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हम-दर्दों को दूर भगाओ, गम-दर्दों से राहत पाओ।

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
भारत जैसे जटिल देश की राजनीति भी बेहद शातिराना तरीके से खेली जाती है। इस ग्लोबल देश में व्यूह रचना¢एँ अब इस तरह से होने लगी हैं कि बिहार चुनाव को प्रभावित करना हो, तो दादरी में एक घटना करा दो और उसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दो। एक आदमी बलि का बकरा बनेगा, तो हजारों-लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओं-पूंजीपतियों-ठेकेदारों की देवियाँ और अल्लाह खुश हो जाएंगे। एक अखलाक को बलि का बकरा बनाने से आपको मालूम ही है कि कितनों की देवियाँ और अल्लाह उनपर मेहरबान हो गये!
बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?

अभिरंजन कुमार :
अखलाक को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।