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रक्त दान : लोगों में जागरूकता की कमी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बच्चे को बहुत चोट लगी थी। खून बहुत बह गया था। बच्चे को लेकर कर माँ-बाप सरकारी अस्पताल पहुँचे थे। माँ दोनों हाथ जोड़ कर डॉक्टर के आगे गुहार लगा रही थी कि डॉक्टर साहब आप भगवान हो, किसी तरह मेरे बच्चे को बचा लो।
सदमा या आजादी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपको बताया था न कि पिछले दिनों जब मैं कान्हा में टाइगर देखने गया था, उस रात जंगल के गेस्ट हाउस की बत्ती चली गयी थी। अब टाइगर तो वहाँ मिले नहीं, हाँ, पड़ोस के कमरे में एक डॉक्टर मिल गये।
गरीबी सचमुच अभिशाप है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
"डाक्टर साहब मेरा बेटा ठीक होगा कि नहीं, सच-सच बताइए।"
प्रतिष्ठा पर चोट पहुँचाने से सत्य को जानना जरूरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अगर मैंने ये कहानी अपने कानों से नहीं सुनी होती तो मुझे कभी अपने पत्रकार होने की शर्मिंदगी के उस अहसास से नहीं गुजरना पड़ता, जिससे मैं दो दिन पहले गुजरा हूँ। कहानी मुझे एक डॉक्टर ने सुनाई और पहली बार मुझे इस कहानी को सुनते हुए आत्मग्लानि सी हो रही थी। मुझे लग रहा था कि कहीं चुल्लू भर पानी मिल जाए तो फिर कभी किसी को अपना मुँह भी न दिखाऊँ।
राजनीतिक चंदा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज की कहानी मुझे मेरे दफ्तर में कोई सुना रहा था। बता रहा था कि उसने शायद ऐसा कभी बहुत पहले अखबार में पढ़ा था, या फिर किसी वरिष्ठ पत्रकार ने उससे साझा किया था।
आप जैसा उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, बच्चे वैसा ही करेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
करीब चार साल पहले मैं मुंबई में आमिर खान के घर बैठा था। आमिर खान नपा तुला खाना खा रहे थे क्योंकि फिल्म धूम के लिए उन्हें अपनी बॉडी बनानी थी। उन्होंने मुझे बताया कि अब वो सिगरेट नहीं पीते। मुझे बहुत खुशी हुई थी कि उन्होंने सिगरेट छोड़ दी।
नशा करके वाला आदमी तन के साथ मन भी गंवाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक साधु थे। कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुछ बदमाश लड़कों ने उन्हें घेर लिया। पूछा कि महाराज, कहाँ जा रहे हैं? साधु ने कहा कि नदी में नहाने जा रहा हूँ। लड़कों ने उनसे कहा कि महाराज, आपने जिन्दगी में कभी पाप किया है या नहीं? साधु महाराज कहने लगे कि नहीं, कभी नहीं। मैं तो साधु हूँ, पाप से मेरा क्या नाता?
“नहीं? यूँ ही कभी मदिरापान? किसी स्त्री के साथ संबंध?”
अपने बच्चों को आदमी बनाइए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आप मोनू भैया को नहीं जानते।
वो मेरे पिछले मुहल्ले में रहते हैं और मेरी उनसे मुलाकात होती रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं सुबह-सुबह मोनू भैया की कहानी क्यों लेकर आपके पास आ गया हूँ।
खुद को बदलते हैं, तो संसार बदल जाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
वाह-वाह क्या बात है।
मेरे दफ्तर की एक महिला कर्मचारी मेरे पास आई और बात-बात में कहने लगी कि जिन्दगी बहुत उलझ गयी है।
अच्छाई ढूंढें, जिन्दगी आसान हो जायेगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे पिताजी की आदत भी अजीब थी।
खाना खाने बैठते तो एक निवाला तोड़ कर थाली के चारों ओर घूमाते और फिर उसे किनारे रख कर थाली को प्रणाम करते और खाना खाना शुरू करते।
मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता और सोचता कि पिताजी ऐसा क्यों करते हैं?