा था। पूरा गाँव क्या, मैं भी नाच रहा था।
पूरा गाँव सज-धज कर बाराती बन कर उस गाँव से दूसरे गाँव गया था। दूसरे गाँव वालों ने बारातियों का स्वागत नमकीन भुजिया और नींबू के शर्बत से किया था।
धरती पर भगवान (डॉक्टर) मुर्दे से भी कमाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जिसके पाँव में चक्कर हो वो कहीं से कहीं जा सकता है। वो चैन से बैठ ही नहीं सकता।
सही नीयत और संपूर्ण भरोसे से होता है काम सफल

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो दिन बाद मेरी शादी होनी थी।
मैंने किसी से पूछा नहीं था, खुद ही तय कर लिया था कि शादी 20 अप्रैल को होगी। कैसे होगी, कौन कराएगा, होगी कि नहीं होगी, ये मेरे सोचने की ही बात थी, लेकिन मैं सोच नहीं रहा था।
सब कुछ हार जाओ, पर भरोसा नहीं हारना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
रावण हंस रहा था। खुशी के मारे उछल-उछल कर हंस रहा था।
"सीता, तुम्हें बहुत घमंड था न अपने राम पर। तुम इतराती थी न अपने देवर लक्ष्मण की शक्ति पर! जाओ खुद अपनी आँखों से देखो। देखो कैसे तुम्हारे पति राम और तुम्हारे देवर लक्ष्मण, दोनों हमारे पुत्र इंद्रजीत के हाथों मारे गये। हमारे पुत्र ने उन्हें सर्पबाणों से भेद दिया है।
चिंता की चिंता छोड़िए और मस्त रहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी बुआ ने यह कहानी मुझे सुनायी थी। डेल कारनेगी ने पढ़ाई थी। माँ ने अमल करना सिखाया था। पत्नी इस पर अमल कराती है।
अब इतना लिख दिया तो वो कहानी फिर से आपको सुना ही दूँ, जिसे आप कम से कम एक हजार बार सुन चुके होंगे।
सीखने के लिए ईमानदारी जरूरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एप्पल कम्प्यूटर, आईफोन, आईपैड और आईपॉड जैसे खिलौने पूरी दुनिया को देने वाले स्टीव जॉब्स अपने कॉलेज के दिनों में जब पहली बार यूँ ही भारत भ्रमण पर आए थे तो यहाँ के अध्यात्म को अपने साथ ले गये थे।
संचार और मनोरंजन के वो तमाम खिलौने, जिनसे पूरी दुनिया भविष्य में खेलने वाली थी, वो जिन दिनों स्टीव जॉब्स के दिल और दिमाग में आकार ले रहे थे, उस दौरान स्टीव एक दिन के लिए भी भारत के गौरवपूर्ण अध्यात्म को नहीं भूले।
कब आयेगा बदलाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल मुझे मेरी सोसायटी का माली मिल गया। उसके हाथों में ढेरों किताबें थीं। दुआ सलाम के बाद उसने मुझसे बीस हजार रुपये बतौर उधार मांगे।
जाहिर है मेरी जिज्ञासा ये जानने में थी कि आखिर अचानक इतने रुपयों की उसे क्या जरूरत आ पड़ी।