Friday, March 14, 2025
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किसी और में खुद को देख पाना ही प्रेम है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आप में से बहुत से लोग इंग्लैंड गये होंगे। मैं भी गया हूँ। 

पर आज कहानी न तो आपकी लिखी जा रही है, न मेरी। आज कहानी लिख रहा हूँ उस नौजवान की, जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी पर उसे इंग्लैंड जाना था। उसका पासपोर्ट बन चुका था, वीजा लग चुका था। अब बस उड़ना भर बाकी था। 

प्रेम करना नहीं होता, उसे बस जीना होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक नौजवान ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उसकी समस्या को ध्यान से समझूं और फिर उसका हल बताऊं। उसने मुझ पर लानत भेजी है कि मैं सिर्फ सास-बहू, पति-पत्नी और आदमी से आदमी के रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। और जिस दिन खुश होता हूँ, अपनी प्रेम कहानी लिख देता हूँ। पर आज की नयी पीढ़ी की समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

एक कटोरी खीर है रिश्तों का पैगाम

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक कटोरी खीर की कीमत तुम क्या जानो दीप रानी? 

एक कटोरी खीर सिर्फ चावल, दूध और चीनी का मिश्रण भर नहीं। यह दोस्ती की सौगात होती है, यह रिश्तों का पैगाम होता है।

शुभस्थ शीघ्रम्

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मुश्किल ये है कि हम लोग अपनी जिन्दगी एक धारणा पर जीते चले जाते हैं। हम मान लेते हैं कि जो अच्छा है, उसी की बातें सुननी हैं। हम बहुत सी उन विद्याओं पर अमल नहीं करते, जिनके विषय में हमारे मन में बुरी भावनाएँ होती हैं, या जिनकी छवि ठीक नहीं होती। 

सबसे अभागा वो आदमी जिसके पास रिश्ते नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरे दफ्तर में काम करने वाली एक महिला ने कल अपना इस्तीफा सौंप दिया। वो मुझसे मिलने आयी थी और बता रही थी कि उसे बहुत अफसोस है कि वो नौकरी छोड़ कर जा रही है, पर मजबूरी है। 

मैंने उससे पूछा कि ऐसी क्या मजबूरी है? 

जिन्दगी अपनी पसंद की होनी चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बेटे ने जिद पकड़ ली थी कि उसे डायनासॉर वाला खिलौना चाहिए। 

डायनासॉर वाला खिलौना बच्चों की पसंद बना हुआ था। वो बैट्री से चलता था, कुछ दूर चल कर रुकता और फिर मुँह से अजीब सी आवाज निकाल कर धुआँ छोड़ता। 

रिश्तों की फसल लहलहाएगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कानपुर में मेरे एक ताऊजी रहते थे। बड़ा सा बंगला था और पूरा परिवार संयुक्त रूप से रहता था। दद्दा, ताऊजी, ताईजी, उनके बच्चे। इत्तेफाक से मेरी बड़ी मौसी भी उनके पड़ोस में ही रहती थीं। मौसी के साथ उनकी देवरानी भी थीं। तो इस तरह ताऊजी के बच्चे, मेरी मौसी के बच्चे और मौसी की देवरानी के बच्चे सब साथ पल रहे थे। 

डॉर्लिंग कह कर हाल पूछिए, प्यार का जोड़ टूटेगा नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कल दफ्तर में काम अधिक था। घर पहुँचने में देर हो गयी। हो सकता है कि पत्नी मन ही मन नाराज भी हो रही हो कि मैं सारा दिन दफ्तर में गुजार देता हूँ और इस चक्कर में दिल्ली के सभी मॉल्स में जो सेल लगी है, उसमें उसे नहीं ले जा पा रहा।

जिसे जो मिला, वही वो देगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज पोस्ट लिखते हुए मुझे कई बार रुकना पड़ा। 

प्यार में पड़ी लड़की हजार मर्दों से अधिक शक्तिशाली

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैंने जितनी बार भी फिल्म देवदास देखी है, मेरे मन में ये सवाल उठा है कि पुरुष प्रेम में कायर क्यों हो जाता है? 

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