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जीता वही सिकंदर, हार के बाद जीत

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे नहीं पता कि ये मुहावरा किसने गढ़ा होगा कि जो जीता वही सिकंदर।
बच्चे के मन को पहचानें, धन को नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ की सुनाई तमाम कहानियों में से ये वाली कहानी मुझे हमेशा ऐसे वक्त में याद आती है, जब इसकी सबसे अधिक जरूरत पड़ती है।
कुछ दिन पहले मुझसे कोई कह रहा था कि उनका बेटा ठीक से पढ़ाई नहीं करता। उसके नंबर हमेशा कम आते हैं और सबसे दुख की बात ये है कि पति-पत्नी दोनों बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते।
मोतियों की तरह रिश्तों को संभालिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे एक परिचित के दोनों बच्चे गर्मी की छुट्टियों में स्कूल से कहीं घूमने गये हैं। बच्चे हफ्ते भर से बाहर हैं, पति-पत्नी अकेले-अकेले बैठे रहते हैं, ऐसे में उन्होंने तय किया कि कुछ लोगों को घर बुलाया जाए, पार्टी की जाए। बहुत ही बेहतरीन आइडिया था। रोज-रोज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ी राहत मिलेगी और जिनसे पता नहीं कब से नहीं मिले, उनसे मिलना हो जाएगा।
मन के पिंजरों से निकलिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी पोस्ट पर आप जो टिप्पणियाँ करते हैं, उन्हें मैं बहुत मनन करके पढ़ता हूँ। कभी-कभी तो पढ़ने के बाद दुबारा पढ़ता हूँ। सच में आपकी टिप्पणियाँ कई बार इतनी दिलचस्प और शानदार होती हैं कि मैं खुद सोच में पड़ जाता हूँ।
शक्ल और रिजल्ट एक ही

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक कहानी तीन दिनों से अटकी पड़ी है। सोच रहा हूँ कि आज नहीं लिखा तो फिर कहीं पुरानी ही न पड़ जाए। इसलिए आज मैं संसार के सात आश्चर्यों की कहानी को छोड़ कर उस सत्य को आपके सामने परोसने जा रहा हूँ, जो कल्पना से भी अधिक काल्पनिक है, जिसके विषय में आपका विज्ञान इत्तेफाक कह कर पल्ला झाड़ लेगा। पर मैं कैसे निकल सकता हूँ? मैं तो गवाह हूँ समय का, जब मैंने इस आश्चर्य किंतु विचित्र सत्य को अपनी आँखों से घटित होते हुए देखा है।
जागता आदमी सच को समझता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जब मैं छोटा था, तब माँ मुझे कहानियाँ सुना कर सुलाया करती थी। उन्हीं ढेर सारी कहानियों में से एक आज मुझे याद आ रही है।
जवाहर लाल नेहरू के कपड़े

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तब पता नहीं किसने मुझे बता दिया था कि जवाहर लाल नेहरू के कपड़े धुलने और प्रेस होने के लिए पेरिस भेजे जाते थे। मुझे यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ था किसी की कमीज की तह ठीक करने के लिए उसे दुनिया के उस शहर में भेजा जाता है, जहाँ आइफिल टॉवर है। मुझे आज भी नहीं नहीं पता कि ऐसी बातें कितनी सच या झूठ होती हैं, पर उन दिनों मुझे पूरा विश्वास था कि यही सच है।
चेत जाइये नहीं तो कुछ भी नहीं होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज चौथा दिन है जब बुखार ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा है। बुखार क्यों हुआ, नहीं पता। मैंने खाने-पीने में ऐसी कोई बदपरहेजी नहीं की। पर बुखार हो गया। एक दिन का बुखार होता है तो पत्नी की सेवा से ठीक हो जाता हूँ। दो दिन का बुखार होता है तो बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊटपटांग सपने देखने लगता हूँ। तीसरे दिन तो डॉक्टर को दिखला ही लेना चाहिए। क्रोसिन और कालपोल से तीसरे दिन काम नहीं चलाना चाहिए। तो कल मैं डॉक्टर को दिखला आया।
आदमी सबकुछ के बिना रह सकता है, पर प्यार के बिना नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अब शिफ्ट होने का समय आ गया है। समझ लीजिए कि आधा शिफ्ट हो भी गए। मैं चीजें बहुत खरीदता हूँ, पर मुझे चीजों से मोह नहीं। जाहिर है मैं बहुत सी चीजें यहीं पुराने घर में छोड़ जाऊंगा। इनका क्या होगा, क्या करूंगा, यह सब बाद में तय होगा।
सब को अपनी जिन्दगी जीने का हक मिले

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज पोस्ट नहीं लिखूंगा। आज आपसे बातें करूंगा।